child-health-icon बच्चों का पोषण और कुपोषण
नवजात गहन चिकित्सा इकाई

कुछ अस्पतालों में समयपूर्व पैदा हुए बच्चों की देखभाल के लिए खास इकाई होते हैं। इन नवजात चिकित्सा इकाइयों में कांच के ट्रे होते हैं जिनमें सही मात्रा में हवा, गर्मी और नमी होती है। इन इकाइयों में इन बच्चों को दूध पिलाने की भी खास व्यवस्था होती है। मॉं का दूध भी निकाला जाता है और बच्चे को बड़े ध्यान से पिलाया जाता है। नवजात गहन चिकित्सा इकाई के नियंत्रित वातावरण में सही गर्मी और संक्रमण की कम गुंजाइश होती है। इसलिए यहॉं बच्चे के ज़िंदा रह पाने की संभावना ज़्यादा होती है। बच्चों को कुछ हफ्तों के लिए इन इकाइयोंं में रखा जाता है। उसके बाद वो बाहर की परिस्थितियॉं झेल पाने लायक हो जाते हैं। यह बदलाव धीरे धीरे लाया जाता है।

ये बच्चे क्योंकि तापमान के प्रति संवेदनशील होते हैं और नवजात गहन चिकित्सा इकाई तक ले जाए जाने के बीच संक्रमित हो सकते हैं इसलिए इन्हें वहॉं पहुँचाने के लिए भी खास तरह के डिब्बों का इस्तेमाल किया जाता है। कुछ ग्रामीण अस्पतालों में इस तरह के डिब्बे होते हैं। नवजात गहन चिकित्सा इकाइयों वाले अस्पतालों से भी इस तरह के डिब्बे मिल सकते हैं।

नवजात गहन चिकित्सा इकाइयों में यह सुनिश्चित हो जाता है कि वो बच्चे जिनका ज़िंदा रह पाना अन्यथा मुश्किल था, बच जाते हैं और बाद में अन्य बच्चों जैसे बढ़ सकते हैं। पर इन सुविधाओं की कीमत बहुत ही ज़्यादा होती है। अत: ये अधिकांश परिवारों के बूते के बाहर होती हैं। बहुत से बच्चों को घरों में ही उचित देखभाल से बचाया जा सकता है।

सही पोषण देने और चल रही बीमारी को ठीक कर देना दोनों ही उपचार के दो महत्वपूर्ण उद्देश्य हैं।

क्र. क्वाशिओरकोर (ब्लोटिड बच्चा) सूखारोग (वेस्टिड  बच्चा)
०१ भोजन
के बीच अंतराल होने से शरीर के प्रोटीन इस्तेमाल हो जाते हैं। इससे शरीर
में पानी इकट्ठा होने से सूजन आ जाती है। बालों का रंग हल्का पड़ जाता है
और वो आसानी से टूटने लगते हैं।
भोजन
के बीच अंतराल होने से शरीर के अंदर की वसा का इस्तेमाल हो जाता है जिससे
शरीर दुबला पतला होने लगता है और त्वचा लटक जाती है (जिससे झुर्रियॉं पड़
जाती हैं)। हाथ पैरों भी बेकार होने लगते हैं।
०२ आँखें पीली पड़ने लगती हैं और भारी हो जाती हैं। बच्चा निष्क्रिय हो जाता है। और खेलने कूदने से टाल देता है।

आँखों की चमक बरकरार रहती है और बच्चा ध्यान भी लगाता है।

०३ बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है और बहुत रोता है। उसे भूख नहीं लगती। इसलिए उसे खाना खिलाना मुश्किल होता है।

भूख लगती रहती है, इसलिए ठीक होना ज़्यादा आसान होता है।

०४ त्वचा
का रंग उड़ जाता है और उस पर जगह जगह संक्रमण हो जाता है। इसके कमज़ोर पड़
जाने के कारण इसमें से कभी कभी कतरे भी निकलने लगते हैं।
त्वचा में झुर्रियॉं पड़ जाती हैं पर इसके अलावा त्वचा सामान्य ही रहती है।
०५ पैरों के ऊपरी भाग दुबलेपतले लगते हैं और निचले भाग में सूजन होती हैं। हाथ पैर दुबलेपतले लगते हैं, पर सूजन या एडीमा नहीं होता।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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