गर्भाशय ग्रीवा फैलाना और खाली करना – १२ हफ्तों के कम के गर्भ को गिराने का तरीका है। गर्भाशयग्रीवा को ढीला किया जाता है ताकि उसमें एक उँगली जा सके (करीब एक सेन्टीमीटर)। फिर प्लास्टिक का एक आखुरण का उपकरण गर्भाशय में डाला जाता है। एक उपकरण के द्वारा उसके अन्दर का गर्भ भ्रूण खुरचकर निर्वात पंप से बाहर निकाल दिया जाता है। इसके लिये एक दिन का समय काफी है, हॉलांकि २/३ घंटेमेही घर जा सकते है|
१२ हफ्तों बाद गर्भावस्था बढनेके कारण नलिका से खींचकर निकालना सम्भव नहीं होता। गर्भाशय को उत्तेजित करने वाली कोई दवा जैसे प्रोस्टेंग्लेंडिंस के अन्दर डालने से गर्भाशय संकुचित हो जाता है। इससे अन्दर का सब कुछ बाहर निकाल देता है। गर्भपात २३ से ४८ घण्टों में हो जाता है। अगर ऐसा न हो तो गर्भाशय को आपरेशन द्वारा खोलना ही एकमात्र उपाय रह जाता है। इसिलिये १२ हप्तेके पहिले गर्भपात करना जादा आसान है।
एम.टी.पी. आमतौर पर सुरक्षित होती है पर हमेशा नहीं। कुछ खास खतरे हैं – इन खतरों के कारण गर्भपात की सलाह देने से पहले काफी सोच-विचार की ज़रूरत होती है, खासकर पहली बार माँ बन रही महिलाओं के लिए। ऐसा भी हो सकता है कि वो फिर माँ ही न बन सकें।
अगर कोई महिला महीना बन्द होने के बाद दो हफ्तों के अन्दर-अन्दर गर्भपात करवाना चाहती है तो मासिक नियंत्रण एक अच्छा तरीका है। यह एक छोटे से निर्वात पिचकारी (एम.आर. प्रवेशिनी), द्वारा किया जाता है। परन्तु महीना बन्द होने के बाद दो हफ्तों से ज्यादा समय नहीं बीता होना चाहिए। इसके लिए गर्भाशयग्रीवा को फैलाने की ज़रूरत नहीं होती है। इसमें बहुत थोड़ा-सा ही खून बहता है। इसके होने के तुरन्त बाद महिला घर जा सकती है। यह किसी एम.टी.पी. केन्द्र के ओ.पी.डी. में भी किया जा सकता है।
आर.यू. – ४८६ की गोलियाँ |
यह गर्भपात करने वाली नई दवा है जो गोलियों के रूप में मिलती है। यह प्रोजेस्ट्रोन के स्तर को घटाकर गर्भावस्था समाप्त कर देती है। इससे कुछ दिनों के अन्दर रक्त-स्राव के साथ भ्रूण बाहर आता है। खून बहने के बाद पूरी तरह सफाई के लिए डी और ई करना पड़ता है। भारत में अधिकाँश औरतें एनीमिया से पीड़ित होती हैं और स्वास्थ्य सेवाएँ भी पर्याप्त नहीं होतीं। इसलिए आर.यू.- ४८६ का तरीका यहाँ के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि इसमें मुश्किलें हो सकती हैं। गर्भपात के परम्परागत तरीके और जड़ी बूटियाँ _ हज़ारों सालों से महिलाएँ जड़ी-बूटियों और अन्य तरीकों का इस्तेमाल गर्भपात और जन्म नियंत्रण के लिए करती रही हैं। उनमें से कुछ तो काफी असरकारी हैं और समुदाय उनका इस्तेमाल लम्बे समय से करते आ रहे हैं। पर कुछेक काफी खरतनाक भी हैं।
एक अवैज्ञानिक और बेहद खतरनाक तरीका है, कोई डण्डी, जड़ या धातु की तार गर्भाशयग्रीवा द्वारा अन्दर डालकर भ्रूण थैली को फाड़ना। पारम्परिक चिकित्सक गर्भपात के लिए कुछ जड़ी बूटियों का इस्तेमाल भी करते हैं। आजकल के चिकित्सा शास्त्र में इनके बारे में बहुत कम जानकारी है। लोग कुछ बीज और सब्ज़ियाँ (अक्सर गाजर के बीज और कच्चा पपीता) इस मकसद के लिए घरेलु उपचार के जैसे इस्तेमाल करते हैं। कई जनजातियों में महिलाएँ शराब पीकर भी गर्भपात करने की कोशिश करती हैं। इनमें से लगभग सभी तरीके सफल रहते हैं क्योंकि इनसे गर्मी पैदाहोती है। आजकल अक्सर महिलाएँ गर्भपात के लिए अक्सर काफी देरी से आती हैं क्योंकि वे पहले स्थानीय गर्भपात की दवाएँ इस्तेमाल कर रही होती हैं और साथ में नुकसान करने वाली घरेलू और पारंपारिक तरीकोंका कभी इस्तमाल न करे क्योंकी ये दवाएँ लेकर इन्तज़ार करने में वे महत्वपूर्ण समय बरबाद कर देती हैं। कभी-कभी ये दवाएँ भ्रूण के लिए ज़हरीली होती हैं। इससे भ्रूण में विकार हो जाता है पर गर्भपात नहीं होता। इससे बच्चे में शारीरिक या मानसिक गड़बड़ियाँ हो सकती हैं।
