health law स्वास्थ्य कानून
कौटुम्बिक व्यभिचार

परिवार के ही किसी सदस्य या नजदीकी रिश्तेदार द्वारा जबरदस्ती यौन संबंध और शोषण भी कानूनी रूप से अपराध है। परन्तु दस में से नौ ऐसे मामले बदनामी के डर से छिपे ही रह जाते हैंया फिर इसलिए कि बलात्कार नाबालिग लड़के या बच्ची का हुआ होता है। इस लिए मॉं बाप को घर में अतिथी या रिश्तेदार या किरायेदार के आगमन पर चौकन्ना होना चाहिए।

अस्वाभाविक मौत

जीवन के लिये परिसंचरण तंत्र, श्वशन तंत्र और तंत्रिका तंत्र का काम करना जरूरी है। इनमें ये किसी तंत्र जैसे दिल, श्वसन या मस्तिष्क के रुक जाने से मौत हो जाती है। निदान वाले अध्याय में म़त्यु के लक्षणों का विवरण दिया गया है। म़त्यु के पश्चात चिकित्सक या पुलिस या परिवार के सदस्यो (घर पर म़त्यु होने पर) मरने वाले व्यक्ति के म़त्यु के कारण की पुष्टि करना जरूरी है कि म़त्यु स्वाभाविक है या अस्वाभाविक ।स्वाभाविक म़त्यु में व़द्ध अवस्था म़त्यु का कारण होता है।बिमारी के कारण होने वाली म़त्यु में चिकित्सक पुष्टि करता है।इसके अलावा किसी भी कारण से होने वाली अचानक म़त्यु अस्वाभाविक म़त्यु कहलाती है जिसकी म़त्यु का कारण जानने के लिये पुलिस द्वारा सरकारी चिकित्सक से पोस्टमार्टम कराया जाता है|
अस्वाभाविक मौतों उदाहरण् के लिये सभी तरह की सडक,पानी और हवा में होने वाली दुर्घटनाओं से म़त्यु सांप के काटने से होने वाली मौतें आत्महत्या, हत्या या बिना कारण अचानक म़त्यु । अस्पताल लाने के 24 घंटों के अन्दर अगर किसी व्यक्ति की मौत हो जाए तो उसे भी अस्वाभाविक माना जाता है। जलना, डूबना, जहर दिया जाना और लटकाना आदि घटनाओं से म़त्यु ।

दुर्घटना, हत्या या आत्महत्या?

जलने, डूबने या ज़हर दिए जाने आदी में पुलिस द्वारा सरकारी चिकित्सक से पोस्टमार्टम कराया जाता है।पोस्टमार्टम के बाद म़त्यु का कारण घटना (दुर्घटना है या आत्महत्या या हत्या)और म़त्यु का समय, म़तक की पहचान की पुष्ठि हो जाती है। यह केवल पारिस्थितिक प्रमाणों और गवाहों के बयान आदि के द्वारा ही सिद्ध किया जा सकता है।

गला घोंटना या लटकने से मौत

लटकने से हुई मौत, गला घोंटे जाने या चोट लगने में चिकित्सीय तथ्यों से पता चल सकता है कि असल में क्या घटना घटी होगी। हताहत के शरीर पर लगी चोटों से हिंसा के प्रमाण मिल सकते हैं। अपने आप रस्सी से गला घोंटने और किसी और द्वारा ऐसा करके मारे जाने पर अलग अलग तरह के चिन्ह दिखाई देते हैं। अगर रस्सी के निशान स्वर यंत्र के नीचे हों तो यह आमतौर पर हत्या के सूचक हैं आत्महत्या के नहीं। खुद को लटकाने में रस्सी के निशान हमेशा तिरछे होते हैं और गांठ ऊपर की ओर होती है। यह भी असम्भव है कि कोई व्यक्ति अपने को सांस रोक कर मार सके।

