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उपचार का चुनाव

चुनाव के लिए एक सूची भी बनी हुई है। इसे रूबरिक्स कहते हैं। इससे ऐसे उपचार का चुनाव करने में मदद मिलती है जो मरीज द्वारा बताए गए अधिकतम लक्षणों से मेल खाते हों। उदाहरण के लिए अगर सिर में दर्द को लिया जाए तो इसके लिए इन दवाओं में से एक का चुनाव करना होता है: आकोनाइट, बैलाडोना, ब्रायोनिआ, गलोनोइन, काली बाईक्रोमेट, लाकेसिस, लाइकोपीडिअम, नाट्रम मूर, नक्स वोमिका, पलसाटिला, सेंग्वीनारिअम, सिलीसिआ, स्पाईगैला और थूजा। दवा का चुनाव सिर के दर्द को और समझने पर निर्भर करता है। अगर दर्द फटने वाला हो, जो रोशनी की तरफ देखने और लेटने से बढ़ता हो तो इसके लिए बैलाडोना दवाई दी जाती है। अगर आराम करने से सिर में दर्द कम होता है तो सिर पर हल्की पट्टी बॉंध लेने से ही फायदा हो जाता है। अगर यह आँखों की हरकत से भी बढ़ता हो तो इसके लिए ब्रायोनिआ देना चाहिए। यह फर्क करना तभी सम्भव हो पाएगा अगर हम सिर में दर्द के तहत विभिन्न दवाओं के बारे में अध्ययन करें। अगर यह सूक्ष्म महीन फर्क इस्तेमाल नहीं किया जाए तो होम्योपैथी असरकारी नहीं होती है। ईलाज के लिए हम यह तरीका अपना सकते हैं:

  • मरीज़ के अपने शब्दों में उसके द्वारा बताए गए लक्षण लिखें।
  • मरीज़ को खुल कर अपनी बात कहने दें। और साथ में आए व्यक्ति से भी ज़रूरी जानकारी इकट्ठी करें।
  • यह पक्का करें कि जो लक्षण बताए जा रहे हैं वो कहीं केवल संवेदनाएँ तो नहीं हैं (जैसे बुखार न होने पर भी गर्म महसूस करना) या असल में सही हैं (जैसे लाल आँखें या सूजन)।
  • मरीज का ध्यान से मुआयना करें, इससे आपको महत्वपूर्ण जानकारी मिल जाएगी। उदाहरण के लिए एक मरीज़ पॅंखा चलाने को कह सकता है या फिर सर्दियों में भी बहुत पतले कपड़े पहने हुए हो सकता है। इससे पता चलता है कि उसका गठन एक खास तरह का है (इसके लिए सल्फर दें)। एक दूसरा व्यक्ति गर्मियों में भी पॅंखा बन्द करने को कह सकता है या फिर ज़्यादा ठण्डक न होने पर भी गर्म कपड़े पहन कर आ सकता है (ऐसे में सिलिका का इस्तेमाल करें)
  • सबसे महत्वपूर्ण दिशा देने वाले लक्षणों का चुनाव करें। ये एक भी हो सकते हैं या चार भी।
  • इन लक्षणों के आधार पर दवाओं का चुनाव करें।
  • एक और तरह के लक्षण एक अन्य समूह में आते हैं। उदाहरण के लिए प्यास न लगने की स्थिति में आपिस, आरसेनिक, बैलाडोना, चाइना, फैरम, काली कार्ब, लाइकोपीडिअम, नक्स मासकाटा, फोसफोरिक एसिड, पलसाटिला या सैपिआ की ज़रूरत होती है।
  • किसी मरीज में दर्द सिर के साथ ऊपर दिए दो लक्षणों के होने पर इलाज करने के लिए ऐसी दवा चुननी पड़ेगी जो दोनों समूहों में आती हो: आरसेनिक, फैरम, काली कार्ब, लाइकोपीडिअम और पलसाटिलां
  • इसके बाद हमें आखिरी चुनाव करना होता है। यह हम इन दवाओं के बारे में पूरा अध्ययन कर के कर सकते हैं और यह पक्का कर सकते है कि विवरण मरीज़ के लक्षणों से मेल खाता है। नहीं तो निर्णय लेने के लिए और एक लक्षण पर ध्यान दें।
दवाओं के असर का अन्दाज़ा लगाना

