ग्रामीण क्षेत्रों में केवल ३० प्रतिशत प्रसव किसी की मदद के साथ होते हैं। सिर्फ कुछ शहरों को छोड़कर अस्पताल खस्ता हाल में हैं। इस कारण से जनसंख्या और अस्पताल में उपलब्ध बिस्तरों के कम अनुपात का असर और ज़्यादा होता है। जनसंख्या के हिसाब से डॉक्टरों के अनुपात का आँकड़ा उपलबध नहीं है। स्वास्थ्य पर कुल खर्च बहुत कम है, और निजी खर्च सार्वजनिक खर्च से कम है।
बीमारी का इलाज करना ठीक करने वाली चिकित्सा होती है; परन्तु बीमारियों की रोकथाम से सम्बन्धित चिकित्सा को प्रतिबंधक स्वास्थ्य विज्ञान कहते हैं। सभी बीमारियों की रोकथाम नहीं हो सकती है (उदाहरण के लिए जुकाम या कुछ आनुवंशिक बीमारियॉं)। परन्तु स्वास्थ्य सेवा की सबसे महत्वपूर्ण रणनीति बचाव या रोकथाम ही है। वैक्सीन से पोलियो या डिप्थीरिया जैसी बीमारियों से बचाव हो सकता है। परन्तु तपेदिक, एड्स, हैजा और मलेरिया जैसे संक्रामक रोग के लिये प्रभावी टीकाकरण उपलब्ध नही है। वैसे ही दिल की बीमारियॉं ध्वनी प्रदूषण से होने वाला बहरापन, कुपोषण के कारण विकलांगता और नशीली दवाओं की आदत आदि से बचाव के लिए खास उपाए करने होते हैं। बीमारियों से रोकथाम का एकमात्र उपाय टीकाकरण ही नहीं है। अलग-अलग बीमारियों के लिए अलग-अलग उपायों की ज़रूरत होती है। जैसे कि दुपहिया वाहन दुर्घटनाओं से बचाने के लिए हैलमेट की या यौन रोगों से बचाव के लिए कण्डोम की। परम्परागत चिकित्सा प्रणालियों जैसे आयुर्वेद, सिद्ध आदि में बीमारियों से बचाव और स्वास्थ्य सुधार के अपने अलग तरीके हैं। जैसे कि आहार से जुड़े हुए दोष के सिद्धान्त। अलग-अलग बीमारियों की रोकथाम के खास उपायों के बारे में सम्बन्धित अध्यायों में बात की जाएगी। यहॉं हम सिर्फ यह देखेंगें कि किस-किस तरह के रक्षा उपाय सम्भव हैं।
स्वास्थ्य में आम सुधार से कई सारी बीमारियों (खासकर संक्रामक बीमारियों) के होने की सम्भावना में अपने आप कमी आ जाती है। यूरोप में तपेदिक और कुष्ठरोग पर प्रभावी नियंत्रण इसके उदाहरण हैं।
इसका अर्थ है व्यक्तिगत स्तर पर किसी खास बीमारी से बचाव के लिए हस्तक्षेप करना। कुछ सुरक्षा उपाए हैं – टीकाकरण, ध्वनि प्रदूषण से बचाव के लिए कानों में प्लग लगाना, रतौंधी से बचाव के लिए विटामिन ए देना या मलेरिया से बचाव के लिए मच्छरदानी का इस्तेमाल करना।
अगर कोई बीमारी हो ही गई है तो जितनी जल्दी हो सके उसका निदान और इलाज होना ज़रूरी है ताकि और अधिक नुकसान न हो। गर्भाशय, स्तनों, मुँह आदि के कैंसर, फेफड़ों का तपेदिक, कुष्ठरोग, निमोनिया, मैनिंजैटिस, फाईलेरिया रोग, उच्च रक्तचाप आदि ऐसी ही बीमारियॉं हैं। अगर इनका निदान और इलाज सही समय पर हो जाए तो ये ठीक हो सकती हैं।
अगर कुछ नुकसान पहले से ही हो गया है तो ऐसे तरीके अपनाने पड़ेंगे जिनसे और नुकसान होने से बचाया जा सके। उदाहरण के लिए पोलियों में और नुकसान से बचाने के लिए हाथ पैरों को सहरा देना और अंग विशिष्ट शारीरिक व्यायाम महत्वपूर्ण उपाए हैं।
