आयुर्वेद में शरीर शुद्धिकरण के पॉंच तरीके हैं। इन्हें पंच – कर्म कहते हैं। ये तरीके हैं – नस्य (नाक में दवा डालना), वमन (उल्टी करवाना),विरेचन, बस्ती और रक्त-मोक्षण (खून निकलना)। ये उपाय मुख्य दोषों की बहुत सारी बीमारियों में उपयोगी होते हैं।
त्वचा की बहुत सी बीमारियों, दमा, जोड़ों के दर्द, अत्यम्लता और शोथवाली सूजन के इलाज के लिए उल्टी करवाना काफी उपयोगी होता है। इन तरीकों में पाचनतंत्र में इकट्ठी हुई चीज़ें निकल आती है। वहीं पड़ी रह जाने से इनमें सड़न होती है। सडनसे ज़हरीली चीज़ें बनती हैं।
वमन के बुनियादी तरीके में आहार नली में से स्त्राव निकलते हैं जिसके बाद उल्टी हो जाती है। उल्टी के लिए कड़वे फल जैसे इन्द्रायन या मदन, कड़वा पलवल या कड़वी तौराई आदि इस्तेमाल होते हैं। घी देकर सात दिनों के लिए पेट को तैयार किया जाता है। घी से सभी दोष आँत में पहुँच जाते हैं। जिस दिन ये प्रक्रिया करनी होती है उस दिन व्यक्ति को दही और पकी हुई उड़द की दाल खिलाई जाती है। ३ से ४ घण्टों के बाद गीले चावल दिए जाते हैं। यह तरीका केवल जानकारी के लिये दिया हैं। वमन का तरीका किसी विशेषज्ञ से सीखें और उसके बाद पर्याप्त अनुभव के बाद दूसरों का इलाज करें।
उल्टी से पेट का ऊपरी हिस्सा साफ होता है और विरेचण से निचला हिस्सा। इससे पित्त दोष की बीमारियॉं ठीक हो जाती है। आमतौर पर ये वमन की प्रक्रिया के बाद दिया जाता है। वमन के लिए ३ से ४ दिन रोज़ सुबह ५० मिली लीटर घी लें जिससे आहार नली का निचला हिस्सा मुलायम हो जाए। सामान्य घी की जगह तिक्तक घी का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। ये घी कड़वी चीज़ों से निरूपित होता है। चुने हुए दिन में विरेचक दवा सुबह लें। दवा लेने से पहले हल्का फुल्का खाना खाने से कल की मात्रा बढ़ जाती है। इस तरीके से सुबह सुबह ३-४ पतली टट्टी हो जाती हैं। ये दवा (कौन सी ? ? ? ) एक तेज़ विरेचक है। इसलिए जिन लोगों का आहार तंत्र नाजुक /दुबला हो उन्हें कोई और हल्का विरेचक (जैसे त्रिफला चूर्ण या अमलतास का गूदा) लेना चाहिए। विरेचण के ४-५ घण्टों बाद कुछ हल्का खाना जैसे खिचड़ी दें।
आयुर्वेद में निचले आहार तंत्र को मुलायम बनाने के लिए बस्ती चिकित्सीय एनीमा दिया जाता है। बस्ती सामान्य एनीमा से अलग एक दवायुक्त अन्दरुनी एनीमा होता है। इसका तेल सख्त हो गए मल को मुलायम और पतला बना देता है। यह तेल बड़ी आँत में अवशोषित भी हो जाता है। यह विचार पाचन तंत्र की (आधुनिक समझ के अनुसार काफी विचित्र आधुनिक शास्त्र के अनुसार के बाद छोटी आँत में विभिन्न पाचन एन्ज़ाइम तेलों को पचाते और अवशोषित करते हैं) मूल पदार्थो के अनुसार बस्ती कई प्रकार की होती है।
बस्ती के लिए एक रबर की नली का इस्तेमाल करते हैं। वयस्कों में करीब ५० मिलीलिटर लम्बी नली का इस्तेमाल होता है। इससे छोटा बस्ती (६० मिली लीटर) को मात्रा बस्ती कहते हैं। समय से पहले पैदा हुए नवजात शिशुओं तक को भी मात्रा बस्ती दी जा सकती है। इससे उनका भार ठीक से बढ़ सकता है। बस्ती का तरीका विशेषज्ञों से सीखा जा सकता है। बस्ती से पहले पेट और मूत्राशय खाली करना होता है। इसे वात काल में शाम के समय देना अच्छा रहता है। एक खास तरह की पिचकारी जिस पर रबर की नली चढ़ी होती है, की मदद से जड़ी बूटियों के काढ़ा, खनिज, औषधीय लेप और तेज बाउल के अन्दर डाला जाता है।
अगर ये पिचकारी नहीं मिले तो साधारण एनीमा का बर्तन थोड़ा ऊपर रखने से भी काम चल सकता है। पर ये तभी काम करता है जब बस्ती में इस्तेमाल होने वाला पदार्थ थोड़ा द्रवीय हो। इस तरीके में थोड़ा समय लगता है। इसके बाद व्यक्ति को बाई करवर्ट से लिटा दिया जाता है। चारपाई का पैर वाला सिरा थोड़ा उठा कर रखने से बस्ती को पेट में नीचे की ओर पहुँचाने और अन्दर रखने में मदद मिलती है। बस्ती का बस्ती पेट में ४ से ६ घण्टों में अवशोषित हो जाती है। अगली बार मल त्याग के समय शरीर के अन्दर की चीज़ें बाहर निकल आती हैं। बस्ती से पाचन क्रिया बेहतर होती है।
