पहले स्थाई चर्वणक दाँत छ: साल की उम्र में निकलने शुरू होते हैं जबकि दूध के दाँत अभी भी मौजूद होते हैं। इससे हम में से काफी लोगों को लगता रहता है कि ये भी जेसे दूध के दाँत हैं। इसलिए हम अक्सर इनका ठीक से ध्यान नहीं रखते। पहले स्थाई दाँतों के बाद पहले ऊपर के छेनी निकलते हैं। इसके बाद और दाँत निकलते हैं। ८ से ९ साल की उम्र में स्थाई दाँत, दूध के दाँतों की जगह लेना शुरू कर देते हैं। १२ से १६ साल की उम्र में करीब २८ दाँत निकल चुके होते हैं।
इन २८ दाँतों के बाद चार मोलर, दो ऊपरी व दो नीचे की अकल दाढें १८ साल की उम्र के बाद कभी भी निकलती हैं। कभी कभी बुढ़ापे में भी। किसी किसी व्यक्ति में तो ये निकलते ही नहीं हैं।
अगर अकल दाढ़ें न निकलें तो एक व्यक्ति के पास खाना चबाने के लिए कम दाँत होते हैं। इससे बाकी दाँत में ज़्यादा जल्दी टूट फूट होती है। ठीक से पके व लेई जैसे खाने के लिए यह कोई गंभीर समस्या नहीं होती। कई बार अकल दाढ़ों के निकलने के समय बेहद दर्द होता है।
विकास क्रम में मनुष्य की खोपड़ी तो पूरी तरह से विकसित हो चुकी है परन्तु जबड़ा नहीं। इसलिए तीसरी श्रेणी के दाढ के दाँतों के लिए जगह नहीं बचती। इससे कई लोगोमें दाँत जबडे में अटक के रहते है यह कभी कभी दर्दनाक होता है।
दाँत हड्डियों में जमे हुए होते हैं। परन्तु यह हिस्सा गुलाबी, मांसल ऊतकों से ढ़ंका रहता है जिन्हें मसूड़े कहते हैं। मसूड़ों का स्वास्थ्य दो बातों पर निर्भर रहता है: सफाई और विटामिन सी। टार्टर और चकत्ता (प्लेक) की परत मसूड़ों के लिए नुकसानदेह होती है। साथ ही किसी भी रूप में तंबाकू भी मसुडे के लिए हानिकारक होता है ।
जीभ और गाल खाने को दाँतों के पास पहुँचाते हैं। दाँतों व लार की मदद से लगभग सारा खाना लेप जैसा बन जाता है। अगर हम खाने को ठीक से न चबाएं तो पेट के लिए इसे पचाना मुश्किल होगा जिससे अपच की शिकायत होने लगेगी। इसीलिए दात खराब होने पर बूढे लोगों की पेट की तकलीफ होने लगता है।
प्लेक दाँतों के ऊपर इकट्ठी हो जाने वाली एक पतली सी परत होती है। इसमें बहुत से नुकसानदेह बैक्टीरिया होते हैं। अगर खाने के कण मुँह में रह जाएं तो प्लेक बहुत तेज़ी से बढ़ता है। मीठी चीज़ें इसके लिए खासतौर बेहद बुरी हैं। प्लेक के बैक्टीरिया मीठे पर्दाथों पर क्रिया करके एसिड बनाते हैं जिससे दाँत खराब हो जाते हैं। इस सब में केवल ३० मिनट का समय लगता है। बार बार मुँह धोने, नियमित ब्रश करने व हाथों से मालिश करके मसूड़ों की सफाई करने से दाँतों को प्लेक से बचाया जा सकता है।
हम अक्सर दाँतों पर एक सख्त पीला पदार्थ जमा हुआ देखते हैं। यह मुँह के स्वास्थ्य का एक भयानक दुश्मन है। यह पदार्थ मात्रा में बढ़ता जाता है, और दाँतों की सतह को नुकसान पहुँचाता जाता है, मसूड़ों को ऊपर उठा देता है और इससे खाली जगह बन जाती है और हड्डी की पकड़ कमज़ोर हो जाती है। इससे दाँत जल्दी गिर जाते हैं। मसूड़ों का एक और बहुत आम संक्रमण पायरिया भी टार्टर से ही जुड़ा है। ठीक से दाँत साफ न करना टार्टर का मुख्य कारण होता है। यह अक्सर दाँत के उन भागों में जमा हो जाता है जिन तक पहुँचना आसान नहीं होता। जैसे कि दाँतो के बीच और दाँत का पीछे का हिस्सा। एक बार टार्टर जमा हो गया तो वो ब्रश करने से नहीं हट सकता। इसके लिए दाँतों के बीच खुरचने की ज़रूरत होती है। स्वास्थ्य कार्यकर्ता खुरचने का तकनीक (स्केलिंग) करना सीख सकते हैं। इसके लिए मरीज़ को बिठाने के लिए एक कुर्सी, एक उपकरण और थोड़े से कौशल की ज़रूरत होती है। स्केलिंग की ज़रूरत हर छ: महीने या एक साल में पड़ सकती है।
अगर बारह साल से कम उम्र के बच्चों को टैट्रासाइक्लीन या डोक्सीसाइक्लीन दी जाए तो इनसे दाँत बेरंग और खराब हो जाते है। गर्भावस्था के दौरान भी ये दवाएं देने से बचना चाहिए क्योंकि इनसे भ्रूण के दाँतों को नुकसान पहुँचता है। इनसे दाँतों में दाग आ जाते हैं और वो कमज़ोर भी पड़ जाते हैं।
दाँत के संक्रमण से गाल की सूजन |
दाँत का दर्द हर उम्र की एक बहुत आम तकलीफ है। इसके कुछ कारण निम्नलिखित हैं – इनेमल का हट जाना जिससे अंदर का डेन्टाइन खुल जाता है। और इससे खट्टी, गर्म और ठंडी चीज़ों से दाँत मे दर्द होता है। बहुत जोर से या बहुत ज्यादा ब्रश करने से भी एनामल घिस जाता है। दाँत में टीस मारकर दर्द होता है। दाँत या जड़ के नीचे की हड्डी में पीप जमा हो जाने के कारण गाल में सूजन होती है।
अगर दाँत टूट गया हो तो गर्म या ठंडा खाना खाने या चबाने से भी दर्द होता है। हल्के हल्के टोंकने से यह दर्द फिर से होने लगता है, और इस तरह दाँत के टूटने का पता भी लगाया जा सकता है। गाल की हड्डी में सायनूसाईटिस अक्सर दाँत के दर्द जैसा लगता है।
परन्तु इसमें एक साथ कई सारे दाँतों पर असर होता है। यह दर्द एक जगह पर नहीं होता है और ठीक से समझ भी नहीं आता कि कहॉं हो रहा है। सायनूसाईटिस में केवल ऊपरी जबड़े के दाँतों पर असर होता है। दाँत के दर्द का उपचार करने से पहले यह समझना ज़रूरी है कि इसका कारण क्या है। ऐस्परीन या आईबूप्रोफेन जैसी दर्द निवारक दवाएं कुछ समय के लिए दर्द से छुटकारा दिला सकती हैं। परन्तु एक बार इनका असर खतम होने पर दर्द फिर शुरू हो जाता है। बारबार आनेवाला दर्द हो तो डॉक्टर को दिखाना जरुर है।