होमिओपथिक दवाओंकी अपनी दुकाने होती है| |
आधुनिक चिकित्सा प्रणाली (जिसे ऐलोपैथी भी कहते हैं) और आयुर्वेद में एक सा ही तरीका इस्तेमाल होता है। यानि कि लक्षणों और चिन्हों के आधार पर बीमारी पहचानना और फिर दवाइयों से उसका इलाज करना। होम्योपैथी चिकित्सा प्रणाली अलग तरह से चलती है। इसका सिद्धान्त है कि एक जैसा एक जैसे को ठीक करता है। होम्योपैथी में बीमारी ठीक करने के लिए बहुत थोड़ी परन्तु ताकतवर दवा का इस्तेमाल करते हैं। हैरानी की बात ये है कि जिन चीज़ों से एक स्वस्थ व्यक्ति को बीमारी हो सकती है, ठीक वही चीज सूक्ष्म रूप में बीमार व्यक्ति के लिए इलाज के रूप में इस्तेमाल होती हैं। ये तरीका काफी सस्ता होता है और इसमें शरीर के गठन या बनावट को ठीक करके बीमारी को इलाज करने की कोशिश होती है। जहॉं कोई भी चिकित्सा प्रणाली काम नहीं कर रही होती वहॉं कई बार इससे आश्चर्यजनक रूप से बीमारियॉं ठीक हो जाती है। लेकिन हर समय इसको कामयाबी मिले ये संभव नही।
होम्योपैथी और टिशु रैमेडी शरीर और मस्तिष्क की कई सारी स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज के लिए काफी उपयोगी बतायी जाती है। अगर हम सी दवाओं का इस्तेमाल करें तो जो बीमारी दूसरी प्रणालियों में गम्भीर समझी इन प्रणालियों से कभीकभी बड़ी आसानी से ठीक हो जाती है। इस प्रणाली में दवा का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण रहता है। इस अध्याय में कुछ बुनियादी बातें बताई गई हैं। एक बार अगर इसमें रूचि और इसके काम करने का तरीका समझ में आ जाए तो आप होम्योपैथी की किताबें उठाकर जीवन भर इसका अध्ययन कर सकते हैं। दो सौ साल पहले एक बेहद बुद्धिमान व्यक्ति सैमुअल हानेमान द्वारा शुरू की गई ये प्रणाली आज काफी लम्बा रास्ता तय कर चुकी है।
आयुर्वेद की पुरानी किताबों में होम्योपैथी के बारे में थोड़ा बहुत जिक्र मिल जाता है। परन्तु इसका आधुनिक रूप पिछले दो दशकों में ही विकसित हुआ है। यह वो समय था जब किसी भी तरह के बुखार के लिए कुनैन दे दी जाती थी। बहुत से लोगों में इस दवा के ज़हरीले असर होते थे। हानेमान को लगा कि कुनैन जैसी ताकतवर दवा का इस तरह के बुखार के लिए इस्तेमाल किया जाना गलत है। ज़हरीले असर हालॉंकि बहुत सारे होते थे पर बहुत थोड़ी सी ही दवाएँ इस्तेमाल होती थीं। जैसे पारा, आरसेनिक, सल्फर और कुनैन। ये चाहे छोटी सी ही गोलियॉं हैं पर इनके असर बहुत बड़े हैं।
दवाइयों के विषाक्त असरों का अवलोकन हानेमान के लिए नया मोड़ था। उन्होंने सबसे पहले अपने और फिर अन्य स्वस्थ लोगों के ऊपर कुनैन के विषाक्त असर का अध्ययन करना शुरू किया। उन्होंने दवा लेने के बाद जो कुछ महसूस होता है और जो लक्षण उभरते हैं उन्हें रिकॉर्ड करना शुरू किया। उन्होंने पाया कि ये असर ठीक वैसे ही हैं जो मलेरिया के रोगियों में भी होते हैं। बार बार प्रयोग दोहराने पर भी उन्हें यही परिणाम देखने को मिले। उन्होंने पाया कि ये असर ठीक वैसे ही हैं जो कि मलेरिया के रोगियों में भी होते हैं। बार-बार प्रयोग दोहराने पर भी उन्हें यही परिणाम देखने को मिले। उन्होंने दवा की छोटी खुराक का इस्तेमाल किया। तब भी असर वैसे ही बने रहे। जिससे उन्हें लगा कि दवा की मात्रा महत्वपूर्ण नहीं है। एक स्वस्थ व्यक्ति में दवा की बहुत छोटी मात्रा से भी असर उभर आते हैं।
दवा की मात्रा कम करने के लिए हानेमान ने सैन्टिसमल पैमाने का इस्तेमाल किया (सौवें भाग के बराबर)। जैसे उन्होंने दवा का 1 भाग में चिकित्सीय रूप से उदासीन पदार्थ जैसे पानी, दूध, चीनी, एल्कोहल के 99 भाग मिलाया। घुलनशील दवाओं के घोलने के लिए उन्होंने हिलाने का तरीका अपनाया। अघुलनशील दवाओं को मिलाने के लिए उन्होंने औखली और मूसल का इस्तेमाल किया।
