सांस में बदबू आना एक आम समस्या है। अक्सर खुद की जगह दूसरे लोगों को इसका पता चलता है। पति या पत्नि या और लोगों को इससे परेशानी होती है। यह बदबू बैक्टीरिया द्वारा मुँह में सड़न के कारण होती है। खाने के कणों का फंसा रहना ही इसका मुख्य कारण है। इस लिए दाँतों को ठीक से साफ करने से इस समस्या से बचा जा सकता है। दाँतों में टार्टर जमा होने या और मसूड़ों की और कोई भी बीमारी हो तो उसे ठीक करना ज़रूरी है। सोने जाने से पहले व उठने के बाद दाँतों में ब्रश करना, और हर बार कुछ खाने व मीठा पीने के बाद ठीक से कुल्ला करना ज़रूरी है।
कभी कभी बदबू अपच से या खराब बदबू वाली चीज़ें जैसे प्याज़, लहसन या मूली आदि खाने से आती है या बदबू किसी आंतों की बीमारी से (जिससे खाना ज़्यादा समय तक बिना पचा रह जाता है), भी आती है। बुढ़ापे में मुँह से बदबू लार की कमी और कभी कभी मुँह के सूख जाने के कारण भी आती है। क्योंकि इससे बैक्टीरिया मुँह से नहीं निकलते और मुँह में सड़न पैदा करते हैं। बार बार मुँह धोने से इस समस्या से निपटा जा सकता है।
मुँह में छाले होना – या तो जीभ पर या फिर होठों और गालों के अंदरूनी भाग में – किसी भी उम्र में हो जाने वाली समस्या है। हर रोगी में इसके कारण का अलग अलग पता लगाना पड़ेगा।
मॉं का दूध पीने वाले बच्चे में मुँह में छाले आम तौर पर फफूंद के संक्रमण (कैंडिडा) से होते हैं। दर्द के कारण दूध पीने का बच्चे का मन भी नहीं होता। जीभ, मसूड़े और गालों के भीतरी भाग लाल दिखाई देते हैं। इनमें मुँह में सफेद से धब्बे भी नज़र आते हैं। इस रोग का निदान आसान है और एक बार जैनशन वायोलेट लगा देने से ही यह ठीक हो जाता है। अगर ज़रूरत हो तो दो तीन दिनों बाद दवा फिर से लगा देनी चाहिए। स्तनों के निपल को भी साफ करना ज़रूरी है।
वयस्कों में यह हालत कई तरह से दिखाई देती है। इन छालों की सतह लाल या सफेद हो जाती है और बेहद दर्द होता है। यह मुँह में कहीं भी हो सकता है। यह करीब एक या दो हफ्तों तक रहता है और धीरे धीरे गायब होता है।
कुछ लोगों में यह छाला बार बार होता है। शायद पाचन की गड़बड़ी के कारण। यह अक्सर मसालेदार भोजन करने के बाद हो जाता है। इस तरह इसके लिए आर्युवेद की गर्म खाने के सिद्धांत फिट बैठता है। कभीकभी चिरकारी अमीबियोसिस से यह हो जाता है। मानसिक परेशानी के चलते भी यह छाला हो जाता है।
इस छाले का इलाज मुश्किल है। यह आमतौर पर एक दो हफ्तों में खुद ही ठीक हो जाता है। इस छाले के लिए कोई भी ठीक इलाज नहीं है, पर कुछ लोगों को विटामिन बी (फोलिक ऍसिड) से फायदा होता है। मुँह की सफाई से बीमारी जल्दी ठीक हो जाती है। अल्सर की जगह पर ज़ाईलोकेन जैली नाम का संवेदना हारक लगाने से दर्द में कमी होती है। इससे बोलने व खाने में आसानी होती है। पर इस संवेदना हारक का असर केवल आधे घंटे रहता है। ग्लीसरीन बोरेक्स या फिटकरी का घोल लगाने से भी कुछ देर तक आराम पड़ता है।
