गांजा
उगाने पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून के निहायत असरहीन होने के कारण यह पौधा काफी बड़े स्तर पर उगाया जाता है। इस पौधे का रस काफी नशीला और मादक होता है। यह कई तरह से इस्तेमाल होता है जैसे कि भांग (सूखी हुई पत्तियों और तने का मीठा घोल), गांजा (मादा पौधे के तने के पाउडर का धूम्रपान द्वारा सेवन), माजुन (भांग, चीनी, आटे, मक्खन को मिला कर बनाया गया काढ़ा) और हशीश (तने से निकला हुआ गाढ़ा हरा रस जिसे तम्बाकू के साथ धूम्रपान द्वारा लिया जाता है)।
गांजा एक बहुत ही प्रचलित दवा हुआ करती थी और तम्बाकू, धूम्रपान और शराब की तुलना में इसे धार्मिक रूप से अधिक स्वीकृति मिली हुई है। इस पौधे को उगाना और इसके उत्पादों का इस्तेमाल एक अपराध है। परन्तु यह बहुत ही बड़े स्तर पर उगाया जाता है और अंडरवर्ल्ड में इस व्यापार में काफी पैसा है।
खुराक और लत के स्तर के अनुसार लक्षण अलग अलग होते हैं। सबसे पहले तो जोश और उमंग का अहसास होता है। उसके बाद उल्टे सीधे भ्रम होते हैं, फिर बहुत हॅंसी आती है और भूख लगती है।
बाद में इससे बहुत नींद आती है, असमंजस होता है, उल्टी जैसा लगता है और बेहोशी भी हो सकती है। लंबे समय तक गहरी नींद आना गांजे का एक खास असर है। सांस न ले पाने के कारण मौत भी हो जाती है। चिरकारी विषाक्तता से भूख न लगने, कमज़ोरी, कंपकपी, भ्रम और यौन इच्छा में कमी की शिकायतें हो जाती हैं।
अगर किसी व्यक्ति गंभीर विषाक्तता के बाद आधे घंटे के अन्दर अन्दर इलाज के लिए लाया जाऐ तो नमक के पानी से पेट की धुलाई के बाद उसे अस्पताल भेजें।
ओपियम (अफ़ीम) पौधे का एक और उत्पाद है जो कि बहुत से देशों के गॉंवों में बहुत आमतौर पर इस्तेमाल होता है। हीरोइन ओपियम से बनाया गया और भी अधिक तेज़ उत्पाद है। अंतर्राष्ट्रीय अंडरवर्ड में इसमें भी बहुत पैसा है। भारत में इसे गार्द कहते हैं (यानी कि अशुद्ध ब्राउन शुगर)। इसका शुद्ध रूप सफेद रंग का होता है।
ओपियम पॉपी के बिना पके हुए फलों से बनाता है। यह पौधा भारत, चीन, मिस्र और रूस के कुछ हिस्सों में गैरकानूनी ढंग से उगाया जाता है। इससे शांती मिलती है, नींद आती है और उन्माद होता है। कुछ मॉं बापों को काम करने के लिए बाहर जाना होता है और घर में बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं होता तो वे अपने बच्चों को जर्बदस्ती सुला देने के लिए इसका दुर्पयोग करते हैं। यह बहुत ही खतरनाक है क्योंकि खुराक ज़्यादा हो जाने से बच्चा नींद में ही मर सकता है। आत्महत्या करने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। मोरफीन, ओपियम परिवार का सबसे सक्रिय प्राकृतिक पदार्थ होता है। दर्दनिवारक और आराम पहुँचाने वाले पदार्थ के रूप में इसका असर खुराक पर निर्भर करता है।
शुरूआत में इससे इन्सान बहुत ही उन्मुक्त महसूस करता है (यानी खूब खुश और बोलने वाला)। बच्चों में इस स्थिति में दौरे भी पड़ सकते हैं। इस स्थिति के बाद उंनींदापन और नींद आने की स्थिति हो जाती है। आँखों का तारा छोटा हो जाता है, चेहरा नीला पड़ जाता है, पूरे शरीर पर खुजली महसूस होती है। इसके बाद की अवस्था गहरी नींद, शरीर का तापमान कम होने, धड़कन, सांस की दर और रक्त चाप कम होने की होती है। इससे नींद में ही मौत हो सकती है। ओपियम की विषाक्तता को तीन लक्षणों से पहचाना जा सकता है: धीमी सांस, शरीर के तापमान में कमी, और आँखों के तारे का छोटा हो जाना।
गंभीर विषाक्तता की स्थिति में जल्दी से अस्पताल पहुँचाना ज़रूरी होता है। पेट की धुलाई से बची हुई ओपियम को निकालना संभव हो जाता है। ओपियम का असर खत्म करने के लिए एक विशेष दवा नालोपान दी जाती है। सांस के लिए कुछ बाहरी मदद दिए जाने की ज़रूरत होती है।
जिन लोगों को ओपियम की आदत होती है वे या तो मुँह से या धूम्रपान से इसका सेवन करते हैं। कुछ लोग इसके इन्जैक्शन भी लेते हैं। ये लोग बहुत ही जल्दी कम खुराक के आदि हो जाते हैं और इसलिए उन्माद की स्थिति में पहुँचने के लिए उन्हें अधिक खुराक लेनी पड़ती है। ऐसे लोगों को भूख न लगने, वजन घटने, कमज़ोरी, नपुसंकता, मानसिक गड़बड़ियों की शिकायत हो जाती है। ओपियम के व्यसनियों को आदत से छुटकारा पाने के लिए अस्पताल में इलाज करवाना पड़ता है। क्योंकि खुराक कम करने या बंद करने से बहुत ही तीव्र असर होते हैं। इसलिए इसके साथ दवाओं और मनोवैज्ञानिक सहयोग की ज़रूरत पड़ती है।