तीसरे से छठे महीने में शिशु के अंग और तंत्र बनते हैं। और छठे से नौंवें में ये अंग बढ़ते और विकसित होते हैं। शिशु की दिल की धड़कन और हिलना डुलना उसके जीवित होने का भरोसेमन्द संकेत होते हैं। परन्तु बच्चे के शारीरिक विकास में किसी भी कमी का पता करने के लिए सोनोग्राफी द्वारा जाँच ज़रूरी है। अगर गर्भाशय का आकार गर्भावस्था की अवधि से मेल खाए तो समझे कि शिशु की वृध्दि ठीक हो रही है। अगर बच्चादानी गर्भ के अवधी से बडा है, तो जुडवे बच्चे हो सकते है या बच्चादानी में अधिक पानी हो सकता है।
इन महीनों में एनीमिया या गर्भावस्था की विषरक्तता जैसी बीमारियों पर ध्यान दें। गर्भावस्था और बच्चे के जन्म से जुड़े खतरों की ओर ध्यान दें। वज़न में बढ़ोत्तरी पर ध्यान दें।
गर्भावस्था में वजन सही मात्रा में बढना चाहिये |
गर्भावस्था में कुल ९ से ११ किलो वज़न बढ़ता है। तीसरे से नौंवे महीने में हर हफ्ते ३०० ग्राम या महीने में १.५ किलो वज़न बढ़ता है। अगर वज़न में बढ़ोत्तरी ५०० ग्राम प्रति हफ्ते से ज्यादा हो या महीने में २ किलो से ज्यादा हो तो सावधान हो जाएँ। वज़न में यह असाधारण बढ़ोत्तरी गर्भावस्था की विषाक्तता के कारण भी होती है।
ऐलब्यूमिन और शक्कर की जाँच बहुत आसान है। रासायनिक पट्टी (डिपस्टिक) से यह और भी आसान हो गया है। पेशाब में ऐलब्यूमिन होना एक खतरे वाला लक्षण है। यह रक्तचाप के बढ़ जाने से होता है गर्भावस्थामें अतिरक्तचाप और पेशाब में प्रोटीन विषाक्तता से बद्ध है। गर्भावस्था में पेशाब में थोड़ी शक्कर होना सामान्य है। पर अगर पेशाब में बहुत अधिक शक्कर निकल रही है तो इसका अर्थ है कि महिला को डायबिटीज़ (मधुमेह) है। माँ को मधुमेह होना बच्चे के लिए बहुत ही नुकसानदेह है।
गर्भावस्था में खून की जॉंच जरुरी है |
खून के टेस्ट हीमोग्लोबिन की मात्रा की जाँच, खून के वर्ग की जाँच, और सिफलिस रोग की जाँच के लिए होते हैं। हीमोग्लोबिन की जाँच के लिए साहली का तरीका सबसे आसान है। खून का वर्ग और आरएच फैक्टर पता होना ज़रूरी है। अगर माँ का आरएच फैक्टर निगेटिव हो तो बचाव के सही उपायों की ज़रूरत होती है। सिफलिस रोग बार-बार गर्भपात होने का सबसे आम कारण होता है। और वीडीआरएल टेस्ट सिफलिस की जाँच के लिए किया जाता है।
गर्भवती महिला को अधिक कैलरीज़, प्रोटीन, विटामिनों और खनिजों की ज़रूरत होती है। (देखें आहार वाला अध्याय)
गर्भावस्था में भार उठाना खतरनाक हो सकता है |
गर्भावस्था में आराम और हल्के व्यायाम दोनों की ज़रूरत होती है। गाँव में अधिकाँश महिलाओं को गर्भावस्था के आखिरी महीने तक भी बहुत शारीरिक श्रम करना पड़ता है। काम करने से नुकसान नहीं होता परन्तु ऐसे श्रम न करे जिससे धक्का लगे। ऐसा काम जिससे बच्चादानी पर भार पड़े नुकसानदेह है। जैसे कि भार उठाना। उबड़-खाबड़ सड़कों पर यात्रा करना, खासकर बैलगाड़ी में खतरनाक हो सकता है। इससे गर्भपात हो सकता है। परिश्रम के साथ-साथ पर्याप्त खाना भी जरुरी है। भारत के गरीब वर्ग की महिलाओं में गर्भावस्था में भार में ६ किलो की बढ़ोत्तरी होती है। जिसमें से २ किलो वज़न का बच्चा होता है, २ किलो नाभिनाल व पानी की थैलियों का और २ किलो माँ के ऊतकों का। यह बढ़ोत्तरी मध्यम वर्ग समुदायों के मुकाबले बहुत कम है। इनमें भार में बढ़ोत्तरी १४ से २० किलो तक हो सकती है। जिसमें से एक तिहाई माँ के शरीर में अतिरिक्त वसा के कारण होता है। हालाँकि यह भी ठीक नहीं है। ९ से १० किलो भार बढ़ना सबसे ज्यादा सही है। अतिरिक्त श्रम के कारण गर्भस्थ भ्रूण का पोषण कम पडता है| इससे शिशु का जन्म वजन कम रहने की संभावना होती है।