फाल्सिपेरम मलेरिया की रोकथाम

फाल्सिपेरम मलेरिया एक खतरनाक संक्रामक बीमारी है। ऍनाफिलीस मच्छरों के द्वारा और फाल्सिपेरम परजीवी द्वारा यह बीमारी फैलती है। व्हायवॅक्स मलेरिया के तुलना में इससे कई ज्यादा मौते होती है। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में तथा छत्तीसगढ, ओदिशा आदि राज्यों में इसका दुष्प्रभाव है। हाल ही में मैने दक्षिण ओदिशा के कुछ जिलों में स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा चलाया रोकथाम का अभियान देखा और सरकारी प्रयास भी देखे है। मालूम होता है की गॉंवों में सक्षम कार्यकर्ता का होना और उनके पास अच्छे तकनिक और दवा का होना फाल्सिपेरम मलेरिया को रोक सकता है।

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दक्षिण ओदिशा के आदिवासी जनजातीय के वस्तीयों में फाल्सिपेरम मलेरिया का दुष्प्रभाव है|

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इसका मच्छर ऍनाफिलीस लुवीलॅटीस नहरो झरनों में और धान की खेती में पनपता है|

लक्षण, चिन्ह और जॉंच
paroxysmal fever
कंपकंपी बुखार और पसीना आकर बुखार कम होना
यह मलेरिया का आम लक्षण है लेकिन इससे
हटकर कई और लक्षण भी दिखाई देते है|
  • ऍनाफिलीस प्रजाती के मच्छरों से काटने से खून में ये परजीवी शरीर में प्रवेश करते ह। कुछ ८-१० दिनों में ही खून की लाल कोशिकाओं पर इनका भारी मात्रा में हमला होता है।
  • इसके साथ अक्सर कंपकंपी, बुखार सरदर्द, बदनदर्द और पसीना आदि लक्षण दिखाई देते है। बुखार मध्यम या तेज होता है तथा हर दिन आता जाता है। कभी कभी इसमें कंपकंपी या और लक्षण छोडकर बुखार ही महसूस होता है। कुछ रोगियों में बुखार भी ज्यादा नही होता।
  • यह देखा गया है की कुछ लोगों में इस मलेरिया के चलते थोडे से बुखार के साथ दस्त चलते है। खून की जॉंच में परजीवी का पता चलता है।
  • अन्य कई रोगियों में बुखार के होने न होने से संदेह भी नही होता तब अचानक सरदर्द और मस्तिष्क दुष्प्रभावित होता है, जिससे रोगी बेहोश हो सकता है। इस परजीवी के दुष्प्रभाव से मस्तिष्क, गुर्दे, फेफडे आदि बाधित होकर अचानक मौत भी हो सकती है। बीमारी बच्चों से लेकर बुढों तक किसीको भी हो सकती है।
  • यह देखा गया है की बाधित जिलों में छोटे बच्चों में बीमारी का कोई लक्षण हो ना हो, खून की जॉंच में अक्सर यह परजीवी मौजूद होता है। सही इलाज के बाद ये बच्चे सामान्यतया बढ सकते है। अन्यथा कुपोषण के शिकार हो जाते।
check malaria parasite
बच्चों में मलेरिया परजीवी की जॉंच और उपचार

इस बीमारी की पहचान सिर्फ खून की जॉंच से सही मायने में हो सकती है। इसके लिये कांच पर खून का धब्बा लेकर जॉंचा जाता है। लेकिन यह सुविधा याने लॅब शीघ्र उपलब्ध ना हो तब तक इलाज रोके रखना सही नही है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में ये कारण इसके लिये पर्याय स्वरुप रॅपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट किट उपलब्ध है। बाधित इलाकों में सभी स्वास्थ्य कार्यकर्ता और आशाओं के पास यह किट उपलब्ध होता है। रोगी का खून का एक छोटा अंश आर डी. टेस्ट किट में सही जगह लगाकर १५ मिनिट छोड दिया जाता है। किट पर एक रेषा हरदम मौजूद होती है। इसी रेषा का दिखना निगेटिव्ह याने परजीवी का ना होना दर्शाता है। अगर और दो रेषाएँ दिखाई दे तब फाल्सिपेरम और व्हायवॅक्स दोनों का प्रभाव निकल आता है । अगर सिर्फ अंतिम रेषा दिखाई दे तब फाल्सिपेरम का निर्णय होता है। इसके अनुसार इलाज उसी समय हम कर सकते है। यह किट मेडिकल स्टोअर में भी उपलब्ध है।

blood testing stains glass
rapid diagnostic testkit

कॉंच पर खून के धब्बे का परीक्षण आज भी महत्त्वपूर्ण है रॅपीड डायग्नोस्टिक टेस्ट किट- उपरी निगेटीव और निचला पॉझिटीव्ह

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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