किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन सम्बन्ध के ९ से ९० दिन बाद बीमारी शुरू होती है। घाव संक्रमण के स्थान पर थोड़ीसी फुन्सी यानी सूजन के साथ शुरू होता है। जल्दी ही उस जगह पर छाला बन जाता है। महिलाओं में घाव योनि के बाहर या अन्दर या गर्भाशयग्रीवा में हो सकता है। पुरुषों में सबसे ज्यादा लिंग के ऊपरी सिरे पर होता है। मुँह के रास्ते यौन सम्बन्ध होने पर यह मुँह में भी हो सकता है। छाला काफी ठोस और दर्द रहित होता है। इस घाव में बडी तादाद में जीवाणू होते है, जो सूक्ष्मदर्शी से दिखाई देते है।
घाव की जाँच करते हुए दस्ताने ज़रूर पहनें क्योंकि यह बहुत ही ज्यादा संक्रमणशील होता है। इलाज करने से घाव कुछ ही दिनों में ठीक हो जाएगा। इलाज के बिना यह एक-दो महीनों में ठीक होगा। अगर इसका इलाज न हो तो यह सिफलिस की अगली अवस्था में पहुँच जाएगा। प्राथमिक सिफलिस के घावों से जाँघ में गिल्टियाँ हो जाती हैं। यह रबर की गोली जैसी होती हैं।
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एडस् बिमारी में मुँह में फफुंद बढना प्रमुख लक्षण है, यातायात के चलते यौन संक्रमण भी बेहद बढा है |
अगर संक्रमण का इलाज न किया जाए तो यह दूसरी अवस्था में पहुँच जाती है। ऐसा होने में आमतौर पर कुछ महीने लगते हैं। इस अवस्था में शरीर पर चकत्ते पड़ जाते हैं, मुँह में छाला हो जाता है, कई जगहों पर गिल्टियाँ हो जाती हैं और कभी-कभी मलद्वार पर भी छाला हो जाता है। निदान के लिए खून की जाँच ज़रूरी होती है। और पैन्सेलीन से इलाज से यह बीमारी पूरी तरह से ठीक हो जाती है।
दूसरी अवस्था के लक्षण भी इलाज से या इलाज के बिना कुछ समय में गायब हो जाते हैं। पर अगर संक्रमण का इलाज नहीं हुआ है तो यह दिमाग, हडि्डयों और दिल में घुस जाती है। जहाँ पर सिफलिस के घाव, (जिन्हें गम्मा कहते हैं) हो जाते हैं। इस अवस्था से इन अंगों में स्थाई रूप से खराबी आ जाती है। अगर दिमाग प्रभावित हुआ हो तो इससे दिमागी स्थिति _ भ्रान्ति हो जाती है, परिसरीय तंत्रिकाओं को नुकसान से हाथ-पैर कमज़ोर पड़ जाते हैं और संवेदना कम हो जाती है। दिल में मुख्यत: वॉल्व खराब होते हैं और प्रमुख महाधमनी पर असर पड़ता है। दिल की बीमारी से मौत हो सकती है। सही समय इलाज के चलते ज्यादातर मामलों में यह अवस्था नहीं आती है।
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सिफिलीस से बाधित गर्भ दुसरे तिमाही में अक्सर गिर जाता है |
सिफलिस की एक खास बात यह है कि संक्रमण खून में कई सालों तक रहता है। गर्भावस्था में इसके गम्भीर असर होते हैं। गर्भवती महिलाओं को सिफलिस होने के कारण कई एक गर्भपात, मरा बच्चा पैदा होने और बच्चे में जन्मजात गड़बड़ियाँ होने की घटनाएँ होती हैं। जन्मजात गड़बड़ियों में लिवर की बीमारियाँ, नाक का चपटा होना, हडि्डयों में विकार होना या त्वचा पर निशान होना शामिल हैं। सिफलिस एक बेहद खतरनाक और खुफिया बीमारी है। जनन अंग के हर घाव की जाँच सिफलिस को ध्यान में रखकर करना चाहिये। हर गर्भवती महिला के खून की जाँच करके देखना चाहिए कि उसे सिफलिस है या नहीं।
रक्तदान के पहले खून की सही जॉंच परख होती है
एचायव्ही एडस् संक्रमण कभी कभी खून से फैलता है
सिफलिस के लिए खून की जाँच (वीडीआरएल टेस्ट) बेहद महत्वपूर्ण है। खासकर उस अवस्था में जिसमें इसके लक्षण प्रकट नहीं होते। जिस व्यक्ति को सिफलिस है उसे और उसके यौन-साथी दोनों के खून की जाँच होनी चाहिए।
सिफलिस इलाज से ठीक हो सकती है। इसके लिए पैन्सेलीन दिया जाता है। लंबे आर्सेवाला पैन्सेलीन का एक इंजैक्शन सिफलिस ठीक कर देता है। परन्तु यह निर्णय डॉक्टर को ही करना चाहिए। क्योंकि सिफलिस के निदान और इलाज दोनों के लिए ही अनुभव और कौशल की ज़रूरत होती है। जो लोग पैन्सेलीन के प्रति संवेदनशील होते हैं उनके लिए ऐरिथ्रोमाईसीन एक अच्छा विकल्प है। ध्यान रहे कि गलत इलाज से यह बीमारी दवाइयों के प्रति प्रतिरोधक हो जाती है।
सुजाक एक आम यौन रोग है जिससे महिलाओं और पुरुषों में मूत्रमार्ग शोथ हो जाता है। मूत्र मार्ग से संबंध होने के कारण इसको प्रमेह कहते है, जिससे परमा शब्द आया है। यह सम्पर्क के दो या तीन दिनों के अन्दर ही हो जाता है। सही इलाज से यह बीमारी पूरी तरह से ठीक हो जाती है। गलत और अपर्याप्त इलाज से जनन अंगों को लम्बे समय के लिए और गम्भीर नुकसान पहुँचता है। चिरकारी सुजाक, महिलाओं में चिरकारी पेडू (श्रोणी) प्रदाहक रोग और बाँझपन का एक आम कारण है। समय से इलाज हो जाने से फालतू की परेशानी से बचा जा सकता है।
महिलाओं और पुरुषों में गम्भीर सुजाक का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण पेशाब करते समय जलन होना है। यह मूत्रमार्ग में संक्रमण और उससे शोथ हो जाने के कारण होता है। पुरुषों में आम शिकायत है मूत्रमार्ग में से पीप निकलना। कभी-कभी पेशाब करने से पहले सिर्फ पीप की एक बूँद निकलती है। मूत्रमार्ग शोथ से मूत्राशय और मूत्रवाहिनी (मूत्रनली) में भी शोथ हो जाता है। इसके बाद गुर्दे भी प्रभावित हो जाते हैं।
महिलाओं में सुजाक से योनिशोथ भी हो जाता है। योनि से यह संक्रमण गर्भाशय, डिम्बवाही नलियों और वहाँ से पेडू (श्रोणी) तक पहुँच सकता है। इससे पेडू (श्रोणी) में बहुत अधिक शोथ हो जाता है इससे तेज़ दर्द और बुखार भी हो जाता है।
जनन अंग की जाँच करने से मूत्रमार्ग में पीप दिखाई देती है। इसके अलावा मूत्रमार्ग में दबाने से दर्द होता है। शोथ के कारण महिला को योनि और पेडू (श्रोणी) में तेज़ दर्द हो सकता है। कुछ मामलों में स्पेक्युलम (खुल-मिट जानेवाला एक अवजार) से जाँच करने से गर्भाशयग्रीवा से पीप बहती हुई दिखाई दे सकती है।