cancer कॅन्सर
कैंसर का निदान और इलाज

कैंसर का निदान शुरूआती अवस्था (कैंसर के पहले की अवस्था) या स्थानीय अवस्था में ही हो जाना चाहिए। इस अवस्था में आपरेशन, दवाओं और विकिरणों से आसानी से इलाज हो सकता है। (इस तरह से विकिरणें न केवल कैंसर का कारण हैं बल्कि इसका इलाज भी हैं!)दुर्भाग्य से ज्यादातर कैंसर शुरूआत में पकड़ में नहीं आता। इसका एक कारण समाज में कैंसर के बारे में जानकारी का अभाव भी है। बीमारी का निदान होने में देरी का एक और कारण स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव भी है। असरकारी ढंग से नियमित रूप से कैंसर की संभावना पर नज़र रखना इसका एकमात्र उपाय हो सकता है।

नियमित रूप से सभी लोगों में कैंसर की छान बीन के लिए रखना ज़रूरी है

आमतौर पर होने वाले कैंसर के संबंध में लोगों में नीचे दिए गए लक्षणों पर नियमित रूप से नज़र रखना ज़रूरी है।

  • कहीं बहुत तेज़ी से वजन तो नहीं घट रहा, खासकर बड़ी उम्र के लोगों में।
  • बहुत तेज़ी से होने वाला अनीमिया।
  • बिना किसी कारण के भूख लगना बंद हो जाना।
  • शरीर के किसी भी भाग में कोई गांठ या रसौली बन जाना।
  • चिरकारी ठीक न होने वाला अलसर।
  • स्तन में गांठ या चिरकारी अलसर।
  • रजोनिवृति के बाद रक्त स्त्राव।
  • लंबे समय तक आवाज़ फटी रहना और किसी भी तरह के इलाज से इसका ठीक न होना।
  • लार में खून आना।
  • छाती में अकसर खाना अटक जाना।
  • लंबे समय तक पेट में भरा भरा लगते रहना, अपच या खाने के बाद अकसर उल्टी आना (अमाशय का कैंसर)।
  • मुँह या जीभ पर दर्द रहित धब्बा जो लंबे समय तक बना रहे या फिर ठीक न होने वाला अलसर।
  • पाखाने या पेशाब में खून आना (मलाशय या मूत्राशय का कैंसर)।
  • बिना किसी कारण से मलत्याग की आदतों में बदलाव आ जाना और कई दिनों और हफ्तों तक ऐसा ही चलता रहना (आहार नली का कैंसर)।
  • मसूड़ों या शरीर के किसी भी बाहर खुलने वाले भाग जैसे नथुनों, फेफड़ों, मलाशय, मूत्राशय, योनि आदि में से खून आना (खून का कैंसर)।
  • लंबे समय तक चलने वाला पीलिया जिसमें बुखार नहीं हो और पाखाने का रंग सफेद सा हो जाए (अग्न्याशय का कैंसर)।
  • बगलों, वंक्षण या गले की लसिका ग्रंथियों में कोई सख्त सी वृद्धि (कैंसर की बाद की अवस्थाओं में दिखती है)।
  • इनमें से कोई भी लक्षण, खासकर बड़ी उम्र के लोगों में, कैंसर के सूचक होते हैं। कुछ कैंसर जैसे खून का कैंसर, लसिका तंत्र का कैंसर या हड्डियों का कैंसर बचपन में ज़्यादा होते हैं।

ध्यान रहे कि ये सारे लक्षण केवल सूचना भर देते हैं और इनसे यह पक्का नहीं होता कि किसी व्यक्ति को असल में कैंसर है। कैंसर का निदान केवल विशेषज्ञ ही कर सकते हैं। ध्यान रखें कि ऐसे कोई भी लक्षण दिखने पर व्यक्ति को डराएं नहीं पर यह ज़रूर पक्का कर लें कि वह किसी विशेषज्ञ के पास चला जाए। देरी होने से नुकसान बढ़ जाता है।

