harmonहारमोन
घेंघा रोग पर नियंत्रण
नमक में आयोडीन डालना
आयोडिनवाला नमक

भारत के कई भागों में आयोडीन की कमी से होने वाला घेंघा रोग और बच्चे पर इसके असर की गम्भीर समस्या है। समुद्र तट के पास रह रहे लोगों के पास समुद्री खाना, आयोडीन युक्त पानी और शाकाहारी खाना उपलब्ध होता है। पर उसके अलावा सभी भारतीय राज्य आयोडीन की कमी के कारण होने वाली बिमारियों के शिकार होते हैं। पहाड़ी क्षेत्र और भारत के उत्तरी मैदान आयोडीन की कमी से खासतौर पर प्रभावित रहते हैं। यह बीमारी लाइलाज है। पर नमक में आयोडीन डालने से इससे पूरी तरह से बचाव हो सकता है। मनुष्यों के लिए सिर्फ खाना और पानी आयोडीन के स्त्रोत होते हैं। इसलिए हमें इसकी कमी होने पर खास आयोडीन उपलब्ध कराने के तरीकों का, जैसे नमक में आयोडीन डालना, इस्तेमाल करना पड़ता है। विश्व भर के कई एक देशों में नमक में आयोडीन मिलाने से इस बीमारी से मुक्ति पाने में काफी सफलता मिली है। भारत में भी ऐसा करने की ज़रूरत है। भारत सरकार ने गोवा, पाण्डुचेरी, केरल और महाराष्ट्र के कुछ ज़िलों के अलावा सभी राज्यों में नमक में आयोडीन मिलाया जाना अनिवार्य कर दिया है।

गुजरात, तमिलनाडु और राजस्थान राज्यों में नमक की फैक्टिरियों से ही आयोडीन मिला नमक मिलता है। रेल के डिब्बों से यह अलग-अलग शहरों तक पहुँच जाता है। यह पैकटों में मिलता है। आयोडीन युक्त नमक के पैकेटों में हँसते हुए सूरज का चित्र होता है। आयोडीन युक्त नमक में से आयोडीन निकल जाना: अगर आयोडीन युक्त नमक को कई दिनों तक वातावरण में खुला रखा जाए तो इससे इसका आयोडीन उड़ जाता है। घर में प्रयुक्त होने वाले नमक में आयोडीन की मात्रा कम हो जाती है। मिट्टी के बर्तनों में रखे हुए नमक में से आयोडीन ज्यादा आसानी से उड़ता है। एक महीने में लगभग पूरा आयोडीन उड़ जाता है। इसलिए नमक को हमेशा ढँक कर रखना चाहिए। नमक में कितना आयोडीन है यह जाँचने के लिए मण्ड परीक्षण करना चाहिए। जब हम नमक पर मण्ड डालते हैं तो नमक नीला-सा दिखने लगता है। नमक में जितना अधिक आयोडीन होगा उतना ही गहरा रंग आएगा। आप नमक की मात्रा मानक शीशे से तुलना करके पता कर सकते हैं। इसके लिये आयोडीन टेस्ट किट प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से उपलब्ध हो सकते है।

घेंघा रोग के लिए जाँच

स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के रूप में हम ये जाँच कर सकते हैं कि गाँव में कितने लोग घेंघा रोग से ग्रसित हैं। यह भी पता करें कि गाँव की दुकान पर मिलने वाला नमक आयोडीन युक्त है या नहीं। गर्भवती महिलाओं और उनके परिवारों को खास तौर पर इसके बारे में बताया जाना चाहिए। यह भी सुनिश्चित करें कि नमक घरों में ठीक से रखा जा रहा है। अगर सम्भव हो तो नमक में आयोडीन की जाँच मानक मण्ड के घोल से करें। यह सुनिश्चित करें कि आपका दुकान वाला आयोडीन युक्त पैकेटों में बन्द नमक ही बेचता है।

परावटु ग्रन्थियाँ

अवटु ग्रन्थि के ऊपर दो जोड़ी छोटी-छोटी ग्रन्थियाँ होती हैं। इन्हें परावटु ग्रन्थियाँ कहते हैं। परावटु ग्रन्थियाँ एक हारमोन स्त्रावित करती हैं जिसे परावटु हारमोन (पीटीएच) कहते हैं। यह हारमोन शरीर में कैलशियम के स्तर का नियंत्रण करता है।

परावटु ग्रन्थियों की बीमारियाँ – अधिक पीटीएच

इस ग्रन्थि की बीमारियाँ काफी कम ही देखने में आती हैं। पैराथायरॉएड हारमोनों के ज्यादा स्त्रावित होने से खून में कैलशियम का स्तर बढ़ जाता है। करीब 50 प्रतिशत मामलों में इसके कोई लक्षण नहीं होते। बाकियों में भी अस्पष्ट से लक्षण होते हैं जैसे भूख न लगना, उनींदापन, किसी चीज़ में ध्यान न लगना आदि। इसलिए लक्षणों के आधार पर बीमारी का पता नहीं चल पाता है। सिर्फ जैव रासायनिक टेस्ट से ही इसका पक्का पता चलता है। कुछ लोगों में पीटीएच की मात्रा (इसलिए खून में कैलशियम की मात्रा) बढ़ जाने के कारण पेशाब के रास्ते में पथरी हो जाती है।

कम पीटीएच

पीटीएच के कम होने से खून में कैलशियम की मात्रा कम हो जाती है। बच्चों में इस बीमारी का सबसे आम लक्षण ‘अपतानिका’ (टेटनी) होता है। यह बच्चों में हाथों में होने वाली खास तरह की ऐंठन है। हाथ मुड़ जाते हैं, खिंच जाते हैं और उँगलियाँ सीधी हो जाती हैं और आपस में जुड़ जाती हैं। ऐंठन में दर्द होता है और यह कुछ मिनटों तक रहती है। बच्चे को घघर्र (स्ट्रायडेर) भी हो जाता है (यानि स्वरयंत्र की पेशियों में ऐंठन के कारण न बोल पाना)। इसके अलावा दौरे भी पड़ते हैं। बड़ों में झुरझुरी और हाथ-पैर के सुन्न पड़ने की शिकायत होती है। बड़ों को भी टेटनी हो सकती है। टेटनी की जाँच के लिए एक आसान टेस्ट यहाँ दिया जा रहा है। बाँह पर रक्तचाप नापने का पट्टा बाँध दें और दबाव को प्रकुंचन से ज्यादा बढ़ाएँ। अगर कैलशियम कम है तो ऐसा करने पर बाँह टेटनी दिखा देगी। टेटनी के तुरन्त इलाज के लिए 10 मिली लीटर कैलशियम ग्लूकोनेट (दोनों कूल्हों पर 5-5 मिली लीटर) का इंजैक्शन दें। अन्तर पेशीय इंजैक्शन बेहतर होता है पर यह 5 मिनट के अन्तराल में दिया जाना चाहिए। निरोगण तुरन्त हो जाता है। आगे की जाँच और इलाज के लिए व्यक्ति को अस्पताल पहुँचाएँ।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

message-icon shyamashtekar@yahoo.com     ashtekar.shyam@gmail.com     bharatswasthya@gmail.com

© 2009 Bharat Swasthya | All Rights Reserved.