धैर्य रखें, तुरन्त असर की उम्मीद न करें। अगर कोई भी फर्क न दिखे तो भी दवा या उनकी पोटेंसी न बदलें। होम्योपैथी में कभी कभी शुरुआत में बीमारी कम होने की जगह उसके लक्षण और भी गम्भीर हो जाते हैं। ऐसी परिस्थिति में मरीज़ और चिकित्सक को और भी ज़्यादा धैर्य रखने की ज़रूरत होती है। पर यह पक्का कैसे करें कि लक्षणों का इस तरह और गम्भीर हो जाना होम्योपैथी के इलाज के कारण है या फिर बीमारी असल में बढ़ गई है? यह तय करने के लिए नीचे दिए गए मापदण्डों पर ध्यान दें :

  • अगर दवा की पहली खुराक से लक्षण और गम्भीर हो जाते हैं तो सम्भावना है कि दवा सही काम कर रही है। इलाज जारी रखें और इन्तज़ार करें।
  • अगर इलाज शुरू करने के बाद लक्षण अचानक बहुत बदल जाएँ तो दोनों में मेल है। इलाज जारी रखें।
  • अक्सर लक्षण तो बढ़ जाते हैं जैसे कि कोई स्त्राव निकलना बढ़ जाए। परन्तु मरीज़ को बेहतर महसूस हो सकता है। इलाज जारी रखें।
  • अगर कोई नया स्त्राव निकलने लगे या फिर पहले वाला स्त्राव बढ़ जाए तो यह भी अच्छा चिन्ह है। इलाज जारी रखें।
  • अगर इलाज शुरू करने के कुछ दिनों बाद भी बीमारी पर कोई असर न हो तो दवा के चुनाव पर ध्यान दें। अगर ऐसा लगे कि दवा का चुनाव ठीक हैं तो उसकी पोटेंसी बदल दें।
क्या यह दवा काम कर रही है?

आप कह सकते हैं कि एक होम्योपैथिक दवा काम कर रही है अगर:

  • लक्षणों पर असर होने लगे या फिर वो उसी क्रम में वापस होने लगे जिस क्रम में शुरू हुए थे। उदाहरण के लिए अगर किसी बीमारी मे पहले सिर में दर्द शुरू हुआ था और उसके बाद बुखार हुआ था तो इलाज शुरू करने में पहले बुखार ठीक होगा और फिर सिर में दर्द।
  • अन्दरुनी लक्षण पहले ठीक होते हैं और उसके बाद बाहरी लक्षण ठीक होते हैं। उदाहरण के लिए एक बीमारी में अगर बुखार और पामा (एक्ज़ीमा) दोनों हो तो पहले बुखार कम या ज़्यादा होगा और फिर पामा। क्योंकि बुखार एक अन्दरुनी लक्षण है जबकि पामा बाहरी।
  • लक्षण ऊपर से नीचे की ओर ठीक होते हैं, यानि सिर से पैर की तरफ। अर्थात ज़्यादा महत्वपूर्ण अंगों में पहले सुधार होता है।
  • ये कुछ नियम हैं, परन्तु कुछ भी तय करने में एक दिशा और विवेक का इस्तेमाल ज़रूरी है। कभी कभी शुरुआत में लक्षणों के और गम्भीर होने वाली स्थिति बहुत अधिक लम्बी हो सकती है। ऐसा खासकर दबाने वाले इलाज में होता है। कभी-कभी इस अवस्था में पैदा होने वाले लक्षणों का इलाज ज़रूरी होता है।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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