अल्ट्रासोनोग्राफी द्वारा गर्भनिदान |
पुरुष प्रधान समाजों में लड़के की इच्छा होना पुराने समय से चला आ रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह माना जाता है कि लड़के से ही वंश आगे चलता है। यह आज भी जारी है। और खेती और व्यापारी परिवारों में तो ऐसी इच्छा और भी ज्यादा होती है क्योंकि यह लड़कों को सम्पत्ति और विरासत दिए जाने से जुड़ जाता है।
कुछ परिवारों में केवल लड़के हो सकते हैं, कुछ में केवल लड़कियाँ, कुछ में दोनों और कुछ में कोई भी नहीं। समाज और सामुदायिक चलन के अनुसार लड़कियों की शादी करने की आर्थिक ज़िम्मेदारी और शादी के बाद उन्हें दूसरे परिवारों को सौंप देने की परम्परा के कारण भी लोग बेटियों के मुकाबले बेटों की इच्छा रखते हैं। राजस्थान और अन्य कई राज्यों में लड़कियों को जन्म के बाद मार दिया जाता है। बेटियों जो कभी किसी भी कुल की रानियाँ मानी जाती थीं आज इतना बड़ा बोझ समझी जाती हैं।
पुरुष प्रधान दुनिया में आधुनिक तकनीक ने भी नए हथियार ही दिए हैं। अब अल्ट्रासोनोग्राफी द्वारा गर्भनिदान एक सामाजिक समस्या बन चुका है। समाज में ऐसे चलन पूरी तरह से उखाड़ कर फेंक दिए जाने चाहिए। सामाजिक कारणों से मादा भ्रूण का गर्भपात पूरी तरह से अनैतिक है। गर्भपात अपने आप में खतरनाक होता है। मादा भ्रूण को खत्म करने से समाज में दोनों लिंगों के बीच असन्तुलन बन जाता है। और वैसे भी लड़कियों के साथ इस तरह का भेदभाव एक अपराध है। अगर कोई दम्पत्ति बच्चा नहीं चाहता तो उसे गर्भधारण से बचाव करना चाहिए। परन्तु अगर एक बार गर्भधारण कर लिया तो बेहतर है कि बच्चा हो जाए, सिर्फ उन परिस्थितियों को छोड़कर जिनमें गर्भपात वैध होता है।
सरकार ने लिंग निर्धारण के सभी टैस्टों पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। लिंग पूर्व चुनाव कानून के तहत इस प्रक्रिया में सजा हो सकती है। हमारे ऐसे व्यवहार के लिए तकनीक को ही ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। हमारी सोच में बदलाव बेहद ज़रूरी है। दूसरी शादी करना इसका हल नही| सामाजिक सुरक्षा, लडकियों को समान दर्जा मिलना यही इसका हल है| जब मैं पति के माँ-बाप से बहस कर रहा था तो पत्नि, जोकि तीन बेटियों की माँ थी मजबूर-सी देख रही थी। बाद में अकेले में उसने बताया कि उसे बेटे को जन्म देने या पति की दूसरी शादी स्वीकार कर लेने में से एक को चुनना था। मेरे पास उसे सुझाने के लिए कोई भी हल नहीं था।
दुर्भाग्य से कई परिवारों में महिलाएँ भी ये तरीके इस्तेमाल करने की इच्छुक होती हैं। प्रतिबन्ध लग जाने का केवल थोड़ा-सा ही असर हुआ है। सबसे पहले सामाजिक बदलाव आना ज़रूरी है। उत्तराधिकार के कानूनों में बदलाव, शिक्षा, बुढ़ापे के लिए सामाजिक सुरक्षा, और महिलाओं के लिए रोज़गार के अवसरों से ही कुछ फर्क पड़ सकता है, क्योंकि फिर बेटियों को बोझ नहीं माना जाएगा। भारत जैसे गरीब देश में जहाँ ७० प्रतिशत लोग खेती से होने वाली अनिश्चित आमदनी से गुज़ारा करते हैं, वे सुरक्षा के लिए बेटों पर निर्भर करते हैं।