digestive-systemपाचन तंत्र से जुडी गंभीर बीमारियाँ पाचन तंत्र
गर्भावस्था के दौरान हैपेटाईटिस

गर्भावस्था के दौरान हैपेटाईटिस, खासकर हैपेटाईटिस बी काफी खतरनाक होता है। इससे बच्चे के विकास पर असर तो पड़ता ही है परन्तु इससे उससे पहले ही मॉं की मौत ही हो जाती है। ऐसे में गर्भपात की ज़रूरत भी पड़ सकती है।

इलाज

अगर किसी महिला को गर्भ के दौरान हैपेटाईटिस हो जाए तो उन्हें दवाई भी नहीं दी जा सकती। दवाई से गर्भ में स्थित शिशु को नुकसान पहुँच सकता है। इसलिए अगर बीमारी के किसी स्रोत के बारे में पक्का पता हो तो गर्भवती महिलाओं को ध्यान रखना चाहिए कि वो उससे बीमारी न लगा ले। बुखार उतारने के लिए पैरासिटेमॉल दे सकते हैं। उल्टी और मतली के लिए प्रोमेथाज़ीन दे सकते हैं। अन्त:शिरा के माध्यम से द्रव दिया जाना बिलकुल ज़रूरी नहीं होता। । बल्कि अगर सलाईन सेट दोबारा इस्तेमाल किया जाए तो उससे रोगी को एक और संक्रमण का खतरा भी होता है। अन्त:शिरा के माध्यम से द्रव दिया जाना तभी ज़रूरी होता है जब रोगी मुँह से कुछ न ले पा रहा हो। ऐसा कभी-कभी ही होता है। ऐसे में सिर्फ अन्त:शिरा के माध्यम से द्रव दिए जाने की जगह रोगी को अस्पताल ले जाने की ज़रूरत होती है।

कुछ जगहों पर कुछ औषधीय मूल बॉंधने का रिवाज़ है। इससे कोई फायदा नहीं होता पर हॉं कोई नुकसान भी नहीं होता। इस रोग में पाचन तंत्र कमजोर पड़ जाता है इसलिए हल्का खाना खाना चाहिए। लीवर खराब हो जाने के कारण दवाइयॉं देने नुकसान पहुँचा सकता है। जल्दी ठीक होने के लिए आराम ज़रूरी है। बी प्रकार का हैपेटाईटिस यौन सम्बन्धों से एक से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। इसलिए किसी को यह रोग हो जाए तो उसे अपने साथी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए कोण्डोम का इस्तेमाल करना चाहिए। या फिर छह महीनों तक शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए। खून की जॉंच निर्दोष निकलने तक इंतजार करना चाहिये।

आयुर्वेद

erandeपीलिया एक बहुत आम पर खतरनाक बीमारी है। इस कारण से इसके लिए बहुत से स्थानीय इलाज उपलब्ध हैं। इसके अलावा इसके लिए वैद्य भी मिलते हैं जिन्हे पीलिया के औषधीय विशेषज्ञ कहते हैं। पीलिया के लिए कुछ औषधियॉं बहुत प्रचलित है।एक ऐसी औषधी है भूमि – अमाल की और दूसरी है अरण्ड की पत्तियॉं। ये औषधियॉं शायद सिर्फ वायरस से होने वाले पीलिया में ही फायदा करती है,और प्रकारों में नहीं। हैपेटाईटिस की सबसे अच्छी औषधी भूमि-अमालकी है। यह एक पौधा है जो खसकर बरसात के दिनो में दिखाई देता है। इसके पत्तों के निचले भाग में हरे रंग का दाना जैसा होता है यही इसकी पहचान है। ताजा पौधा ज़्यादा फायदेमन्द होता है। पर बरसात के अलावा अन्य मौसमों में सुखाया हुआ पौधा भी काम में लाया जा सकता है। जब तक रोगी ठीक न हो जाए पूरे का पूरा पौधा दो-तीन खुराकों में दे। इस इलाज से पीलिया का असर जल्दी कम होना शुरू हो जाता है,भूख फिर से लगने लगती है और पेट में गैस आदि की शिकायत में भी आराम मिलता है। एक और इलाज है अरण्ड की पत्तियों का रस रोज सुबह-सुबह लेना। यह तब तक दें जब तक रोगी पूरी तरह से ठीक न हो जाए।

आरोग्य वर्धिनी से वैसे ही स्वास्थ्य रहने के लिए फायदेमन्द है। इसकी दो गोलियॉं दिन में 3 बार दी जानी चाहिए। कुछ विशेषज्ञ कुमारी आसवा (दो चम्मच, दो चम्मच पानी के साथ), अरोग्य वर्धिनी साथ लेने की सलाह देते हैं। अवरोधी पीलिया में टट्टी सफेद रंग की होती है। इसमें तीन दिनों तक रोज दिन में तीन बार दो ग्राम नमक और दो ग्राम त्रिकाटू पाउडर दें। इससे बिलिरूबिन के बाहर निकलने का रास्ता खुल जाता है। पर ध्यान रहे कि कई बार बाइल बाहर निकलने में बाधा बाइल पथरी या कैंसर के कारण भी होती है। आयुर्वेद में पीलिया के दौरान तेल और वसा (चरबी) लेने की मनाही है। पर घी अच्छा माना गया है। घी गाय का – 10 से 20 मिलीलीटर रोज़ लेने से बाइल बनना कम हो जाता है। अमलतास के गूदे जैसे हल्के विचेरक से आँत में से ज़्यादा पित्त को निकालने में मदद मिलती है।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

message-icon shyamashtekar@yahoo.com     ashtekar.shyam@gmail.com     bharatswasthya@gmail.com

© 2009 Bharat Swasthya | All Rights Reserved.