पेट के निचले हिस्से के अंग एक पतले से थैले से ढंके रहते हैं। इस थैली में जो जगह होती है उसे पर्युदर्या गुहा कहते हैं। स्वस्थ्य लोगों में इसे गुहा में थोड़ा सा द्रव भरा रहता है जिससे यह थैली अन्दर के अंगों को सुरक्षा देती है। कई सारी बीमारियों में पर्युदर्या गुहा में पानी इकट्ठा हो जाता है। इस ज़रूरत से ज़्यादा द्रव को जलोदर कहते हैं। इसके कई कारण होते हैं।
इस तरह से जलोदर अपने आप में कोई बीमारी नहीं है। पर ये और कई गम्भीर बीमारियों के कारण हो सकती है। इसका सबसे आम कारण है लीवर सिरोसिस। इसलिए इसके इलाज के लिए असल में उस बीमारी का इलाज किया जाना ज़रूरी होता है जिसके कारण यह हुई हो। इसे सम्भालना काफी जटिल है और इसलिए इसके रोगी को अस्पताल में दाखिल करना ज़रूरी है। लीवर सिरोसिस से हुए जलोदर में आप द्रव बाहर निकालने की सोच सकते हैं। यह तकनीक आसानी से सीखी जा सकती है। इससे रोगी को काफी आराम मिलता है। एक दिन में एक लीटर से ज़्यादा द्रव न निकालें। द्रव निकालने के लिए ठीक तकनीक का इस्तेमाल करें। इस प्रक्रिया में कीटाणुरहित सफाई बनाए रखना बिल्कुल ज़रूरी है।
इस तरह से जलोदर अपने आप में कोई बीमारी नहीं है। पर ये और कई गम्भीर बीमारियों के कारण हो सकती है। इसका सबसे आम कारण है लीवर सिरोसिस। इसलिए इसके इलाज के लिए असल में उस बीमारी का इलाज किया जाना ज़रूरी होता है जिसके कारण यह हुई हो। इसे सम्भालना काफी जटिल है और इसलिए इसके रोगी को अस्पताल में दाखिल करना ज़रूरी है। लीवर सिरोसिस से हुए जलोदर में आप द्रव बाहर निकालने की सोच सकते हैं। यह तकनीक आसानी से सीखी जा सकती है। इससे रोगी को काफी आराम मिलता है। एक दिन में एक लीटर से ज़्यादा द्रव न निकालें। द्रव निकालने के लिए ठीक तकनीक का इस्तेमाल करें। इस प्रक्रिया में कीटाणुरहित सफाई बनाए रखना बिल्कुल ज़रूरी है।
आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था में लीवर सिरोसिस से हुए जलोदर के लिए कोई इलाज नहीं है। पर आयुर्वेद में इससे निपटने के अपने तरीके हैं। इसमें सलाह दी जाती है कि 6 महीनों के लिए पानी और नमक बिल्कुल बन्द कर दिया जाए और सिर्फ दूध पिया जाए। इससे लीवर सिरोसिस से हुआ जलोदर ठीक हो सकता है। इस समय में अंकुरित चीज़ें खाना भी कम कर देना चाहिए। अगले तीन महीनों में रोगी को धीरे-धीरे साधारण खाना खाना शुरू कर देना चाहिए थोड़ी सी रोटी और लहसन से शुरुआत करें। पेट साफ करने के लिए कोई हल्का विरेचक दें जैसे कि आक के दूध की दो तीन बूँदे खाने में मिला दें। बेहतर होगा अगर ये बूँदे दाल में मिलाई जाएँ। आक का दूध बहुत ज़्यादा नहीं देना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से दस्त हो सकते हैं।
आरोग्यवर्धिनी (500 मिलीग्राम) लीवर का काम बेहतर करने के लिए अच्छी रहती है। एक या दो गोलियॉं दिन में दो से तीन बार दें यह दवा 3 से 9 महीने तक देते रहें इसके साथ साथ बराबर मात्रा में (2 से 3 चम्मच भरकर) कुमारी आसवा और पुनर्नवा आरिष्ट भी पानी के साथ दें। पुनर्नवा अरिष्ट, सॉंठ या ठिकरी नाम के एक खरपतवार से बनता हैं। यह खरपतवार मध्य व पश्चिमी भारत के खेतों में जून से जनवरी के महीनों में उगती है। अगर यह ख्ररपतवार उपलब्ध हो तो इसका सेवन 3 से 6 हफ्तों तक रोज़ किया जाना चाहिए। इससे लीवर के काम करने की क्षमता में सुधार होता है ऐसा आयुर्वेद मानता है।
हर्निया आन्तरिक अंगों के शरीर के सामान्य छिद्र से असमान्य रूप से बाहर निकलना ि हर्निया कहलाता है।। जैसे कि आमाशय का हायटस से निकल कर छाती में घुसना या फिर आँते पेशियों का नाभी के रास्ते की चादर में खाली स्थान के माध्यम से पेट की दीवार में घुसना या आँतो का इनग्वानल कैनाल से नीचे अंडकोष्(स्को्टम) में घुसना।
नवजात शिशुओं में नाभीय हर्निया अक्सर ही हो जाता है। यह पेशी की चादर में खाली स्थान के कारण होता है। इस मामले में यह खाली स्थान वहॉं होता है जहॉं नाभी नाल जुड़ी रहती है। ज़ाहिर है कि मॉं इस सूजन को लेकर चिन्तित होती है। यह सूजन दबाव से कम हो जाती है और फिर बढ़ जाती है। इस सूजे हुए हिस्से में आँत ढीले गुब्बारे जैसी महसूस होती है और बड़ी आसानी से पकड़ में आती है। दो साल के बाद कभी भी ऑपरेशन किया जा सकता है। अक्सर इस तरह का हर्निया इस उम्र के साथ ठीक हो जाता है इसलिए उस उम्र तक इन्तज़ार करना ठीक रहता है।
जॉंघ में सूजन सबसे महत्वपूर्ण लक्षण है। यह सूजन हाथ से दबाने पर खतम हो जाती है। खॉंसी से या किसी भी और चीज़ से सिसे पेट पर दबाव पड़ता है, सूजन फिर से हो जाती है। सूजन वाली जगह में आँत महसूस की जा सकती है। बड़ी उम्र में होने वाले हर्निया से अवरोध की सम्भावना छोटी उम्र में होने वाले हर्निया की तुलना में कम होती है। यह अवरोध सूजन वाले क्षेत्र में फॅंदे के फूल जाने या मुड़ जाने के कारण होता है। सूजन के आकार में बढ़ोत्तरी, टैडरनैस दबाने से दर्द गर्मी और दर्द इसके शुरुआती लक्षण हैं। आँतों के अवरोध से उल्टी आने लगती है। इस जटिलता पर ध्यान न देने से मौत हो सकती है|