छोटे जख्मो चेपदार पट्टी से सॉंध सकते है |
कुछ जख्म धागे से सॉंधने पडते है |
कट, चीर फाड़ या मुथरी चोटें आम घाव होते हैं। नीला पड़ना एक और तरह की चोट है जिसमें त्वचा कटती फटती नहीं है। इसे चिकित्सीय भाषा में कन्टुभजन कहते हैं।
चीर-फाड़ वाली चोटें असमान चीज़ों से त्वचा को लगी चोटें होती हैं और आमतौर पर दुर्घटनाओं, झगड़ों या गिरने पर ऐसी चोटें लगती हैं। कटने की चोटें तेज धार वाली चीज़ों से लगती हैं। आम भाषा में घाव उसे कहते हैं जिसमें खून निकल आए।
सिर, छाती, पेट, जनन अंगों और चेहरे पर हुए घावों में अन्दरूनी चोटें भी हो सकती हैं। अन्दरुनी चोट के लक्षणों पर ध्यान दें। जोड़ों और हडिडयों पर हुए घाव बहुत धीरे-धीरे ठीक होते हैं। चेहरे की चोटों से चेहरा खराब भी हो सकता है। जख्म का कारण और प्रकृति भी महत्वपूर्ण होती है। जानवरों के काटने व सड़क दुर्घटनाओं में लगी चोटों में संक्रमण की सम्भावना होती है। इन घावों को ठीक से साफ किया जाना ज़रूरी है। साफ करने से घाव तेज़ी से ठीक होते हैं।
अगर खून कोशिकाओं से बह रहा हो तो एक दो मिनटों में ही रूक जाता है। शिराओं से निकल रहे खून को बन्द करने के लिए दबाव डालना ही काफी होता है। परन्तु धमनियों में से खून तेजी से निकलता है और इसके बन्द होने के लिए बहुत अधिक दवाब या रोक लगाना ज़रूरी होता है। कुछ घावों में से इसलिए भी ज़्यादा खून निकलता है क्योंकि उनकी जगह ऐसी होती है जहॉं ज्यादा खून होता है जैसे कि चेहरा या खोपड़ी।
पहला काम रक्तस्त्राव रोकना होता है इसके लिये ज़्यादातर मामलों में रक्तस्त्राव जगह को कसकर दबाना ही काफी होता है। कभी-कभी दबाने की जगह बदलनी पड़ेगी। धमनियों में से बह रहा खून तब तक नहीं रूकेगा जब तक सही जगह न दबाया जाए।
खून का बहना रोकने के लिए धमनी चिमटी काफी फायदेमन्द होती है। आप इस चिमटी से खून की उस वाहिका को छॉंट सकते हैं और बन्द कर सकते हैं जिसमें से खून बह रहा हो। घाव को खाली पानी या साबुन के पानी से साफ करें। मरे हुए ऊतक और कटी फटी त्वचा, जो कि संक्रमण पैदा करती है, निकालना जरुरी है।
सामान्यत: एक सेन्टीमीटर से लम्बे घावों के सिरों का मिलान करना ज़रूरी है। चेहरे के घावों की मरम्मत ध्यान से की जानी चाहिए ताकि उनसे भद्दे दाग न रह जाएँ। खुले हुए सिरों को चिपक पट्टी से जोड़ देना चाहिए। परन्तु कुछ घावों को सिलाना ज़रूरी होता है। चेहरे की चोटों को बारीक सुइयों व टॉंका लगाने के बारीक उपकरण से सिलाना ज़रूरी होता है। इसमें दाग छोटे या नही के बराबर होते है| दाग टालने के लिये कुछ और भी तकनीक होते है|
ज़ख्म को सिलने के लिए इस्तेमाल होने वाले उपकरण और धागा सभी कीटाणुरहित होने चाहिए। आप इन्हें बीस मिनट तक पानी में उबालकर या फिर करीब दस मिनट तक स्पिरिट में रखकर जीवाणुरहित कर सकते हैं । घाव के इलाज मे लिए संक्रमण से बचाने की सावधानी बहुत ही ज़रूरी है। जब घावों को सिलना होता है तो अगर घाव बड़ा हो तो जाइलोकेन इंजेक्शन से स्थानीय ऐनेस्थीशिया (सुन्नपन) ज़रूरी होता है। जाइलोकेन का असर ३० मिनट तक रहता है। इतने समय में टॉंके लगाने का काम खतम किया जा सकता है। आपको यह ध्यान रखना होगा कि आप ये दवा शिरा में नही दे रहे है क्योंकि इससे दिल के रूक जाने का खतरा होता है। ऐसा होने से रोकने के लिए अन्दर जाने वाली सिरिंज के पिस्टन को धकेलने से पहले वापस खींचे। अगर सिरिन्ज में खून आ जाए तो इसका अर्थ है रूक जाईए, कि आप शिरा में से खून निकाल रहे हैं। सूई को निकाल कर अन्य जगह पर फिर कोशिश करे।
