कान और उसकी बीमारियाँ आँख का स्वास्थ्य
भीतरी कान की बीमारियाँ

अक्सर मध्य कान के संक्रमण ही अन्दर के भाग में पहुँच जाते हैं। कभी-कभी टीबी का संक्रमण भी हो सकता है। आम लक्षण हैं चक्कर आना व उल्टी आना। हल्का सा दर्द व बेचैनी भी हो सकती है। कभी कभी कान में कुछ बजने का अहसास भी होता है। इससे बहरापन संभव है। ऐसी स्थिति में समय से ईएनटी विशेषज्ञ की सलाह व इलाज ज़रूरी है।

गति से मतली आना

कुछ लोगों को बस, नाव या झूले में बैठने पर जी मचलाने या उल्टी की शिकायत होती है। यह आन्तर कर्ण (लैबरिंथ) के सन्तुलन बनाने वाले हिस्से से जुड़ा है जिसे गति से कुछ अतिरिक्त उत्तेजन मिल जाता है। अगर बस के तल पर एक बॉल पड़ी हो तो बस जब आगे चलेगी तो वो बाल पीछे की ओर जाएगी। ऐसा ही कुछ लैबरिंथ की नलिकाएँ में कणों के साथ होता है। यह समस्या आमतौर पर बचपन में शुरू होती है, कभी यह ठीक हो जाती है और कभी वैसी ही बनी रहती है।

इलाज

यात्रा शुरू करने से करीब आधा घण्टा पहले प्रोमेथाज़ीन या हायोस्केमीन की गोली प्रयोग करे। आमतौर पर इससे बचाव होता है। इन दवाइयों का असर करीब छ: से आठ घण्टे रहता है। बच्चे को कम डोज़ दी जानी चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार इसके लिये सूतशेखर मात्रा का प्रयोग उपयुक्त है। इसका प्रयोग आधा घंटा पहले करे।

मध्य कान का दीर्घकालीन- चिरकारी संक्रमण (सी.एस.ओ.एम.)

ए.एस.ओ.एम. के गलत या अपर्याप्त इलाज से संक्रमण के ठीक होने की प्रक्रिया पर असर पड़ता है। इससे चिरकारी सपूय कर्ण शोथ हो जाता है। यह खासतौर पर बच्चों में काफी नुकसानदेह होता है क्योंकि इससे स्थाई रूप से बहरापन हो सकता है। इससे कई और जटिलताएँ भी हो सकती हैं जैसे मैस्टोएड हड्डी में चिरकारी फोड़ा, मैनेनजाईटिस और शरीर के अन्य जगह में संक्रमण। बच्चों में मैनेनजाईटिस (मस्तिष्क आवरण का शोथ) कई बार मध्य कान के संक्रमण के कारण होता है।

ध्यान से देखने पर कान के पर्दे में छेद और मध्य कान के ऊपरी हिस्से में मॉंसल वृद्धी दिखाई देते हैं। इसमें एक अलग ही बदबू आती है। कान में से पानी जैसा निकलता है। और शीघ्र कर्ण शोथ की तुलना में थोड़ा कम दर्द होता है। कान के पीछे की मैस्टाएड हड्डी में सूजन और गर्दन के कड़ेपन की जॉंच करें। अगर आप को ऐसे कोई लक्षण दिखाई दे तो बच्चे को स्वास्थ्य केन्द्र भेजें।

कान के संक्रमण से टिटेनस भी हो सकता है। ऐसा संक्रमण मध्य कान में ऑक्सिजन(प्राणवायु) की कमी से हो जाता है। टिटनेस के टीके ने इस खतरे को कम कर दिया है। बार-बार होने वाले मध्य कान का संक्रमण अन्दरुनी कान को भी नष्ट कर देता है।

चिरकारी कर्ण शोथ का इलाज

बार बार होने वाले संक्रमण से कान का पर्दा, आवाज़ आगे पहुँचाने वाली हडि्डयों की शृंखला या कभी-कभी आँतर कर्ण में गड़बड़ी हो जाती है। इन मामलों में लम्बे समय तक दवाईयों के अलावा आपरेशन की भी ज़रूरत होती है।

होमोयोपैथी और बाराक्षार उपाए

मध्य कान के संक्रमण व दर्द के लिए इससे चुना जाता है।
होमोयोपैथी – कालकारिया कार्ब, हैपर सल्फ, मरकुरी सोल, पल्सेटिला, सिलीसिया, सल्फर
ऊतकीय उपाय – काल फ्लूओर, काल फोस, फेरम फोस, काली मूर, सिलिसिया, नॅट मूर

मध्य कान के दर्द के लिए

होमोयोपैथी – आरसेनिकम, बेलेडोना, चामोमिला, फैरम, फोस, हैपर सल्फ, लॉके, मरकुरी सोल, नैटरम मूर, पलसेटिला, सिलिका, सल्फर (पीप होने पर)

ऊतकीय उपाए – फैरम फोस, काली मूर, काली सल्फ, मग फोस, नट सल्फ, सिलिका

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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