होम्योपैथी की दवाएँ सभी बड़े शहरों में उपलब्ध होती हैं। ये सस्ती होती हैं और इनका सेवन आसान होता है क्योंकि ये केवल मुँह से ली जाने वाली या बाहर से लगाई जाने वाली होती है। दवाओं को सावधानी से बनाया जाता है। उन्हें खूब तनु/सूक्ष्म बनाया जाता है और इसलिए उनसे कोई भी गम्भीर नुकसान होने का खतरा नहीं होता।
यह ज़रूरी है कि दवाओं को ठीक से रखा जाए, गर्मी, सूरज की रोशनी और किसी भी तेज़ रोशनी और तीखी गन्ध से बचाया जाए। अलग-अलग दवाइयों को अच्छी तरह से बन्द होने वाली प्लास्टिक की बोतलों में रखा जाना चाहिए और सारी दवाओं को रखने के लिए लकड़ी का डब्बा अच्छा रहता है। आमतौर पर चार छोटी गोलियों (रोज़ तीन बार 15 दिनों तक 30 के आकार की 4 गोलियॉं लेनी होती हैं) से एक ड्राम बनता है।
पोटेंसी का चुनाव बीमारी पर भी निर्भर करता है। चिरकारी बीमारियों जैसे रूमेटिज़म, दमा, पामा आदि के लिए ज़्यादा पोटेंसी (200) की दवाएँ एक खुराक में दी जाती हैं (30 के आकार की 4 गोलियॉं)। तीव्र बीमारी के में जब तक बीमारी कम न हो हर रोज़ 3 से 4 बार दवा लेनी होती है। इस तरह से व्यक्ति शुरू में दवा दिन में दो बार और फिर दिन में एक बार ले सकता हैं।
यह पक्का करने के लिए कि शरीर दवा ठीक से ग्रहण कर सके, होम्योपैथिक दवा खाने के पहले और बाद में एक घण्टे में कुछ नहीं खाना चाहिए। किसी भी रूप में तंबाकू, शराब, तीखी गंध वाली चीज़ों, कॉफी, मसालेदार खाने और रात भर काम करने से परहेज़ करना चाहिए। खाने, पीने, सोने और शारीरिक काम करने में बहुत ध्यान देना चाहिए। इनमें से कुछ भी ज़्यादा होने से ठीक होने में बाधा पैदा हाती है। इसके अलावा इलाज में किसी भी तरह के बंधनों और आदेशों की ज़रूरत नहीं होती है।
भारत में इस्तेमाल होने वाली होम्योपैथिक दवाओं की पोटेंसी 30 से शुरू होती है। चिरकारी रोगों में 200 तक की पोटेंसी का इस्तेमाल होता है। तीव्र और अचानक होने वाली बीमारियों के लिए डॉक्टर मदर टिक्चर (द्रव रूप) का इस्तेमाल करते हैं (पोटेंसी 3, 12, 61)। अगर यह पक्का पता हो कि दवा कौन सी लेनी चाहिए और दी जा रही पोटेंसी काम न कर रही हो तो अधिक पोटेंसी की एक ही खुराक जैसे 1000, 10,000 या 1,00,000 इस्तेमाल की जा सकती है। पर याद रहे कि होम्योपैथी में अधिक पोटेंसी का अर्थ है कम सान्द्र पर अधिक सूक्ष्म और असरकारक दवा।
इलाज का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है सही दवा का चुनाव करना। लक्षणों के चित्र को छोटा सा भाग हर दवा के चुनाव का हिस्सा होता है। जब बीमार व्यक्ति अपने लक्षण बता रहा हो उसी समय उस दवा/दवाओं का चुनाव कर जो उन लक्षणों से मेल खाती हों।
इसके लिए चुनी हुई दवाएँ और लक्षण इस अध्याय में दिए गए हैं। ध्यान रहे कि शारीरिक और मानसिक दोनों ही लक्षण महत्वपूर्ण होते हैं। और अक्सर मानसिक लक्षणों से ही दवा का चुनाव होता है। उपचार तय करने के लिए हमारे पास दो तरीकें होते हैं। जो आगे दिए हैं।
जैसा कि पहले बताया गया है दवा का चुनाव बीमारी के बताए गए और दिखाई दिए लक्षणों पर और दवा से उनके मिलान पर निर्भर करता है। मटीरिआ मेडिका नामक होम्योपैथी की किताब में सैकड़ों दवाओं के लक्षण दिए गए हैं। इस अध्याय में आपको होम्योपैथी की कुछ चुनी हुई दवाओं के मानसिक और शरीरिक लक्षण मिलेंगे। किसी रोगी की बीमारी के लक्षणों पर ध्यान देते हुए हमें सही लक्षण वाली दवा खोजनी होती है उपचार खोजने के लिए शारीरिक और मानसिक दोनों लक्षण महत्वपूर्ण होते हैं। मानसिक लक्षणों से अन्तत: दवा का चुनाव होता है। बीमारी से अक्सर शारीरिक और मानसिक दोनों ही लक्षण प्रकट होते हैं क्योंकि इनसे शरीर और दिमाग दोनों पर असर होता है। एक होम्योपैथ को मेटीरिआ मेडिका के अध्ययन से लक्षणों के समूहों के बारे में पता होना ज़रूरी होता है। इस तरह से बीमारी के विवरण से होम्योपैथ के दिमाग में बहुत सारी दवाएँ आती हैं। जिनमें से उसे मेल खाने वाली दवा को चुनना होता है।
परन्तु इस किताब में बहुत छोटी मटेरिया मेडिका दी है। किसी बीमारी के नाम के तहत बनी सूची (जैसे आम जुकाम, मोतिझरा आदि) की होम्योपैथी में सीमित उपयोगिता है। इन दवाओं के इस्तेमाल के समय इन सीमाओं को न भूलें। किसी अवस्था में आप को मेटीरिआ मेडिका की नियमित किताबों और रिपर्टोरी ध्यान देना होगा।