pregnancy childbirthप्रसव-विज्ञानजन्म के खतरे
दूसरे चरण में मदद करना
risky pregnancy
प्रसव का दुसरा चरण-बच्चे का बाहर आना

पानी की थैली फटने के बाद गर्भाशयग्रीवा पूरी तरह से खुल जाती है, इसके बाद ही प्रसव का दूसरा चरण शुरु होता है। अगर तेज़ दर्द होने के बावजूद भी थैली न फटे तो इसे एक चिमटी से छेद करके फाड़ देना चाहिए (ध्यान रहे कि ऐसा करते हुए शिशु के सिर को नुकसान न हो)। इससे यह प्रक्रिया जल्दी हो जाएगी।

  • अब माँ को हर बार दर्द के साथ बच्चे को नीचे धकेलने की (प्रवह्ण प्रयत्न) कोशिश करनी चाहिए। ध्यान रहे कि दूसरे चरण से पहले प्रवह्ण प्रयत्न की कोशिशें बेकार होती हैं। समय से पूर्व प्रवह्ण प्रयत्न से माँ बिना मतलब थक जाती है। इससे श्रोणी की पेशियों पर भी दबाव पड़ता है (इससे बाद में भ्रंश होने की संभावना भी होती है)। दर्दो के बीच में माँ को गहरी सांस लेने को कहें इससे ताकत बनी रहती है।
  • बीच बीच में बच्चे के दिल की धड़कन गिनते रहें। अगर दिल बहुत तेजी से धड़क रहा है (160 बार प्रति मिनट) या बहुत कम दर से धड़क रहा है (100 बार प्रति मिनट से कम) तो इसका अर्थ है कि बच्चे को खतरा है। ऐसे में माँ को तुरंत अस्पताल ले जाएं।
  • देखें की किरीट (शिशु का माथा) की स्थिति बन रही है या नहीं। किरीट के बाद बच्चा कभी भी आ सकता है। बच्चे को संभालने के लिए तैयार रहें।
  • अपने हाथों से अंदर की ओर से मालिश करके प्रसव नली को ढ़ीला करने की कोशिश करें। इसे ‘आयरनिंग’ कहते हैं। इससे बच्चे को जल्दी से बाहर आने में मदद मिलती है और प्रसव नली की चोट को कम भी किया जा सकता है।
  • अगर ज़रूरी हो तो भग (योनि द्वार) पर इंजेक्शन देकर संवेदना हीन करे। धीरे से चीरा लगना चाहिए। इसे भगछेदन कहते हैं। इससे द्वार बड़ा हो जाएगा और प्रसव में आसानी होगी। भगछेदन आमतौर पर पहले प्रसव के दौरान की जाती है। इसके कुछ फायदे होते हैं। जैसेकि इससे योनिद्वार बुरी तरह से नहीं फटता। परन्तु पहले प्रसव में भी सभी माँओं को इसकी ज़रूरत नहीं पड़ती। अगर बच्चे का सिर द्वार के मुकाबले बहुत बड़ा है तो भगछेदन ज़रूरत होती है। अनुभवी नर्स यह तय कर पाती है कि इसकी ज़रूरत है कि नहीं। यह पक्का कर लें कि आप को कटे हुए के ज़खम को ठीक करना आता है। यह आसान है पर इसके लिए थोड़ा सा अभ्यास ज़रूरी होता है।
  • जब बच्चे का सिर बाहर आ रहा हो तो धीरे धीरे बाहर खीचें। बेहतर होगा कि ऐसा बच्चे की बगल में अपनी उंगलियाँ डाल कर करें। धक्कों से बचाव करें। माँ को दर्द के साथ कोशीश जारी रखने के लिए कहें।
  • नाभि नाल का गले में लिपटा होना कभी कभी नाभि नाल बच्चे के गले में लिपटी होती है। अगर यह बहुत अधिक कसी हुई है तो इसे हाथ से थोड़ा सा ढीला कर लें। अपना शिकंजा नाल पर रखें और क्लेंप के बीच से काट दें। ऐसा करने में देरी से बच्चे का गला घुंट सकता है। जल्दी से यह कर पाने के लिए मदद हासिल करें।
तीसरे चरण में मदद करना

बच्चे के बाहर आने के बाद, नाड़ के बाहर आने का इंतज़ार करें। इस बीच बच्चे पर ध्यान दें। अकसर कोख से बाहर आए
बच्चे के लिए बाहर का वातावरण बेहद ठंडा होता है। नवजात शिशु को तुरंत कपड़ों में लपेट कर उसे गर्म रखें।

