harmonहारमोन
डायबटीज़ के खतरे

diabetes-risk अल्पग्लूकोज़रक्तता और मधुमेहजन्य कीटोन अम्लमयता डायबिटीज़ के प्रमुख खतरे हैं। दोनों एक जैसे लगते हैं। सिर्फ खून की जाँच द्वारा ही दोनों में फर्क किया जा सकता है। पर दोनों का इलाज बिल्कुल अलग-अलग होता है।

मधुमेहजन्य कीटोन अम्लमयता

कीटोअम्ल, वसा से ऊर्जा बनाने की प्रक्रिया में साथ-साथ बनते हैं। डायबिटीज़ में ऊर्जा बनाने के लिए शरीर शक्कर के मुकाबले वसा पर ज्यादा निर्भर करता है। इसलिए खून में कीटोअम्लों की मात्रा बढ़ जाती है। कीटोअम्लों की मात्रा में अचानक वृध्दि काफी खतरनाक हो सकती है। इससे व्यक्ति कोमा (गहरी बेहोशी) में जा सकता है। कीटोअम्लों से साँस मीठी-सी हो जाती है और इसे पहचानना आसान होता है। अगर इस आपातकालीन स्थिति को समझा न जा सके और इसका इलाज न करा जाए तो इससे मौत भी हो सकती है।

अल्प ग्लूकोज़रक्तता

मधुमेह के जो मरीज मधुमेह की दवा लेते हैं उनमें अचानक खून में शक्कर की मात्रा में कमी आ सकती है। इसे अल्पग्लूकोज़रक्तता कहते हैं। मस्तिष्क क्योंकि ग्लूकोज़ के अलावा कोई भी ऊर्जा का स्रोत इस्तेमाल नहीं कर सकता है इसलिए खून में शक्कर की मात्रा में कमी से मस्तिष्क के कार्य धीमे पड़ सकते हैं। इसे पसीना आता है, दिल की धड़कन बढ़ जाती है और बेहोशी हो जाती है। इस आपातकालीन स्थिति को न पहचान पाने और इसका इलाज न कर पाने से मौत भी हो सकती है। सौभाग्य से अल्पग्लूकोज़रक्तता का इलाज काफी आसान है। मुट्ठी भर चीनी या मिठाई से ही काम हो सकता है। अगर बीमार व्यक्ति बेहोश हो गया हो तो अन्तर पेशीय ग्लूकोज़ देना ज़रूरी होता है।

डायबिटीज़ के लिए जाँच पड़ताल

डायबिटीज़ एक चिरकारी रोग है जो धीरे-धीरे बढ़ती है। कई एक मामलों में लक्षण बहुत देर तक दिखाई नहीं देते हैं। इसलिए पेशाब की बार-बार जाँच करवाते रहना ज़रूरी है। खासकर उन्हें जो डायबिटीज़ के लिए अधिक खतरे वाली श्रेणी में आते हैं।

किन्हें खतरा है?

यह बीमारी कुछ हद तक पारिवारिक बीमारी है। इसलिए जिन लोगों के माता-पिता को डायबिटीज़ हो उनमें इसके होने की सम्भावना ज्यादा होती है। बैठकर काम करने की दिनचर्या ज्यादा खतरनाक होती है। चालीस साल की उम्र के लोगों को कम उम्र के लोगों की तुलना में ज्यादा खतरा होता है। मोटापे से भी यह बीमारी होने का खतरा है।

लक्षण

आईडीडीएम और एनआईडीडीएम में फर्क है। टाईप 1 या जुवेनाईल या आईडीडीएम से वज़न में कमी हो जाती है। यह बीमारी तेज़ी से बिगड़ती जाती है। टाईप 2 या एनआईडीडीएम धीरे-धीरे बढ़ती है और इससे वज़न बढ़ता है। इलाज से पहले दोनों तरह की डायबिटीज़ के एक जैसे लक्षण

