child-health-icon बच्चों का पोषण और कुपोषण
विटामिन ए की कमी
vitamin A
vitamin A
लक्षण

यह रतौंधी (रात में दिखाई देने में मुश्किल), ऑख के सफेद हिस्से में धब्बे (बिटोट धब्बे) और नेत्रश्लेष्मा तथा कोर्निया (पपोटा) के सूखने से शुरु होते हैं। इसके बाद कोर्निया में घाव हो जाते हैं। इसके बाद यह अपारदर्शी हो जाता है। ठीक इलाज के अभाव में इससे स्थाई अंधापन हो सकता है, जो कि सहसा दोनों आँखों में होता है।

बिटोट धब्बे कोर्निया के बाहर की ओर नेत्रश्लेष्मा पर सफेद रंग की परत जमने को कहते हैं। इन जगहों पर काजल भी जमा हो जाता है। रात के समय चलने में लड़खड़ाना या तश्तरी में खाना टटोलना रतौंधी के लक्षण हैं। यह बीमारी विटामिन ए से पूरी तरह से ठीक हो जाती है। परन्तु बिटोट धब्बे मात्र इलाज के बावजूद भी बने रहते हैं।

कोर्निया को नुकसान

अगर कोर्निया सूख जाए तो इससे वो खराब हो जाता है। कोर्निया के अल्सर इलाज से ठीक हो जाते हैं परन्तु निशान रह जाते हैं। यह ज़रूरी है कि बीमारीका ईलाज उसी अवस्था में हो जब कोर्निया सूख गया हो। इसके लिए इसी अवस्था में विटामिन ए की खुराक दी जानी चाहिए। इस मापतोल के अलावा भी कुपोषण के कुछ लक्षण होते है। उदा. हिमोग्लोबीन या रक्तद्रव्य का प्रमाण १२ ग्रॅम से अधिक हो। लगभग ५०% बालकों में खून की कमी होती है।

इलाज

किसी भी अवस्था में विटामिन ए की कमी का पता लगने पर इसका इलाज करना जरुरी है १ मिलीलीटर (विटामिन ए की ६ लाख यूनिट) विटामिन ए का घोल हर दो दिनों में और उसके बाद १ मिलीलीटर घोल हर हफ्ते दे कर किया जा सकता है। कोर्निया के अल्सर का ठीक से इलाज करने से अपारदर्शिता से बचाव हो सकता है। विटामिन ए की कमी से दस्त और अन्य संक्रमण होने की भी संभावना रहती है जिन से भी बच्चों की मौतें हो सकती हैं। आँखों में विटामिन ए की कमी के लक्षण दिखने से (रतौंधी, बिटोट धब्बा, कॉर्निया का सूखना इत्यादि), विटामिन ए की विशेष खुराक दी जाती है।

बच्चों में बडों में
६ माह-१ वर्ष १ वर्ष से ऊपर
पहला दिन १००,००० IU २००,००० IU २००,००० IU
दूसरा दिन १००,००० IU २L IU २L IU
दो सप्ताह बाद १००,००० IU २L IU २L IU

गर्भवती महिला को १०,००० IU प्रतिदिन १४ दिन तक दे। एक ही साथ २००,००० IU देने से गर्भस्थ शिशु को नुकसान पहुँच सकता है।

विटामिन ए की कमी होने से रोकने से बचाव

राष्ट्रीय माता बालक स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंर्तगत १ मिलीलीटर की पहली खुराक नौवें महीने में (खसरे की वैक्सीन के साथ) दी जानी चाहिए। इसके बाद १३वें महीने से ६०वें महीने में विटामिन ए हर छठे महीने में दिया जाता है। (दुसरी खुराक १५ माह में) इस उम्र के सभी बच्चों को २ मिलीलीटर यानि (२ लाख यूनिट) विटामिन ए का घोल दिया जाता है। विटामिन ए वसा में घुल जानेसे यह महीनों तक शरीर की वसा में बसा रहता है। इससे बच्चा विटामिन ए की कमी से बच जाता है। गर्भवती और स्तनपान करवाने वाली महिलाओं को भी विटामिन ए दिया जाता है।

चेतावनी – विटामिन ए की मात्रा सही देना जरुरी है, जादा देनेसे उल्टियॉं, मस्तिष्कपर असर हो सकता है। कभी कभी बच्चेका वही डोस गलतीसे दुबारा देनेपर भी बुरे असर हो सकते है। यही हादसा भारत के अरुम प्रांतमें बडे पैमानेपर हुआ था। मात्रा देने में ६ महिनेका अंतराल आवश्यक समझे।