पुनर्वास का अर्थ है किसी रोग से ग्रसित व्यक्ति को जहॉं तक सम्भव हो सामान्य ज़िन्दगी बिता पाने के लिए मदद करना। उदाहरण के लिए अगर पैर खराब हो गए हों तो बैसाखी या कैलिपर ज़रूरी हैं। हाथ पैरों का बेकार होना, अन्धापन, गूँगा बहरापन या मानसिक रोग ऐसे उदाहरण हैं जहॉं पुनर्वास की ज़रूरत पड़ती हैं।
जानपदिक रोगविज्ञान उन बीमारियों का अध्ययन है जो कि समुदाय के स्तर पर होते हैं। इसमें बीमारी के विभाजन, वितरण और कारणों का अध्ययन होता है। इससे बीमारी के बारे में पूरी समझ बना पाने में मदद मिलती है।
स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को भी यह रोगविज्ञान उपयोगी होता है। उदाहरण के लिए मलेरिया में आमतौर पर ठण्ड लगने के साथ बुखार होता है। पर बहुत से रोगी ऐसे भी होते हैं जिनमें ठण्ड के बिना बुखार होता है, तिल्ली में सूजन हो जाती है, बहुत अधिक कमज़ोरी आ जाती है और दिमाग पर असर होने के लक्षण दिखाई देते हैं। मलेरिया के किस परजीवी से बीमारी हुई है इसके और कुछ और कारकों के हिसाब से रोग के लक्षण भी अलग-अलग होते हैं। वो स्वास्थ्य कार्यकर्ता जो जानपदिक रोगविज्ञान अध्ययन भी करता है, यह जानता होगा कि उस क्षेत्र में कौन सा मलेरिया फैलता है। और वो उसके बचाव और इलाज के लिए सुझाव भी दे सकेगा।
जानपदिक रोगविज्ञान सर्वेक्षण करने के लिए नीचे दिए गए मुद्दोपर सोचना ज़रूरी हैं –
पहले तीन सवाल बीमारी के फैलाव से सम्बन्धित हैं। इसे विवरणात्मक जानपदिक रोगविज्ञान कहते हैं। बाकी के सवाल कारण और समुदाय में बीमारी को सम्भालने से सम्बन्धित हैं। इसे ऐनालिटिकल याने विश्लेषक जानपदिक रोगविज्ञान कहते हैं। विश्लेषणात्मक जानपदिक रोगविज्ञान से सामुदायिक स्वास्थ्य के बारे में बहुत सारे सवालों के जवाब मिल जाएँगे। जैसे दवाओं का इस्तेमाल। किसी एक रोग की अलग-अलग दवाओं में से कौन सी कितनी सुरक्षित है, कौन सी कम असरकारी है और कौन सी ज़्यादा, और किस में कम दुष्प्रभाव हैं, इसकी जानकारी इस अध्ययन में इकट्ठी की जाती हे1 उपलबध स्थानीय जड़ीबूटियों के असर की जॉंच के लिए भी जानपदिक रोगविज्ञान के आसान तरीकों से की जा सकती है। बीमारी और दवाओं के अलावा अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धित समस्याओं के लिए भी जानपदिक रोग विज्ञान अध्ययन की ज़रूरत होती है। साधारण चिकित्सीय रिकॉर्ड रखना भी महत्वपूर्ण है (जैसा कि तालिका में दिखाया गया है)। संकलित की गई जानकारी से गॉंव की स्वास्थ्य सेवाओं की योजना बनाने में मदद मिलेगी। उदाहरण के लिए इन रिकॉर्डों से हमें पता चल जाएगा कि आपके क्लिीनिक में कितने मलेरिया के रोगियों का इलाज हुआ, इस बीमारी के क्या क्या परिणाम थे, रोगियों को विशेषज्ञों के पास भेजना पड़ा था या नहीं, इलाज कितना असरकारक है।