old age बुढापा
बूढ़ों की देखभाल

परिवार में बूढ़ों की देखभाल कैसी होती है यह कुछ आर्थिक स्थिति और संस्कारों से तय होता है। मॉं बाप, दादा दादी, नाना नानी, और बच्चों के बीच के आपसी संबंध भी यह तय करते हैं कि परिवार में बूढ़ों की स्थिति कैसी होगी। बूढ़ों की देखभाल का अर्थ है उनकी शारीरिक और भावनात्मक ज़रूरतें पूरी करना।

बुढों की देखभाल के लिये कानून

बुढों की आदरपूर्वक देखभाल हो, यह एक सांस्कृतिक मूल्य व्यवस्था बनी रहनी चाहिये। जिनको पाला पोसा उन बेटे-बेटियों की यह परिवारिक जिम्मेदारी है। लेकिन सामाजिक परिस्थितीवश वृद्धों के प्रति बढती अनास्था, गुस्सा, हिंसा और दमन के कारण न्यायिक व्यवस्था बनाना एक जरुरत थी। हाल ही में ऐसा एक कानून भी बन गया है। इसके तहत अपने बुढे माता-पिता की देखभाल न करना जुर्म है, इसकी सजा हो सकती है।
पीडित व्यक्ती पुलिस में जाकर शिकायत दर्ज करा सकते है। समान अर्थव्यवस्था से प्रभावित होता है, कभीकभार हम श्रावण बालक की कथा बच्चोंको सुनाई देते है, लेकिन अर्थव्यवस्थाके चलते अपने बूढोंकी खान-पान-दवा आदि जीवनरक्षक बाते भी अब कानून के दायरें में आयी है। (भारतीय दंड विधान कानून —- धारा)

शारीरिक ज़रूरते

उन्हें आराम करने और सोने के लिए कुछ जगह, हो सके तो अलग जगह दी जानी चाहिए। खाना सादा, पोषक, गर्म, बीच की मात्रा में होना चाहिए। खाना समय के नियमित अंतराल पर दिया जाना चाहिए। बूढ़े लोगों के लिए रात को और खासतौर पर सर्दियों या बरसात में रात को टट्टी, पेशाब के लिए जाना खासा मुश्किल होता है। इसलिए उनके लिए घर के अंदर शौचालय की सुविधा होना काफी ज़रूरी होता है। ऐसे में कूल्हे की हड्डी टूटना काफी आम समस्या होती है। अगर शौचालय जाने के समय कोई उनके साथ रहे तो इस तरह की दुर्घटनाओं से बचाव संभव है। छड़ी की ज़रूरत किसी न किसी उम्र में पड़ जाती है। यह काफी उपयोगी होती है।

भावनात्मक ज़रूरतें

बूढ़े लोग अकसर शारीरिक रूप से तो अपने आस पास से तालमेल बिठा लेते हैं परन्तु भावनात्मक रूप से ऐसा तालमेल कर पाना आसान नहीं होता है। अपने पति या पत्नि के मरने के बाद उन्हें अकेलापन काफी सालता है। साथ के लोगों और परिवार का सहारा बहुत ज़रूरी रहता है। अगर कोई उन पर ध्यान न दे या उनकी चिंता न करे तो इससे वे आहत हो जाते हैं। और विपत्ति में धैर्य खो बैठते हैं।

औरतें ज़्यादा आसानी से निपट पाती हैं

पुरुषों के मुकाबले औरतें बुढ़ापे में बदले हुए हालातों से ज़्यादा आसानी से निपट पाती हैं। बूढ़े विधुर लोग, विधवाओं के मुकाबले ज़्यादा जल्दी हिम्मत खो बैठते हैं। यह भारत का एक सांस्कृतिक पहलू है, कि यहॉं अकेले रहने की भावना और छवि की ज़्यादा आदि होती हैं और पुरुष ऐसी परिस्थितियों को कम स्वीकार पाते हैं। इसके अलावाघर के रोज़मर्रा के पारिवारिक कामकाज में औरतों की भागीदारी पुरुषों के मुकाबले ज़्यादा होती है। घरेलू कामकाज में भागीदारी से बूढ़े लोगों की ज़िंदगियों को मकसद मिलता है । उससे वे बाकी परिवार से भी ज़्यादा जुड़ पाते हैं।

अपनी देखभाल
Oldman Use Stick
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जब तक संभव हो अपनी देखभाल खुद करना ज़रूरी है। खाने में नियंत्रण, सारे शारीरिक काम करना, सावधानी बरतना, ठीक से आराम करना और सोना, समय कटने वाले क्रियाकलापों जैसे पढ़ने आदि में समय लगाने से बुढ़ापा स्वस्थ और सुखद रहता है।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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