respirationश्वसन तंत्र की गंभीर बीमारियाँ श्वसन तंत्र और उसकी सामान्य बीमारियाँ
कृमी, फफूंद से ऍलर्जिक दमा-खॉंसी
कारण

यह सूक्ष्म परजीवियों के कारण होने वाली एलर्जी वाली खॉंसी है। कुछ कृमियोंके जीवनचक्र में एक फेफड़े वाली अवस्था होती है। यानि कि एक अवस्था जिसमें कीड़ों का एक सूक्ष्म रूप खून के द्वारा फेफड़ों में पहुँच जाता है। इससे फेफड़ों के ऊतकों खासकर कि हवा की नलियों में हल्का शोथ हो जाता है। इससे खॉंसी, हल्का बुखार और कभी-कभी सॉंस फूलने की शिकायत होती है।
खॉंसी के सभी आम इलाज कर लेने के बावजूद यह समस्या बनी रहती है। इसका कारण यह होता है कि ये कीड़े जीवाणु नाशक दवाओं और खॉंसी के अन्य इलाजों के प्रति प्रतिरोधी होते हैं (यानि इन दवाओं का इन कीड़ों पर कोई असर नहीं होता) । उन क्षेत्रों में जहॉं कृमि एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य समस्या हैं, यह हालत बहुत आमतौर पर मिलती है। इस रोग में खून में एक तरह की सफेद रक्त कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाती हैं। अगर सूखी खॉंसी और दमा लगातार रहे और इस पर खॉंसी के किसी भी इलाज का कोई असर न हो तो ये फेफड़ों में परजीवियों के कारण हो सकती है। गीली हवामें फफूंद बढनेसे भी ऐसी बीमारी हो सकती है नये फूल फसल आनेपर भी इनके पराग हवामें फैलकर फेफडोंमे प्रविष्ट होकर ऐसी बीमारी हो सकती है।

इलाज

अगर आप का गॉंव हाथी पॉंव (फाईलेरिआसिस) प्रभावित क्षेत्र में है तो डीईसी (डाईइथाइल कार्बामाज़ीन) की गोलियों से पूरा आराम मिल सकता है। अगर आपके क्षेत्र में हाथी पॉंव की समस्या आम नहीं है तो कृमी का संक्रमण ठीक करने के लिए मैबेडाज़ोल या आलबेन्डाज़ोल का प्रयोग करें। ये दवाएँ आँतों के कीड़ों के खिलाफ भी काम करती है।
कोई और दवा देने की ज़रूरत आमतौर पर नहीं पड़ती। अगर खॉंसी बहुत ज़्यादा आ रही हो तो उसे रोकने के लिए कोडीन उपयुक्त है। उन रोगियों में जिन्हें दमे की शिकायत भी हो सालब्यूटामोल देना ज़रूरी हो जाता है। अगर दो हफ्तों में कोई फायदा न हो तो डॉक्टर के पास भेजें। ये तपेदिक या कोई और बीमारी हो सकती है।

आर्युवेद

आयुर्वेद में इसके लिए भल्लातकासव (भेल का सत्त) देने की सलाह दी जाती है। भल्लातकासव में शोथ विरोधी या दमा विरोधी गुण हैं। पके हुए फल से घर में ही दवा बन सकती है। एक फल में लोहे की एक साफ कील से छेद करें। फिर इस कील को एक कप दूध में डालें । इससे थोड़ा सा भल्लातक तेल दूध में पहुँच जाता है। यह दूध अब इस्तेमाल के लिए तैयार है। यह बच्चों में ज़्यादा उपयोगी है। इसे सात दिनों तक रोज़ एक से तीन बार दिया जाना चाहिए। हर बार इसे ताजी बनाना चाहिए।

छाती में पानी या पीप होना
कारण

फेफड़े दो परत वाले आवरण से ढॅंके रहते हैं। इन्हें फुप्फुसावरण कहते हैं। इन दोनों के बीच जगह होती है। आम तौर पर इस जगह में द्रव की एक पतली सी परत रहती है। फुप्फुसावरण में संक्रमण से यह द्रव अधिक स्त्रावित होने लगता है और छाती की गुफा में इकट्ठा होने लगता है। इस तरह छाती में द्रव इकट्ठा होने से फेफड़े दब जाते हैं। इसका सबसे आम कारण फेफड़ों का तपेदिक है।
अगर इस द्रव में पीप भी हो तो इस हालत को एमपयीमा (छाती में पीप) कहते हैं। और इसका कारण आमतौर पर बैक्टीरिया से होने वाला निमोनिया होता है।

लक्षण

अगर द्रव इकट्ठा होने की प्रक्रिया धीमी है (जैसे कि तपेदिक में) तो या तो कोई लक्षण दिखेंगे ही नहीं या बहुत ही कम लक्षण दिखेंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे शरीर में दो फेफड़े हैं और एक के खराब होने पर दूसरा उसका काम करता रहता है। परन्तु अगर द्रव अचानक इकट्ठा हो (जैसा कि बैक्टीरिया से होने वाले निमोनिया में होता है) तो इससे सॉंस फूलती है। इसके अलावा लक्षण हैं बुखार और वज़न घटना।
छाती की जॉंच करने पर बीमारी वाली तरफ एक शान्त क्षेत्र महसूस होगा। उस तरफ के फेफड़े का एक हिस्सा काम नहीं करता। और उस क्षेत्र में से सॉंस की आवाज़ नहीं आती। इसके अलावा, द्रव के कारण अन्दरुनी भाग से भी कोई आवाज़ नहीं सुनाई देती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि द्रव आवाज़ के एक जगह से दूसरी जगह पहुँचने के लिए अच्छा माध्यम नहीं है। यानि अन्दर भरा द्रव के कारण अन्दर की आवाज़ बाहर से नहीं सुनाई देती, ठीक वैसे ही जैसे हमें पानी के अन्दर होने पर बाहर की आवाज़ सुनाई नहीं देती है। उँगली से टोंकनेपर मंद सी आवाज़ आती है। जैसे पानी भरे गुब्बारे पर टोंकने का आवाज आएगा।

एक्स-रे और द्रव निकालना

अगर ऊपर बताए लक्षण दिखें तो रोगी को तुरन्त डॉक्टर के पास भेजना चाहिए। अगर छाती में आधे लीटर से ज़्यादा द्रव होगा तो छाती के एक्स-रे आसानी से निदान हो जाएगा। अगर ज़रूरत होगी तो डॉक्टर इस द्रव को एक सुई से खींच कर निकाल देगा। शोथ का क्या कारण है। इसके अनुसार उपयुक्त जीवाणु रोधी दवाई दी जाएगी। अगर यह तपेदिक है तो लम्बा इलाज, रोगी की जॉंच करते रहने और देखभाल की ज़रूरत होगी।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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