  • 10 से 20 सैकेंड के बीच हवा के मार्ग को साफ कर दें।
  • इसके बाद बच्चे को एक तश्तरी में रख दें। एक साफ कपड़ा अपनी छोटी उंगली में लपेट कर उससे बच्चे का मुँह और नाक साफ करें।
  • एक छोटी सी चूसनी की मदद से गले और नाक में से अंदर के बाहर निकाल दें। यह चूसनी एक इस्तेमाल किए हुए पर साफ प्लास्टिक के आईवी सैट से बनाई जाती है। इससे सांस लेने के लिए रास्ता खुल जाएगा। यह मदद बहुत ही ज़रूरी और महत्वपूर्ण है। इसके बिना पहली बार सांस लेने के साथ द्रव के फेफड़ों में जाने की संभावना होती है। ऐसा होने से चूषण निमोनिया हो जाता है और कई बार अचानक मौत भी हो जाती है।
  • सांस लेना शुरु करने के लिए बच्चे का ज़ोर से रोना भी ज़रूरी होता है। आपके गला साफ करने के बाद बच्चे के ज़ोर से रो लेने से सांस लेना शुरु हो जाता है। आप सांस शुरु करने के लिए बच्चे को पीछे से ठोक भी सकते हैं। दिमाग को ऑक्सीजन की ज़रूरत होती है और यह सांस लेने से ही मिलती है। अगर सांस लेना शुरु होने में देर हो जाए तो इससे मस्तिष्क को नुकसान हो सकता है। 1 से 5 तक की सारी प्रक्रियाओं में केवल दो मिनट का समय लगता है। अगर आप के पास मदद करने के लिए कोई और है तो वो यह सब कर सकता है और आप इस समय में माँ की देखभाल कर सकते हैं।
  • अगर नाभि नाल गले के आसपास नहीं है तो इसे शिकंजे से कसने और काटने से पहले इंतज़ार करें। यह तब करना चाहिए जब नाड़ में धड़कन होनी बंद हो जाए। आप नाभि नाल को बच्चे की तरफ करके निचोड़ सकते हैं। इससे बच्चे को थोड़ा और खून मिल जाएगा। इसी तरह से बच्चे को माँ के मुकाबले थोड़ी नीची जगह पर रखने का तरीका भी एक अच्छा तरीका है। इससे भी बच्चे को थोड़ा और खून मिल जाता है।
  • नाड़ को दो जगहों पर कस दें। फिर इसे बीच से काट दें। काटने के बाद इसे बच्चे की नाभि से दो इंच दूर पर दो जगहों पर साफ रोगाणुमुक्त धाग से बांध दें। नाड़ पर कोई दवाई या पट्टी लगाने की ज़रूरत नहीं होती। आजकल प्लास्टिक की चिमटियाँ मिलती हैं। आप धागे की जगह इनका इस्तेमाल भी कर सकते हैं। 3 – 4 दिनों में ये गिर जाती हैं, तब आप इन्हें उबाल कर फिर से दूसरे
    बच्चे के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। नाड़ को काटने के लिए हमेशा उबली हुई कैंची या एक नया ब्लेड इस्तेमाल करें।
  • बच्चे के सांस लेने और खून के संचरण का आकलन करें। अगर बच्चा ठीक से रो लिया हो, उसका रंग गुलाबी हो और उसकी पेशियाँ पुष्ठ हों तो उसका स्वास्थ्य अच्छा है। पर अगर वो धीमें धीमें रोए या न रोए, उसका रंग नीला हो और उसकी पेशियाँ लचीली हों तो इसका अर्थ है कि उसका दिल और दिमाग ठीक से काम नहीं कर रहा है। इससे बच्चे की मौत भी हो सकती है। ऐसे में तुरंत ये करें –
  • मुँह से मुँह जोड़ कर सांस दें। अगर संभव हो तो बच्चे को ऑक्सीजन दें।
  • चूसक द्वारा गले में से हवा का मार्ग रोक रहे स्त्राव बाहर निकालें।
  • नाभि शिरा में सोड़ा बाईकार्बोनेट का इंजैक्शन दें (5 मिली लीटर सोडा बाईकार्बोनेट और 5 मिली लीटर डैक्सटरोज़)।

इसके बाद नाड़ के बाहर आने पर ध्यान दें। 5 से 10 मिनट तक इंतज़ार करें। धैर्य न खोएं। 10 में से 9 मामलों में यह अपने आप बाहर आ जाती है। आप हल्के से गर्भाशय की मालिश कर सकते हैं जिससे संकुचन हो। और माँ से प्रवह्ण प्रयत्न करने के लिए कहें। इससे नाड़ बाहर आ जाती है।

अगर आप इसे खींच कर निकालना तय कर लें तो अपना बांया हाथ गर्भाशय के नीचे के हिस्से पर रखें और नाड़ को धीरे से व सावधानी से खींचें। अगर नाड़ अलग हो जाती है तो यह खींचने से निकल आएगी। जांच करें कि पूरी नाड़ बाहर आ गई है या नहीं। अगर गर्भाशय में कोई बड़ा टुकड़ा रह जाए तो इससे खतरनाक रक्तस्त्राव हो सकता है। छोटे टुकड़े स्त्राव के साथ बाहर आ जाते हैं। नाड़ के बाहर आने के लिए 20 मिनट से ज्यादा इंतज़ार न करें। चिकित्सीय मदद लें क्योंकि नाड़ के बड़े टुकड़े के गर्भाशय में रह जाने से माँ को बहुत अधिक रक्त स्त्राव हो सकता है। ऑक्सीटोसिन का इन्जैक्शन लगाएं। इससे गर्भाशय सिकुड़ सकता है। जिससे नाड़ बाहर आ सकती है।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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