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घरेलू पेय जल सुरक्षा के तरीके

शुद्ध पेयजल स्वास्थ्य का मूलाधार है। बचपन में अच्छे पोषण और विकास के लिये शुद्ध पेयजल बिलकुल जरुरी है। अतिसार, दस्त, पीलिया, पोलिओ आदि अनेक रोग अशुद्ध पेयजल से फैलते है। इन रोगों से सभी को नुकसान होता है लेकिन बच्चों का कुछ ज्यादा ही नुकसान होता है। शुद्ध पेयजल से यह सारा नुकसान हम टाल सकते है और दवाओं का खर्चा भी। सामुदायिक पेयजल प्रावधान अच्छा हो तब भी घरेलू सुरक्षा बरतना जरुर है। इसके लिये अनेक पद्धती और तरीके उपलब्ध है।

उबालना

उबालना कीटाणुओं को मारने का एक भरोसेमन्द तरीका है। परन्तु अगर पानी को २० मिनट तक न उबाला जाए तो इससे कुछ वायरस और बीजाणु नहीं मरते। बहुत से आम कीटाणु पानी के उबलना शुरू होने पर पहले पॉंच मिनट में ही मर जाते हैं। व्हायरस को मारने के लिए १५ मिनट उबालना चाहिए। उबालना एक खर्चीला तरीका है। क्योंकि इसमें इंधन लगता है जो कि काफी मॅंहगा और कम उपलबध होता है। परन्तु सस्ती बिजली या अन्य इंधन से घर पर पानी के उबाले जाने से समस्या सुलझ सकती हैं।

पेयजल सुरक्षा के लिये आसान तरीके

पेयजल २४ घंटे जमा रखना यह सुरक्षा के लिये सबसे आसान बात है। इससे मिट्टी और अन्य द्रव्य जमकर तल में जाते है। इसी के साथ सूक्ष्म जीव भी नष्ट होते है। कहना ये है की एक दिन का बांसा पेयजल वास्तवमें ताजे पेयजलसे जादा शुद्ध होता है। लेकिन इससे जादा बांसा पानी इस्तेमाल न करे। इस प्रक्रिया को तेज करने के लिये फिटकरी या सहजन के सूखे बीजों का चूर्ण प्रयोग करे। इससे ६-८ घंटों में पानी पर्याप्त सुरक्षित होता है।
ग्रामीण उपयोग के लिये वर्धा के एक संस्थाद्वारा एक सरल फिल्टर का सुझाव है। इसमे धान के भूसे की रक्षा, कंकर और दो बाल्टियों का इस्तेमाल किया है। इससे पेयजल से मोटे कण और ९८% जिवाणू अलग किये जाते है। इस फिल्टर क हर वर्ष दो बार साफ करके पुनर्भरण जरुरी है। या दस लिटर पानी में १-२ बूंद क्लोरीन द्रावण मिलाकर आधे घंटे में पानी सुरक्षित होता है। बोतल के लेबल पर इस बारेमें जानकारी होती है। पीलीया जैसे विषाणू संक्रमण के दिनोंमें इसकी मात्रा दुगनी करना चाहिये।
वैसेही पैराबैंगनी किरणें याने अल्ट्राव्हायलेट का प्रयोग भी हम कर सकते है। इसका एक सादा यंत्र ९ वॅट की ट्यूबसे २५४ एन.एम. किरण मिलते है। इसके लिये १२ व्होल्ट की बॅटरी या साईकिल का डायनामो भी चलता है। इस यंत्र के जरिये १० मिनिटमें २० लिटर पेयजल सुरक्षित होता है। आप यह यंत्र पडोसवाले परिवारोंको भी इस्तेमाल करने दे। इसकी कीमत २२०० से ३००० रुपयोंतक होती है।
अल्ट्राव्हायलेट किरणवाले आधुनिक यंत्र भी दुकोनोंमे मिलते है। इनकी किमत ६०००-७००० रुपयोंतक होती है। इसके लिये नल का पानी और बिजली जरुरी है। इससे प्रतिमिनट ४ लिटर पेयजल शुद्ध होता है लेकिन पैराबैंगनी किरण गंदा अपारदर्शी पानी शुद्ध नहीं कर सकते।
आजकल दुकानोंमें मेंब्रेन फिल्टर्स उपलब्ध है। इसी तरह आर.ओ. याने रिव्हर्स ऑसमॉसिस तकनिकवाले फिल्टर भी मिलते है। कुछ फिल्टर्स में क्षार भी निकाले जा सकते है। बोअरवेल के पानी के लिये इस फिल्टरका उपयोग कर सकते है।

रासायनिक शुद्धीकरण
Chlorine Drop

क्लोरीन घोल के प्रयोग से पेयजल
को हम जिवाणूमुक्त कर सकते है

Water Investigation

पानी कें जॉंच के लिए
अब तैयार कीट भी मिलते है

ब्लीचिंक पाउडर (जिसमें क्लोरीन होता है) पानी को कीटाणुरहित करने के लिए काफी उपयोगी होता है। इससे सभी तरह के बैक्टीरिया मर जाते हैं। ब्लीचिंग पाउडर बड़े और छोटे दोनों तरह के पानी शुद्ध करने के संयंत्र में इस्तेमाल होता है। और घर में भी इसका इस्तेमाल पूरी तरह से सुरक्षित है। घर में इस्तेमाल के लिए यह गोलियों या द्रव के रूप में मिलता है। ये गोलियॉं या घोल पानी में डाले जाते हैं। एक गोली २० लीटर पानी के लिए पर्याप्त है। इसके ३० मिनट बाद पानी इस्तेमाल किया जा सकता है। गॉंवों में स्रोत पर ही पानी को कीटाणु रहित कर देना ठीक होता है। इससे लोगों के समय और पैसे दोनों की बचत हो सकती है। लेकिन अक्सर महामारी फैलने के बाद ही इसके कारण लोग सजग होते हैं।

पेयजल शुद्धि के किए फिल्टर (छन्नियॉं)
Household Filters
इस घरेलू फिल्टर के नीचे
पानी की बालटी रखे

घरों में पानी फिल्टरों द्वारा भी शुद्ध किया जा सकता है। कैंडल फिल्टर व्हायरस को छोडकर अन्य सभी कीटाणुओं को अलग कर देता है। आयनों की अदला बदल करने वाले फिल्टर लवणों को अवक्षेपित कर देता है और इस तरह से कठोर पानी को मृदु बना देता है। परन्तु ये फिल्टर मॅंहगा होता है। इन्हें बीच-बीच में लवण के घोल से साफ किया जाना ज़रूरी होता है। पानी शुद्ध करने के लिए अल्ट्रावायोलेट फिल्टर नल में फिट कर दिए जाते हैं।

भूजल को शुद्ध करना

उशुद्ध कुआ और डगवैल और बोरवैल अब पूरे देश में पेयजल के सबसे महत्वपूर्ण स्रोत बन गए हैं। सिंचाई के कारण वाले और नदिया का पानी कम हो रहा है। ज़्यादातर अब बोरवैलों ने पानी के पुराने स्रोतों का स्थान ले लिया है। कुओं का फायदा यह होता है कि वो लोगों की रहने की जगह के पास होते हैं और उनसे सभी मौसमों में सुरक्षित पानी मिल पाता है। परन्तु इनकी ठीक से देखभाल बेहद ज़रूरी होती है।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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