दवा के एक भाग में 99 भाग उदासीन पदार्थ मिलाने से जो मिश्रण तैयार हुआ उसे उन्होंने 1 सी में बताया। इसके एक भाग में 99 भाग उदासीन पदार्थ मिलाने से जो मिश्रण तैयार हुआ उसे उन्होंने 2 सी का बताया। जिसका मतलब है कि वो दो बार सूक्ष्म करने से बना है। अगर 1 सी वाले मिश्रण में दवा की मात्रा सौ में से एक होती है तो 2 सी वाले मिश्रण में वो 10,000 में से एक होती है। होम्योपैथी की दवाएँ या तो 30 सी की होती हैं या फिर 200 सी की यानि कि 30 गुनी या 200 गुनी। इन्हें तनु बनाने और मिलाने की पूरी प्रक्रिया को पोटेंशिएशन कहते हैं – यानि दवा को और ताकतवर बनाना। इस तरह से 200 सी वाली दवा असल में 30 सी वाली दवा के मुकाबले ज़्यादा ताकतवर होती हैं। संख्या के बड़े या छोटे हो से आपके भ्रमित नहीं होना चाहिए।
हानेमान के अनुसार कुनीन से मलेरिया ठीक हो जाता है क्योंकि इससे एक स्वस्थ व्यक्ति में मलेरिया जैसे लक्षण उभरते हैं। अन्य बीमारियों के इलाज के लिए भी इसी के अनुसार दवाएँ इस्तेमाल की जाती हैं। इससे बहुत जादुई उपचार हो पाए। उन्होंने स्वस्थ लोगों जिनमें उनके रिश्तेदार, दोस्त, साथी आदि शामिल थे, पर बहुत से प्रयोग किए। इन प्रयोगों के अवलोकनों के आधार पर उन्होंने अपने मरीज़ों के लिए इलाज तय किए। जिन दवाओं का इस्तेमाल किया गया उनमें से ज़्यादातर ज़हर थीं: जैसे पारा, आरसेनिक, एकोनाइट, नक्स वोमिका, स्ट्रामोनिअम आदि।
होम्योपैथी में कोई भी पदार्थ सूक्ष्म रूप में दवा का काम कर सकता है। पर यह ज़रूरी है कि होम्योपैथी के तरीकों के अनुसार स्वस्थ लोगों पर इसके असर का अध्ययन हो चुका है जैसे सोना, ज़हर, कीड़े, मल,रेडियम और यहॉं तक की बहुत सी बीमारियों में निकलने वाले स्रावों तक का। पर इनका इस्तेमाल इन्हें साबित करने और इनके पोटेंशिएशन के बाद ही होता है। कोई दवा देने का आधार स्वस्थ व्यक्ति पर उसका असर होता है – यानि लक्षणों का प्रकार, क्रम, प्रबलता और क्रिया करने की अवधि आदि।
होम्योपैथी की दवाओं में एक ही बीमारी से ग्रसित अलग अलग लोगों में उनके शारीरिक गठन के अनुसार अलग अलग दवाएँ दी जानी ज़रूरी होती हैं। उदाहरण के लिए एैलोपैथी में किसी भी व्यक्ति के सिर में दर्द के इलाज के लिए हम केवल एैस्परीन या पैरासिटेमॉल देते हैं। पर होम्यौपैथी में हमें लक्षणों के आधार पर कई एक दवाओं में से एक चुननी होती है। इस तरह से हम लक्षणों के एक समूह का इलाज करते हैं जिनमें व्यक्तिगत गठन (प्रकृती) भी शामिल होता है।
उदाहरण के लिए यह कहना काफी नहीं होता कि किसी व्यक्ति को नाके के भरे होने (जुकाम) की शिकायत है। इलाज के लिए और भी बहुत सारी बातें जानने की ज़रूरत होती है। जैसे कि क्या उस व्यक्ति को खुली हवा में रहना बेहतर रहता है या ऐसी ही और बहुत सी बातें। हमें होम्योपैथी के सही इलाज के लिए ऐसी बहुत सी बातों का पता होना ज़रूरी होता है। अत: इलाज व्यक्ति विशेष के आधार पर होता है। हौम्योपैथी में बीमारी और व्यक्तिगत कारकों के अनुसार बहुत सी पेचीदगियों का ध्यान रखना पड़ता है।
हानेमान के समय में एशिया से लेकर यूरोप के बन्दरगाहों तक हैजा फैल रहा था। उन्होंने उस समय बहुत से उपचार जैसे आरेसनिक, वैराट्रम, आलबम, कपूर और तॉंबा आदि का इस्तेमाल किया जबकि चिकित्सा की किसी भी और प्रणाली में इस बीमारी का कोई भी और उपचार नहीं था। इसके बहुत जबर्दस्त परिणाम निकले और इससे होम्योपैथी और हानेमान का बहुत नाम हुआ। यह बीमारी के कीटाणुओं के सिद्धान्त के आने से पहले की बात है। हानेमान उससे भी पहले यह कह पाए कि हैजा किन्हीं कीटाणुओं से होता है जो आँखों को दिखाई नहीं देते।
होम्योपैथी क्या कर सकती है उसकी काफी सारी सीमाएँ हैं। कभी-कभी स्वास्थ्य की हालत डगमगाते हुए जहाज जैसी होती है। हवा से इसकी दिशा बदल सकती है परन्तु अक्सर वो फिर से सन्तुलन हासिल कर लेता है और सम्भल जाता है। परन्तु कभी-कभी इस तरह मुड़ने वर जहाज की चीज़ें फिसल कर एक ओर पहुँच सकती हैं। इससे सन्तुलन और भी बिगड़ जाता है। यह फिर इस स्थिति में ही डूब भी सकता है। यह स्थिति आने से पहले कुछ किया जाना ज़रूरी होता है। लरपरवाही या गलत कदम जहाज के लिए धातक हो सकते हैं। इसी तरह से सही समय पर सही दवाएँ देने से व्यक्ति को फिर से स्वस्थ हो पाने मदद मिलती है। होम्योपैथी में असर होने में आमतौर पर समय काफी लगता है। पर कुछ परिस्थितियों में इन्तज़ार करने का समय नहीं होता।