घर का वातावरण स्वास्थ्य के संदर्भ में काफी महत्वपूर्ण होता है। रोटी कपडा और मकान ये तो मनुष्य की बुनियादी की जरुरते है। भारत में देहातों में घरों की हालत जितनी खराब उससे शहरों में झुग्गी झोपडियों की भी खराब है। रहने की जाह, बस्ती की रचना, इर्दगीर्द का वातावरण या प्रदूषण, इनसे हर एक घर की कुछ मूलभूत जरुरते है। रहने का पक्का आवास एक मापदंड है, जिसमें कुछ बुनियादी सुविधाओं का होना जरुरी है। पर्याप्त जगह, कमरे, हवा का आना जाना पानी, पैखाना, (शौचालय) धुएँ का न होना, चूहे-साप आदि से रक्षा, जमीन पर साफ सफाई के लिये फर्श होना, धूप-ठंड से बचने के लिये रचना, मजबूती आदि इसके पहलू है। जाहीर है की गरीबी-अमीरी के भेद से मकान भी कम जादा दर्जे के होते है। लेकिन कई देशों में गरीबों को भी अच्छे घर मिले है। हमारे देश में भी कुछ प्रांतों में गरिबों के लिए घरों का अच्छा निर्माण हुआ है, जैसे की आंध्र प्रदेश। भारत में ईंट-पत्थर का रचना मजबूती के लिये ज़रुरी है। मिट्टी, घास, टिन आदि के घर कच्चे समझे जाते है।
२०१० की जनगणना के अनुसार शहरों में करीबन सात करोड लोग झुग्गी झोपडियों में रहते है। गांवों में लगभग ४५ फीसदी घर ठीक हलात में नही है। ग्रामीण इलाकों में लगभग ४० प्रतिशत मकान पक्के है। लेकिन अच्छे सस्ते आवास का तंत्र अब काफी प्रगत हुआ है। कई राज्यों में अब सस्ते घरों के लिये तकनिकी सहाय उपलब्ध है। अगर आपकी इच्छा मजबूत हो तो कुछ अच्छा रास्ता निकल सकता है।
घर में खिडकियों के इस्तेमाल से हवा का आवागमन होना चाहिए |
कमरों में बहुत सारे लोगों के रहने से और उनके ठीक से हवादार न होने से श्वसनतंत्र की बीमारियॉं हो सकती हैं। इसके अलावा जब बहुत सारे लोग थोड़ी सी जगह और चीज़े इस्तेमाल करते हैं, तो इनमें अक्सर स्वच्छता की कमी होती है और इससे संक्रामक रोग होने का खतरा रहता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एक व्यक्ति के लिए १००० घन फुट जगह होना ज़रूरी है। परन्तु बहुत से गॉंवों और शहरी झोपड़पटि्टयों में रह रहे लोगों के पास इतनी जगह होना असम्भव ही है।
हर व्यक्ति कम से कम कुछ बाल्टी पानी ज़रूर इस्तेमाल करके गन्दा पानी छोड़ता है। गॉंवों की गलियों और पिछवाड़ों में ऐसा पानी जगह-जगह जमा रहता है। इस पानी में मच्छर पैदा हो जाते हैं। अगर जगह हो तो पानी सोखने वाले गड्ढों और घर के आसपास सब्ज़ियों आदि का छोटा सा बगीचा बना लेने से इस समस्या का हल हो सकता है। नारियल, केला, पपीता या सेंजने की फली के पेड़ ज़्यादा पानी सोखते हैं।
पानी सोखने वाले गड्ढों के पास इनके लगाने से पानी का बढ़िया इस्तेमाल हो सकता है। शहरों की नकल करके बनाए गए ज़मीन के नीचे के निकास के तरीके के गटर नाले बनाने की बजाए यह तरीका ग्रामीण इलाकों में ज़्यादा उपयोगी है। इसके अलावा खुले हुए गटर नाले पानी के स्रोतों को दूषित भी कर देते हैं।
पानी सोखने वाले गड्ढे |
किसी निकासी वाले पाईप के पास १ मी चौडाई, लम्बाई और गहराई का एक गड्ढा खो दें। इसका आधा भाग इंटों की तहों, बड़े-बड़े कंकड़ों और फिर कुछ छोटे कंकड़ों से भर दें। इसके ऊपर सूराखों वाला एक बडा मटका रख दें। और फिर गड्ढे को कंकड़ों बजरी आदि से भर दें। मिट्टी के इस बर्तन में पाईप से पानी आता है। जब ये गन्दगी से भर जाए तो कभी कभार इसे साफ किया जा सकता है। इससे कंकड़ बजरी आदि की ऊपर की तह को बार-बार नहीं हटाना पड़ेगा। ऐसा गड्ढा हर रोज़ कई सौ लीटर पानी की निकासी कर सकता हे। इस तरह से पानी इकट्ठा भी नहीं होता और मच्छरों से भी बचाव हो जाता है। इस पानी का इस्तेमाल पौधे और पेड़ उगाने के लिए भी किया जा सकता है।