कैंसर की पहचान के बारे में लोगों को जानकारी दें|

कैंसर का जल्दी निदान आम लोगों को कैंसर के संबंध में जानकारी देने से ही संभव है। इसके लिए विशेष निदान कैंपों से भी फायदा होता है। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के रूप में आपको कैंसर के मामलों पर नज़र रखनी चाहिए। कैंसर की आम जगहों जैसे गर्भाशय और मुँह की जांच करते रहें। मुँह में होने वाले कैंसर जल्दी पकड़ में आ जाते हैं। परन्तु गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर की जांच के लिए खास कोशिशों की ज़रूरत होती है। इसके लिए ‘पेप स्मीअर’ या शिलर आयोडिन टेस्ट तकनीक का इस्तेमाल होता है। इसमें गर्भाशय ग्रीवा या गर्भाशय से कोशिकाएं निकाली जाती हैं और उन्हें सूक्ष्मदर्शी से देखा जाता है। कैंसर से पहले की कोशिकाओं का भी इस तकनीक से पता चल जाता है।

व्यवसाय से जुड़े कैंसर
Beedi Workers
तमाखू कॅन्सरजनक है|

कुछ व्यवसायों से भी कैंसर हो सकता है। ऐसा कैंसर करने वाले कारकों से संपर्क के कारण होता है। व्यवसाय से जुड़े कैंसर हैं |

  • परमाणु संयंत्रों में विकिरणों से संपर्क होना।
  • ऐस्बेस्टस की फैक्टरी में काम कर रहे मजदूरों को उसके रेशों के कारण फेफड़ों का कैंसर होना।
  • विलायकों की फैक्टिरियों में काम कर रहे मजदूरों को बहुत अधिक खतरा रहता है| (लिवर या मलाशय का कैंसर)।/li>
कैंसर का इलाज

अगर कैंसर का निदान शुरूआत में हो जाए तो इसे खास फैलने से पहले ही पूरी तरह से खतम किया जा सकता है। कुछ तरह के कैंसरों में आपरेशन से कैंसर वाली वृद्धि को निकालना होता है तो कुछ और में प्रति कैंसर दवाओं और / या विकिरणों की ज़रूरत होती है। परन्तु कैंसर अकसर फिर फिर लौट कर आ जाता है इसलिए कभी भी यह नहीं माना जा सकता कि कोई व्यक्ति पूरी तरह से ठीक हो गया है। व्यक्ति इलाज के बाद कितने समय जीवित रहा यही कैंसर के इलाज की सफलता का एकमात्र पैमाना है।

सिर्फ आराम पहुँचाने वाला उपचार

कई तरह के कैंसरों में जब तक बीमारी का निदान होता है तब तक इसका इलाज संभव ही नहीं रह गया होता। फिर भी निराश नहीं होना चाहिए। परिवार, डॉक्टर और स्वास्थ्य कार्यकर्ता बहुत कुछ कर सकते हैं। चाहे बीमारी के ठीक होने की कोई संभावना न हो तो भी दर्द कम करने और आराम पहुँचाने के तरीके आखिर तक जारी रखे जाने चाहिए। इस अवस्था में बीमार व्यक्ति को दर्द, संक्रमण, रक्त स्त्राव और बहुत अधिक कमज़ोरी और असहायता होती है। इस अवस्था में मोरफ़ीन एक अच्छी दर्द निवारक दवा है। ठीक से खाना खिलाना उपचार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। व्यक्ति की अपनी मानसिक मजबूती और परिवार के सहारे से बहुत फर्क पड़ जाता है। व्यक्ति को अपने जिए हुए सालों के बारे में सोचना चाहिए न कि मौत के बारे में जो कि टाली ही नहीं जा सकती। 
बिस्तर पर पड़े हुए व्यक्तियों की देखभाल के बारे में और जानकारी बुढापे वाले अध्याय में से लें।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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