शादी के सात साल के अन्दर अन्दर हुई मौत

किसी भी महिला की मौत अगर शादी के सात साल के अन्दर हो जाए तो उसकी जांच पुलिस इन्सपैक्टर या उससे ऊँचे दर्जे के अधिकारी से होना अनिवार्य है। कानून में माना जाता है कि ऐसी कोई भी मौत में हत्या का शक होता है। महिला संगठन भी ऐसी जांच में मदद कर सकते हैं और प्रमाण जुटा सकते हैं।

मृत्युपरांत परीक्षण (पोस्टमॉर्टम जॉंच)

प्रत्येक अस्वाभाविक मौत में पोस्टमॉर्टम जॉंच होना ज़रूरी है। सबसे पहले पुलिस द्वारा जॉंच की रपट दाखिल की जानी होती है। इसमें शरीर, कपड़ों, चोटों और पहचान चिन्ह आदि का विवरण दर्ज किया गया होता है। स्थानीय सरकारी डिस्पेंसरी के चिकित्सा अधिकारी आमतौर पर यह जॉंच करते हैं।

जॉंच

यह ज़रूरी नही है कि पुलिस की जांच (पंचनामा) और डॉक्टर द्वारा पोस्टमॉर्टम जांच परिणाम एक से हों। अगर दोनों में म़त्यु के कारणो में कोई अंतर हो तो डॉक्टर /पंलिस समन्वय से दुबारा जांच कर सकते है।

रोशनी

अगर रात हो तो पोस्टमॉर्टम जांच नहीं की जाती। पोस्टमॉर्टम जांच दिन के समय में, सूरज के उगने से लेकर डुबने तक की जानी चाहिए । जिला अस्पतालों में रात को भी पोस्टमॉर्टम जांच किए जाने की सुविधा हो सकती है।

पोस्टमॉर्टम जॉंच

पोस्टमॉर्टम जांच में शरीर के बाहरी और अन्दरूनी अंगो की जांच दोनों शामिल होते हैं। सिर, छाती और पेट को फाड़ कर जांच की जाती है। मस्तिष्क, फेफड़ों, दिल, पेट, आंतों, गुर्दों और गर्भाश्य आदि को ध्यान से अलग किया जाता है और उनकी जांच की जाती है। किसी भी गंभीर बीमारी या चोट का कोई चिन्ह मिलने पर उसे नोट किया जाता है। जांच द्वारा जांच कर्ता मृत्यु के कारण और समय (लगभग) के बारे अपनी राय दे सकता है।

प्रयोगशाला में अंतरांग जॉंच

कभी कभी ऐसा भी होता है कि कोई भी चिकित्सीय राय देना तब तक संभव नहीं होता जब तक कि प्रयोगशाला में अंदरूनी अंगों की जांच न हो जाए। ऐसे में वह अंग पूरा या उसका हिस्सा बंद करके प्रयोगशाला में जांच के लिए भेज दिया जाता है। पुलिस इनको जांच के लिए इन्हें अपने साथ वैधिक प्रयोगशालाओं में लेकर जाती है। इसे अंतरांग जांच कहते हैं। मृत्यु के कारण के बारे में राय को तब तक गुप्त रखा जाता है जब तब प्रयोगशाला से जांच रपट न आ जाए। कभी कभी डॉक्टर और प्रयोगशाला दोनों की जांच के बावजूद मृत्यु का कारण बताया जाना संभव नहीं हो पाता। ऐसे में पोस्टमॉर्टम जांच अनिर्णनित रहती है।

शव को ले जाना

यह ज़रूरी नहीं है कि मृतक के रिश्तेदार उसके शव को पोस्टमॉर्टम जॉंच की जगह तक ले जाने की व्यवस्था करे। ऐसा इसलिए क्योंकि यह संबंधित पुलिस स्टेशन की ड्यूटी होती है। कभी कभी शव बहुत अधिक अपघटित हो चुका होता है और उसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाना संभव नहीं होता। ऐसे में पुलिस डॉक्टर वहीं बुलाकर पोस्टमॉर्टम जॉंच करने का इंतजाम कर सकती है।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

message-icon shyamashtekar@yahoo.com     ashtekar.shyam@gmail.com     bharatswasthya@gmail.com

© 2009 Bharat Swasthya | All Rights Reserved.