  • घाव जल्दी न भरना।
  • यौन इच्छा में कमी।
  • बार-बार पेशाब जाने की इच्छा, प्यास लगना, स्वस्थ इन्सान की तुलना में ज्यादा पेशाब आना।
  • चींटियाँ पेशाब की ओर आकर्षित होती हैं।
  • कपड़ों पर पेशाब के धब्बे दिखाई देते हैं। इससे पेशाब में शक्कर होने का शुरुआती अवस्था में संकेत मिल जाता है।
  • महिलाओं में योनि में बार-बार संक्रमण होना (खुजली और स्त्राव) और पुरुषों में शिश्न-मुण्ड-शोथ।
  • डायबिटीज़ से पीड़ित महिलाओं के बच्चे भारी हो सकते हैं। (4 किलोग्राम से भी ज्यादा भार तक)।
  • त्वचा पर बार-बार संक्रमण होना, फोड़े होना और खुजली होना।
  • खून में शक्कर की कमी से बेहोशी हो जाना। इससे कमज़ोरी और थकान भी होती है।
  • झुरझुरी और सुन्नपन और इसके बाद संवेदना खत्म होना। इससे डायबिटीज़ से होने वाले अल्सर हो सकते हैं।
  • पैरों में ऐंठन और तलवों में जलन।
डायबिटीज़ के लिए टेस्ट

इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई देने पर तुरन्त खून और पेशाब की जाँच करना ज़रूरी है। इसके अलावा 40 की उम्र के बाद सभी को और जिन लोगों में परिवार में डायबिटीज़ का इतिहास हो, उन्हें इसकी जाँच नियमित रूप से करवाते रहना चाहिए।

पेशाब में शक्कर
diabetes testurine-test
रासायनिक पट्टी से पेशाब में
ग्लुकोज की जॉंच करना आसान है|

पेशाब में शक्कर की जाँच बहुत ही आसान है। पट्टी डुबोने वाला तरीका सबसे आसान है। एक और तरीका है नीले रंग के घोल का इस्तेमाल। इस घोल को बैनेडिक्ट घोल कहते हैं। एक परखनली में बैनेडिक्ट घोल को उबालें। इसमें पेशाब के नमूने की पाँच बूँन्दें डालें। अगर घोल की रंग पीला-भूरा-लाल या काला हो जाए तो इसका अर्थ है कि पेशाब में शक्कर है। बीमार व्यक्ति घर ही में यह टेस्ट कर सकता है।

खून की जाँच

पेशाब में शक्कर की जाँच के टेस्ट के नतीजे हमेशा भरोसे के लायक नहीं होते हैं। कुछ लोगों में खून में अत्यधिक शक्कर होने पर भी पेशाब में शक्कर नहीं होती है। अत: यह टेस्ट पेशाब में शक्कर नहीं दिखाता है। इसलिए डायबिटीज़ नहीं है ऐसा निष्कर्ष निकालने के लिए ज़रूरी है कि खून की भी जाँच की जाए। खून की जाँच या तो खाना खाने के पहले होती है या बाद में। स्वस्थ व्यक्ति में भी खाने के बाद खून में शक्कर की मात्रा बढ़ जाती है। इसलिए खून की जाँच के नतीजों को इस हिसाब से समझना होता है कि नमूने किस समय लिए गए हैं। स्वस्थ व्यक्ति में खाना खाने से पहले खून में शक्कर की मात्रा 80 से 120 मिलीग्राम प्रति 100 मिली लीटर होती है। शिराओं के खून में खाने के बाद शक्कर की मात्रा 160 ग्राम प्रति 100 मिली लीटर होती है। इससे ज्यादा मात्रा होने का अर्थ है कि व्यक्ति को डायबिटीज़ है। उँगली में छेद करके पतली ट्यूब में इकट्ठे किए गए खून में खाने के बाद सबसे ज्यादा शक्कर की मात्रा होती है यानि 180 मिली ग्राम प्रति 100 मिली लीटर। शिराओं का खून टेस्ट के लिए ज्यादा भरोसेमन्द रहता है।

ग्लूकोमीटर

glucometer आजकल इलेक्ट्रॉनिक ग्लूकोमीटर मिलते हैं। यह प्रयोगशाला की जाँच के लिए एक विकल्प हैं। इनमें सूक्ष्म ट्यूबों में टेस्ट किया जाता है। अत: खाने के बाद के नमूनों में अधिकतम मात्रा 180 मिली ग्राम और खाने से पहले लिए गए नमूने या अचानक लिए गए नमूने में यह मात्रा 140 मिली ग्राम होनी चाहिए।

पीछे आगे

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

message-icon shyamashtekar@yahoo.com     ashtekar.shyam@gmail.com     bharatswasthya@gmail.com

© 2009 Bharat Swasthya | All Rights Reserved.