नस्य का अर्थ है नाक में दवाई की बूँदें या चूरन डालना। इससे नाक और उसके साथ के हिस्से के जमा हुए स्त्राव और खुरंट आदि को साफ करने में मदद मिलती है। इसका तरीका काफी आसान होता है। व्यक्ति को पीठ के बल ज़मीन या मेज़ पर इस तरह लिटा दें जिससे उसकी नाक ऊपर की ओर मुड़ी रहे या सिर थोड़ा सा लटका रहे। इससे नाक की गुहाएँ नीचे की ओर जाती हैं। रस से दवा की बूँदें अन्दर जा सकती हैं। सामान्यत: नमका का घोल नस्य के लिए इस्तेमाल होता है। (नाक को नमक के पानी से धोने की नेती कहते हैं)। नाक के दोनों छेदों में तीन तीन बूँदें डाली जाती हैं। इससे शुरू में थोड़ी खुजली सी होती है पर एक आध मिनट में यह ठीक हो जाती है। इसके अलावा शीकाकाई और अदरक के घोल भी उपयोगी हैं। इन घोलों से थोड़ी ज़्यादा बैचेनी होती है। नस्य के बाद व्यक्ति को उसी तरह से कम से कम ३ मिनट तक लेटा रहने देना चाहिए। उसके बाद गुनगुने पानी से गरारे करने चाहिए। विदर (सायनस) को ठीक से साफ करने के लिए गर्म सेक के बाद चेहरे की मालिश उपयोगी होती है। नास्य से पहले यह करनी चाहिए। नस्य आँख, नाक, सायनस और कान के लिए उपयोगी होता है। चिरकारी वायुविवर शोथ के लिए यह एक अच्छा इलाज है। आयुर्वेद में मिर्गी के रोगियों को भी नस्य करने की सलाह दी जाती है। सिर के व्याधी, गर्दन तथा कंधोंके व्याधीयों में भी नस्य उपयुक्त होता है।
त्वचा के बहुत से रोगों और उच्च रक्त चाप के इलाज के लिए यह करवाया जाता है। फोड़ा होने की पूर्व स्थिति में रक्तमोक्षण एक उपयुक्त्त उपाय है। पहले इसके लिए जोंक का इस्तेमाल होता था। पर अब ये पिचकारी और सूई या खास उपकरण से भी कर सकते है। परन्तु जोंक यह काम बहुत ही कम दर्द के साथ कर देती है। और जोंक काफी उपयोगी होती है जब त्वचा के एक हिस्से में से खून निकलवाना होता है।
बहुत से वैद अपने-अपने पास जोंक तैयार रखते हैं। जोंक रखने के लिए एक बोतल में थोड़ी मिट्टी और पानी लेना होता है। बोतल के ढक्कन में छेद कर देना चाहिए ताकि हवा अन्दर जा सके। पानी में क्लोरीन नहीं होना चाहिए क्योंकि क्लोरीन से जोंक मर जाती है। अगर आप नल के पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं तो उसे कुछ घण्टों के लिए खुला छोड़ दें ताकि उसमें से क्लोरिन निकल जाए। जोंक गर्म मौसम में मर जाती हैं, इसलिए एक मिट्टी या चीनी मिट्टी का बर्तन कॉंच की बोतल से बेहतर रहता है। जोंक बर्तन में मौजूद मिट्टी में से खाना खा लेती हैं इसलिए खाने के लिए कुछ भी और डालने की ज़रूरत नहीं होती। धारियॉं वाला जोंक इस्तेमाल नहीं करनी क्योंकि वह ज़हरीली होती हैं।
रक्तमोक्षण प्रक्रिया से पहले जोंक को सक्रिय करना होता है। इसके लिए उसे हल्दी के पानी में रखना पड़ता है। इसके बाद साफ पानी से उसे धो दें। स्प्रिट, आयोडिन या और किसी रसायन का इस्तेमाल न करें। इसके बाद जोंक को त्वचा के ऊपर रखें। यह तुरन्त खून चूसना शुरू कर देती है इसमें लगभग न के बराबर दर्द होता है। जोंक खून चूस कर मोटी हो जाती है (जो कि करीब ५ से १० मिली लीटर होता है) और फिर नीचे गिर जाती है। अगर आप पहले इसे हटाना चाहते हैं तो उस जगह पर नमक या हल्दी लगा दें। अगर आप और खून निकलाना चाहते हैं तो और जोंक इस्तेमाल की जा सकती है।
प्रक्रिया के बाद जोंक को तुरन्त हल्दी के पानी में रखें ताकि वो खून उगल दे। इसके बाद इसे पूछ से मुँह तक हल्के से निचोड़ दें। अगर जोंक के अन्दर से खून न निकाल लिया जाए तो वो मर सकती है। जोंकों को सात दिनों के अन्तराल के बाद फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है। जोंक अशुद्व खून चूस लेती हैं। खून निकालने के आधुनिक तरीके भी गन्दा खून निकालने के लिए अच्छे रहते हैं। पर इनसे किसी स्थान विशेष से गन्दा खून नहीं निकाला जा सकता। इसके लिए जोंक ज़्यादा उपयोगी रहती है।