कभी कभी लैक्टोबेसीलिस के साथ इलाज से अक्सर छाला ठीक हो जाता है। इन बैक्टीरिया से आंत में विटामिन बी कांपलैक्स बनता है। अगर स्थानीय लसिका ग्रंथियॉं सूज जाएं तो एंटीबायोटिक और ऐस्परीन दें। आंतो में स्थित जीवाणू विटामिन बी बनाते है, इसलिए इन जीवाणूओं का इलाज के रूप प्रयोग किया जाता है।
एक अन्य तरह की बीमारी है छालों के बिना मुँह अंदर से लाल होना। पॉंच दिन विटामिन बी कांप्लैक्स की गोलियॉं खाने से इस में फायदा हो जाता है। जीभ का लाल होना या कट फट जाना भी इसी तरह की तकलीफ है। इसमें भी इसी इलाज से फायदा होता है।
ऐसे मामलों में यह पता लगाना ज़रूरी है कि व्यक्ति का खाना क्या है। खाने में विटामिन बी देने वाली चीज़ें हैं या नहीं। विटामिन से भरपूर चीजें खाने से (जैसे बिना पॉलिश किया चावल, हरी पत्तेदार सब्ज़ियॉं) खाने से इस बीमारी से बचाव होता है।
कभी कभी कोई नुकीला या खुरदुरा दाँत मुँह के किसी भाग पर बार बार लगने से वहॉं छाला हो जाता है। अगर मुँह में एक ही जगह पर बार बार छाला हो तो दाँतों की जांच करें। आमतौर पर इससे तकलीफ का निदान हो जाता है। इलाज में किसी दाँतों के डाक्टर से दाँत घिसवाने की ज़रूरत होती है।
मुँह में होने वाले छाले का एक और कारण सल्फा दवाइयॉं (जो कि कोट्रीमोक्साज़ोल – सल्फा का जोड़ का भी हिस्सा है) भी हैं। इसलिए रोगी से इन दवाइयों से पहले कभी हुई प्रतिक्रिया के बारे में पूछिए। यह छाले आमतौर पर कई सारे होते हैं एक नहीं। सबसे पहले दवाई देना बंद करें। संक्रमण से बचाव के लिए बार बार मुँह धोने की सलाह दें। आराम पहुँचाने वाला द्रवीय खाना जैसे दें। ठीक होने में कुछ दिन लगते हैं। फोलिक ऍसिड की गोली देनेसे छाले जल्दी भर आते है।
बुखार और खासकर वायरस से होने वाले बुखार में मुँह में छाले हो जाते हैं। ये अपने आप ही ठीक हो जाते हैं। सिर्फ मुँह धोना और ज़ाईलोकेन जैली लगाना ज़रूरी है।
यह बीमारी है मुँह में एक लंबे समय तक रहने वाला बिना दर्द वाला चकत्ता। यह या तो लाईकन प्लेनस हो सकता है या कैंसर के पहले का घाव। किसी भी स्थिति में ऐसे चकत्तों के बारे में जल्दी से जल्दी विशेषज्ञ की सलाह ज़रूरी है।
आर्युवेद में कहा गया है कि जिन लोगों में मुँह में घाव हों उनकी शौच की आदतों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। अगर किसी भी तरह का कब्ज़ हो तो सबसे पहले उसे ठीक करना चाहिए। इसबगोल, त्रिफला, अमलतास या अरण्ड के तेल जैसा कोई मृदुविचेरक (सारक) फायदेमंद हो सकता है। विरेचन के बाद एक चम्मच घी ले लेने से अच्छा रहता है। मुँह में घाव वाले सभी रोगियों के लिए एक आम सलाह हे कि वो गर्म, मसाले दार और खट्टी चीज़ें न खाएं। मुखपाक की जगह का इलाज करने से ज़्यादा ज़रूरी है कि शरीर के अंदर की गड़बड़ी ठीक की जाए।
एक और इलाज है सोने से पहले छाले की जगह पर घी और मुलैठी का मिश्रण लगाना। हल्दी के रोगाणु विरोधी गुण के कारण इसको लगाने से भी फायदा होता है। फिटकरी के पानी से कुल्ला करने से भी कुछ मिनटों के लिए दर्द में आराम मिलता है।
मुँह के कोनों में कटाव भी विटामिन बी की कमी से होता है। इसमें भी विटामिन बी दिए जाने से फायदा होता है।