काम के वातावरण का भी स्वास्थ्य के स्तर पर काफी असर होता है। काम का प्रकार, काम के हालातों के जोखिम, काम का वातावरण और सुरक्षा उपायों पर ध्यान दें।
हालमें ऐसा देखा है की मध्य प्रदेश के बडवानी धार साबुआ जिलोमें करीब ५०० लोग इस कारण से मरे की वो कॉंच के कारखानो में काम करते थे। ये सब कारखाने गुजराथ के गोध्रा जिले में थे। मध्य प्रदेश की भील जन जातियोंके स्त्री-पुरुष और कुछ किशोर किशोरी इन कारखानोमें मजदूरी करने लाये गए। हप्तोभर के लिये ३०० से ४०० रु. मजदूरी की बातपर ये सब कारखानो में कॉंच के धूलीकण में काम करने पर मजदूर हुए। कुल १ से १२ महिनो में ही इनके फेफडों मे इतनी कॉंच की धूल गयी की उनको सॉंस लेना भी मुश्किल हुआ। गॉंव वापस आने पर धीरे धीरे उनका काम रुक गया। ऐसे कुछ १७०० मददूरों में २-३ बरस के अंतर में ५०२ मर गये, बचे लोग जिंदगी और मौत की बीच तडप रहे है। कई घरों में सिर्फ बच्चे ही बचे है। यह खतरनाक बीमारी को सिलीकोसीस कहते है। इसमें खॉंसी, सॉंस की तकलीफ, थकान यह प्रमुख लक्षण होते है।
ऐसे ही कई कारखानो में हजारो-लाखो मजदूरी कर रहे है। इन बीमारीयों के बारे में हम अलग अध्याय में विस्तार से पढेंगे।
हालॉकि स्वास्थ्य रहन-सहन के कई कारकों से जुड़ा होता है, परन्तु हमें अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं की भी आवश्कयता है। स्वास्थ्य सेवाओ की ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँच, विशेषज्ञता, उपलब्धता, लोगों के बजट के अन्दर होना और गुणवत्ता, नज़दीकी, सस्तापन, समयोचित, पर्याप्त शस्त्रक्रिया ये पाच महत्वपूर्ण मानक है। और सभी महत्वपूर्ण हैं।