फीता कृमि
lace-worm
गाय या सुअर के अधे पके मांस के कारण फिताकृमी
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फिताकृमी

गाय या सूअर का आधा पका मॉंस खाने से मनुष्य के शरीर में फीता कृमि पहुँच जाते हैं। हिन्दुओं के कुछ समुदाय सूअर का मॉंस खाते हैं। इन लोगों में फीता कृमि की एक जाति (टीनिया सोलियम) का संक्रमण होता है। गाय के मॉंस से एक और फीता कृमि फैलता है (टीनिया साजीनाटा)। क्योंकि मुसलमान लोग गाय का मॉंस खाते हैं इसलिए उन्हें यह संक्रमण ज़्यादा होता है। वयस्क फीता कृमि १-२ मीटर लंबी होती है और आँत में टिकी रहती है। इसके टुकडे निकलते रहते है। यह टुकडा गाय या सूअर के खाने में आएँ तब नयी कृमि पैदा करता है। यह कृमि उस पशू के मांस में पनपती है।

अगर टट्टी में फीता कृमि के टुकड़े दिखाई दें तो निदान एकदम से ही हो जाता है। मॉंस को प्रेशर कुकर में पकाना, फीता कृमि के संक्रमण से बचने का एक आसान तरीका है। अगर संक्रमण हो भी जाए तो मेबेनडाज़ोल दवा दी जानी चाहिए। परन्तु फीता कृमि के संक्रमण में दवा गोलकृमि की तुलना में ज़्यादा देर तक देनी होती है। आजकल प्रोज़ीक्वेनटेल दवा से इलाज करना ज़्यादा प्रचलित हो गया है। इन दवाओं के प्रयोग के लिये दवा की सारणी देखे।

आयुर्वेद

कीड़ों से बचाव के लिए बाबेरंग प्रचलित है। दूध के माध्यम से रोजाना दवा ले सकते हैं। बाबेरंग के बीज़ों को उबलते दूध में डालें। शुरुआत पॉंच बीजों से करें। धीरे-धीरे करके दो सालों में बीज़ों की संख्या 25 तक बढ़ा दें। बच्चे को रोज 5 से 25 बीज खाने चाहिए। असर बढ़ाने के लिए दूध में डालने से पहले बीज़ों को भिगोकर रखना फायदेमन्द है। यह दवाई अरिष्टा द्रव, (विडंगा-अरिष्टा) के रूप में भी मिलती है। दो हफ्तों तक रोज आधी से तीन चम्मच तक दवा दिन में दो बार दें। तीन चार हफ्तों बाद फिर यही क्रम दोहराएँ। यह क्रम 2 से 3 साल तक जारी रखा जाना चाहिए।

कड़वी चीज़ें जैसे सेंजने की फली का रस कीड़ों को दूर रखने में सहायक होता है। यह रस चीनी या श हद में मिलाकर मीठा करके लिया जा सकता है। इसे कम से कम कभी-कभी तो खाने के साथ ले ही लेना चाहिए। इसी तरह से साल में एक बार नीम की पत्तियॉं और फूल खाने की प्रथा भी लाभकारी है।

कृमि-कुठार

आयुर्वेद मे कृमि निकालने के लिए कुछ और औषधियॉं दी जाती हैं। पलाश के बीज, आसाफोएटिडा, आजवायन और कपूर कीड़ो की दवा कृमि कुठार में पड़ते हैं। एक हफ्ते रोज़ सोते समय 250 ग्राम की दो गोलियॉं लेना जरुर है। इससे लगभग सभी कीड़ों को निकाल देने के लिए काफी है।

किवच

किवच एक कॉंटेदार फल है इसका इस्तेमाल, बच्चे एक दूसरे को सताने का खेल खेलने के लिए करते हैं। यह फीता कृमि के लिए असरकारी औषधि है। इस फल के छिलके में से किरचों को निकालें और इन्हें ध्यान से गुड़ में मिलाएँ। हम इन किरचों से एक कैप्सूल भर सकते हैं (100 मिलीग्राम)। इसके प्रयोग के बाद एक हल्का कैथारटिक जैसे अरण्डी का तेल लें। इस फल के छिलके हाथों के लिए काफी खुजली करने वाले होते हैं। शायद यही गुण आँतों के अन्दर कीड़ों पर असर डालता है। अंतत: शौचालयों का इस्तेमाल और ठीक से हाथ धोने की आदतें ही लम्बे समय के लिए कीड़ो से बचाव कर सकती हैं। आजकल अंगनबाडी में हर छ मास एक बार बच्चों को अलबेंडाझोल की दवा दी जाती है। यह एक उपयुक्त कार्यक्रम है।

अपचन/बदहज़मी

बदहज़मी यानि ‘खाने का ठीक से न पचना’ एक आम शिकायत है। थोड़ी बहुत बदहज़मी के साथ रहने की तो लोगों को आदत सी हो जाती है। ऐसे में डकार आने, पेट में गैस होने, हवा भर जाने, और भूख न लगने और पेट भरा लगने की शिकायत होती है। अगर बदहज़मी ज़्यादा बढ़ जाए तो उससे उल्टियॉं और दस्त भी होते हैं। ऐसा कभी कभी ही होता है।

आयुर्वेद में बदहज़मी और बहुत सी बीमारियों की जड़ मानी जाती है। खासतौर पर चिरकारी बीमारियों की जिनमें त्वचा की बीमारियॉं भी शामिल हैं। बहुत ज़्यादा बदहज़मी हो तो व्यक्ति खाना खाना बन्द कर देता है।

कारण

खानेपीने में बदलाव से कभी कभी बदहज़मी हो जाती है। इसे ठीक करना काफी आसान होता है।अगर बदलाव कुछ समय तक रहता ही है और उसके लिए कुछ नहीं किया जा सकता तो साथ में बदहज़मी भी रहेगी।

खराब हो चुके खाना खाने से भी बहदजमी हो सकती है। या फिर ऐसा खाना खाने से जिसमें कोई संक्रमण करने वाला जीवाणु है, बदहज़मी हो जाती है। ज़रूरत से ज़्यादा खाना खाना भी बदहज़मी का एक कारण है। ठीक से चबाकर न खाने से भी काफी चीज़ें बिना पची रह जाती हैं।

इलाज

अगर किसी को बदहज़मी लगातार रहती है तो उसे समस्या को समझने में मदद कीजिए। उसे अधिक स्वास्थ्यवर्धक रहन-सहन की सलाह दीजिए। तुरन्त किया जाने वाला इलाज है व्यक्ति को उल्टी करने को कहें। जरुरत हो तो उल्टी करवाने के लिये गुनगुना नमक पानी मिलाऍ और गले में उंगली डालकर प्रयास करने को कहे। बहुत से लोग पाचक इन्जाइमों की गोलियॉं भी खाते हैं। लेकिन ये खास फायदेमन्द नहीं होती।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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