बहुत पुराने समय से ही जड़ी बुटियों ने हमारे लिए दवाइयों का काम किया है। ऊष्म कटिबन्धिय देशों में बहुत सारी दवाई वाली जड़ी बुटियॉं होती हैं। परन्तु अब बदलते हुए परिवेश के कारण पेड़ पौधों की बहुत सी प्रजातियॉं खतम होती जा रही हैं। जड़ी बुटियॉं अनेकों प्रकार की हैं और आपको अपने क्षेत्र के कम से कम कुछ औषधीय पेड़ पौधों की जानकारी ज़रूर होनी चाहिए। किसी वैद या पेड़ पौधों के वैज्ञानिक की मदद लीजिए। अपनी दादी नानी से इस तरह की दवाओं के बारे में जानकारी इकट्ठी कीजिए। हमारे स्वास्थ्य सेवा में जड़ी बुटियों का बहुत योगदान हो। इनमें से कुछ उन दवाओं से भी अच्छी होती हैं जो हम बाज़ार से खरीदते हैं। स्थानीय औषधीय पौधों के इस्तेमाल से स्वास्थ्य सेवा पर खर्च होने वाले बहुत से समय और पैसों की बचत हो सकती है।
जड़ी बुटियों के बारे में बहुत सी किताबें मौजूद हैं। आप अपनी स्थानीय भाषा की ऐसी किताब ढूँढ सकते हैं। इस अध्याय के अन्त में भी कुछ जड़ी बूटियों का जिक्र है। परन्तु ज़रूरी नहीं है कि ये सब आपके क्षेत्र में उपलब्ध हों। बहुत से पौधे बारहमासी होते हैं। परन्तु इनके उपयोगी भाग अक्सर मौसमी होते हैं। कुछ पौधे ऐसे भी होते हैं जो केवल कुछ ही समय के लिए जीवित रहते हैं (अगस्त से जनवरी फरवरी तक)।
पौधे इकट्ठे करने का सबसे अच्छा समय सुबह होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस समय में इनमें ज़्यादा रस होता है। पर ओस सूखने तक का इन्तज़ार ज़रूर करें। नहीं तो यह नमी पौधों को खराब कर देता है। अगर आप पौधों को सुखाकर रखना चाहते हैं तो उन्हें धूप की बजाय छॉंव में सुखाएँ। और सुखाते हुए उन्हें उलटते-पुलटते रहें ताकि सभी भाग सूख जाएँ। अगर ऐसा न किया जाए तो नीचे की तरफ का मोटा हिस्सा नमी से गल कर खराब हो जाएगा। पूरी तरह से सूखने के बाद पौधे के हिस्से का भार एक तिहाई रह जाएगा। अगर उबालना आदि तय कर रखा हो तो ये मार्च में करें जब मौसम भी सूखा होता है। इससे इंधन की बचत भी होती है।
जड़ी बूटियों उबाले हुए सत्त (काढ़ा), ठण्डे सत्त (फाण्ट) और कल्क (ताज़े पौधों को पीस कर बनाएँ हुए लेप) जैसे साधारण रूपों में इस्तेमाल होती हैं। इन सब को तुरन्त इस्तेमाल करना होता है क्योंकि ये ज़्यादा समय तक नहीं चलतीं। ज़्यादा समय के लिए बचाने के लिए पदार्थो को इन रूपों में बदलना पड़ता है: चूर्ण, आसव – अरिष्ट (अल्कोहल में बना हुआ सत्त) पाक (चीनी के आधार वाला मिश्रण) चूर्ण से बनी हुई गोली की (गुटी) कहते हैं।
आप खुद भी आसव बना सकते हैं। उदाहरण के लिए कुमारी आसव को बनाने का तरीका इस तरह है : कुमारी/गुटी के रस को कपड़े में छान लें। ५०० मिली लीटर रस में ३०० ग्राम गुड, ५ ग्राम पीलीहर चूर्ण और ५ ग्राम धातकी के फूल डालें और इसे हल्के से बन्द बोतल में ६ हफतों के लिए रख दें। इसके बाद द्रव को हल्के कपड़े से छान लें। यह कुमारी आसव है।
पाक उबाले हुए सत्त से बनता है। जिसमें चीनी मिला दी जाती है और फिर तब तक गर्म किया जाता है जब तक यह लगभग सूख न जाए। हल्की आँच पर गर्म करते समय लगातार चलाना ज़रूरी होता है। पानी कम से कम बचना चाहिए क्योंकि नमी से पाक खराब हो जाता है। इन सब चीज़ों को चींटियों और कीड़ों से बचा कर रखें। घर में बनी औषधीय दवाएँ परिवार की ज़रूरतें पूरी कर सकती हैं। ये आमदनी का ज़रिया भी बन सकती हैं। ऐसी जड़ी बूटियों का इस्तेमाल करें जो पास में मिल जाती हों। औषधियों की खेती भी हो सकती है।
क्रमवृद्ध चिकित्सा का एक तरीका है जिसमें समय के साथ दवा की खुराक बढ़ाते जाते हैं। यह तरीका चिरकारी बीमारियों के लिए उपयोगी होता है। इस तरीके में पहली खुराक के गुणजों के रूप में दवा बढ़ाते जाते हैं। जैसे अगर १ ग्राम से शुरुआत की है तो धीरे धीरे कर के खुराक ११ ग्राम तक बढ़ाई जा सकती है। कुछ समय बाद इसी तरह से खुराक कम करते जाते हैं। यष्ठिमधु, पिप्पली, शतावरी, हल्दी आदि आप इस्तेमाल कर सकते हैं।
कुछ बीमारियों में यह तरीका काफी हद तक उपयोगी होता है – दमा और आमवात (रूमेटिज़म) में। दमे का दौरा रोकने के लिए यष्टिमधु, हींग, शतावरी या पिप्पली के चूर्ण से शुरुआत करें। एक ग्राम से शुरुआत करें। एक ग्राम से शुरुआत करें और ११ दिनों की खुराक ११ ग्राम तक बढ़ा दें। इसी तरह से ११ दिनों में खुराक कम करते जाएँ। आमवत के इलाज के लिए हल्दी, असाफोएटिडा और सरसों के तेल के मिश्रण से शुरुआत करें।