घावों को सिलने के लिए आम धागा ही इस्तेमाल हो सकता है। परन्तु त्वचा में घुसाने के लिए खास तरह की सूइयॉं जरुरी हैं। नुकीले सिरों वाली सीधी और टेढी सुइयॉं मिलती हैं। अगर घाव बड़ा हो और इसका किनारा मोटा हो तो इसे सिलने के लिए टेढी सूई ज़्यादा उपयोगी होती है। एक सुई पकडऩे वाले चिमटी की मदद से मुड़ी हुई सूई से काम करना आसान हो जाता है। सिलने के बाद घाव को साफ करें व मल्हम पटटी करें। पहले से जीवाणुरहित की गई पट्टी भी मिल जाती है। परन्तु आप प्रेशर कुकर में डालकर भी पटटी को जीवाणुरहित कर सकते हैं । एलो वेरा का टुकडा लगाना भी उतना ही फायदेमन्द है।
अगर ज़ख्मों पर लगाने वाला गोंद उपलब्ध है तो इससे बड़े-बड़े घाव भी जुड़ सकते हैं। इसके इस्तेमाल में किसी भी सुई, धागे या ऐनेस्थीशिया की ज़रूरत नहीं होती। घावों के किनारों को साफ करें। उन्हें पास -पास लाकर उनका मिलान करें व गोंद लगा दें। यह बहुत ही चिपकने वाली होती है और इससे सिरे पास पास टिक जाते हैं कुछ ही मिनटों में गोंद सेट होती है। तक तक यह सिरों को आपस में जोड़कर रखें। किसी किस्म की पट्टी की इस पर ज़रूरत नहीं होती। और गोंद घाव के भर जाने के बाद निकल जाती है। परन्तु घाव में संक्रमण हो जाने पर इस गोंद का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। रोगी को घर भेजने से पहले यह जॉंच कर लें कि खून तो नहीं बह रहा है। एक या दो दिन बाद पट्टी बदलें व ६ से ७ दिनों के बाद टॉंके काट दें। ज़्यादातर मामलों में इतने समय में घाव भर जाता है।
जख्मपर कुमारी लगाना |
कुमारी, नीम का सार और कुछ और घरेलू दवाइयॉ ज़ख्मों के इलाज के लिए काफी उपयोगी होती है। कुमारी तो घर के बगीचे में ही उगाया जा सकता है। घाव को साफ करने के बाद कुमारी का एक टुकड़ा उस पर लगाएँ और कसकर पट्टी बॉंध दें ताकि वो अपनी जगह से न खिसके। इसे जितना ज़रूरी हो उतनी जल्दी जल्दी बदल दें। कुमारी पुराने घावों को ठीक करने में भी मददगार होता है। नीम की पत्तियों का सत्त बनाने के लिए पत्तियों को पीसकर निचोड़कर उनका रस कपड़े में से छान लें। इसे तिलहन या नारियल के तेल में मिला लें व उबालें। आप इसे कई दिनो तक रख सकते हैं। आप घाव पर नीम की पत्तियों का ताज़ा लेप भी लगा सकते हैं।
तुलसी और गेंदें जैसी चीज़ें भी औषधि की तरह काम कर सकती हैं। पपीता भी घावों को खासक पुराने घावों को ठीक करने में मदद करता है। हल्दी का पाउडर भी घावों के इलाज के लिए असरकारी घरेलू दवा है। हल्दी में एन्टीसैप्टिक गुण होते हैं यह याद रखना ज़रूरी है कि आमतौर पर घाव अपने आप प्राकृतिक रूप से ठीक हो जाते हैं। और हमें केवल इस प्राकृतिक प्रक्रिया के ठीक से चलने के लिए घाव को साफ और ढंक कर रखना होता है।