विटामिन बी की कमी
vitamin B
vitamin B

बी समूह के विटामिन शरीर में बहुत तरह के काम करते हैं। विटामिन बी की कमी से मुखपाक, गालों पर चकत्ते, मुँह के कोनों में दरारें और अनीमिया हो जाता है। विटामिन बी हरी सब्ज़ियों, बिना पोलिश किए चावल (हाथ से कुटे हुए या अधउबले या सेला), फलों या अंकुरित अनाजों आदि में मिलता है।

विटामिन सी की कमी
vitamin C
vitamin C

मॉं के दूध में विटामिन सी की कमी होती है। और इसकी कमी तीन महीनों के बाद दिखाई देनी शुरु होती है। छ: माह के उम्र के बाद जब बच्चे का आहार जैसे फलों के रस और हरी सब्ज़ियॉं दी जाती है, इससे आम तौर पर इसकी पूर्ती हो जाती है। कभी कभी विटामिन सी की कमी से बच्चों में खास तरह की बीमारी हो जाती है। इसके लक्षण और इलाज नीचे दिए गए हैं।

लक्षण

हड्डियों में दबाने से दर्द होने लगता है। बच्चे को उठा ने पर वह दर्द के कारण रोने लगता है। छाती के बीच की हड्डी के दोनों ओर पसलियों के जोड़ों में सूजन हो जाती है। यह छाती में एक माला जैसी महसूस होती है। इस लक्षण को स्कर्बीजन्य रोज़री कहते हैं। सूजन की जगहों पर दबाने से दर्द होता है। इसके विपरीत रिकेट की सूजन में दबाने से दर्द नहीं होता। मसूड़ों में सूजन और उनमें से खून आना भी आम है। त्वचा के अंदर खून निकलता है और ज़ख्म भी हो जाते हैं।

इलाज

विटामिन सी दें। यह गोलियों के रूप में उपलब्ध है। नींबू, संतरा और आँवला, विटामिन सी के अच्छे स्त्रोत हैं। पॉंच दिन तक दवा लेने से इस तरह की बीमारी ठीक हो जाती है।

विटामिन डी की कमी
vitamin D
vitamin D

विटामिन डी कैल्शियम के साथ मिल कर हड्डियों को मजबूत बनाता है। विटामिन डी की कमी से बच्चों में रिकेट्स नामक बीमारी हो जाती है।

लक्षण

दुबले पतले हाथपैर, माथे का फूल जाना, खोपडो के हड्डियों को जुडने में देरी होना, पेट फूल जाना और पैरों का मुड़ जाना रिकेट्स की गंभीर स्थिति के सूचक होते हैं। बनावट में ये गड़बड़ियॉं इलाज के बाद भी रहती हैं। विटामिन डी की कमी के लक्षण इस प्रकार हो सकते है।

  • हड्डियों में दर्द
  • दॉत देर से निकलना या जल्दी सड जाना
  • मॉंसपेशी में कमजोरी
  • हड्डियों के टूटने की अधिक संभावना
  • सीने की मध्य हड्डी से जुडे पसलियों की जोड की जगह सूजन होना
  • लम्बी हड्डियों के आखरी भागों का चौडा हो जाना, (कलाई का चौडा होना अक्सर विटामिन डी की कमी का प्रथम लक्षण होता है)
  • पैरों का या रीढ की हड्डी का टेढा हो जाना

इलाज

सक्रिय रिकेट्स केवल दो साल तक के बच्चों में होता है। क्योंकि इस उम्र के बाद बच्चा घर से बाहर निकलने लगता है और उसे सूरज की धूप से शरीर में विटामिन डी बनने लगता है। बच्चे को रोज सुबह और शाम १५ मिनट तक कच्ची धूप में ले जानेसे उसे रिकेट्स से बचाया जा सकता है।

दूध, मछली का तेल, अंडे और मांस विटामिन डी के अच्छे स्त्रोत होते हैं। शाकाहारी भोजन में विटामिन डी का कोई स्त्रोत नहीं होता है। यह विटामिन चूरण के रूप में मेडिकल स्टोर में भी मिलता है। इसकी खुराक को एक कप दूध में मिलाएं। खुराक को हर ६ स्स्महीने बाद दोहराएं।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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