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खासते या छिंकते समय
कपड़े का इस्तेमाल करे

जुकाम सभी उम्र के लोगों को होता है। अक्सर यह मौसमी होता है। जुकाम असल में नाक की गुफा का शोथ है जो एलर्जी या किसी वायरस की संक्रमण से होता है। वायरस से होने वाला जुकाम संक्रामक होता है यानि एक व्यक्ति से दूसरे में फैल जाता है। खासकर कमज़ोर लोग एक दो दिनों में से इसकी चपेट में आ जाते हैं। यह हवा से फैलता है। जुकाम के वायरस संबंधी प्रतिरक्षा बहुत ही सीमित समय के लिए होती है। इसलिए एक व्यक्ति को कुछ ही दिनोंके बाद दोबारा जुकाम हो सकता है। इसके अलावा जुकाम करने वाले वायरस बहुत ही सारे हैं। जुकाम वायरस का कोई खास इलाज नहीं है। जुकाम करने वाले वायरस की करीब दस बड़ी श्रेणियॉं हैं। हर श्रेणी में भी बहुत सारे वायरस होते हैं। हर एक की अलग-अलग तरह की प्रतिरक्षा प्रक्रिया होती है। यानि एक वायरस के लिए प्रतिरक्षा दूसरे वायरस के लिए बेकार होती है।

इसलिए इस सीमित प्रतिरक्षा का भी खास फायदा नहीं रहता। यानि जुकाम दूसरी बार दूसरे किसी वायरस से भी हो सकता है। यह कह पाना मुश्किल होता है कि कौनसा जुकाम एलर्जी से हुआ है और कब वायरस से। दोनों में सिर्फ यही फर्क है कि वायरस से होने वाला जुकाम संक्रामक होता है। एलर्जी से होने वाले जुकाम में ज़्यादा छीकें आती हैं और बुखार कम होता है।

लक्षण

आम जुकाम में नाक की गुफा के अन्दरुनी (म्यूकोसा) में शोथ हो जाता है। इससे सूजन, लाली और लगातार स्त्राव बनने की शिकायत होती है। इसीलिए जुकाम में हमारी नाक भरी रहती है और बहती रहती है। छीकें, नाक का भरा रहना, कानों पर दवाब, आँखों में से पानी निकलना और कभी-कभी नाक बन्द हो जाना जुकाम के लक्षण हैं।

इसके अलावा हल्का बुखार, सिर में दर्द और शरीर में दर्द होता है। वायरस से होने वाली बीमारियों जैसे खसरे या फ्लू से भी जुकाम हो जाता है। जुकाम में पानी आने की समस्या शोथ के कारण होती है। कभी कभी म्यूकोसा में इतनी ज़्यादा सूजन हो जाती है कि एक या दोनों ओर का नाक का रास्ता बन्द हो जाता है। जुकाम के समय गन्ध महसूस न कर पाने की समस्या भी शोथ के कारण होती है। शुरू-शुरू में जो पानी जैसा होता है वो २-३ दिन बाद पीप जैसा गाढ़ा सा हो जाता है। ऐसा बैक्टीरिया के कारण होता है। अगर जुकाम इससे पहले ही ठीक हो जाए तो अलग बात है।

कानों व आँखों पर असर

शोथ से यूस्टेशियन ट्यूब भी बन्द हो जाती है। इससे मध्य कान में हवा के सामान्य बहाव और दवाब के बदलावों पर भी असर होता है। सामान्य स्थिति में गले और कानों के बीच हवा के दवाब के सन्तुलन को बनाए रखने का काम यूस्टेशियन ट्यूब करती है। ठीक से सुन पाने के लिए यह सन्तुलन ज़रूरी होता है। जब किसी शोथ या संक्रमण के कारण या ट्यूब भर जाती है तो इससे ठीक से सुनाई देने में बाधा होती है।

जुकाम के समय आँखों में से पानी इसलिए आता है क्योंकि शोथ अश्रु कोशों के रास्ते में पहुँच जाता है। शोथ के कारण आँखें भी लाल हो जाती हैं। और पानी इसलिए निकलता है क्योंकि अश्रु ग्रंथियों की नलियॉं बन्द हो जाती हैं। इससे सामान्य बहाव की जगह पानी एक साथ निकलता है।

फैलता संक्रमण

कभी-कभी इस सब के साथ संक्रमण गले, स्वर यंत्र, हवा के रास्तों और यहॉं तक की वायुकोशों में भी फैल सकती है।

इलाज
  • सिर में दर्द, बदन में दर्द, बुखार के लिए ऐस्परीन या पेरासिटेमाल दी जा सकती है।
  • एलर्जी होने पर सीपीएम की गोलियों से फायदा होता है।
  • दवाइयों की दुकानों में जुकाम के लिए बहुत सारी दवाएँ मिलती हैं। असल में इन गोलियों में दर्द और बुखार के लिए दवा होती है और साथ में और कई बेकार की चीज़ें होती हैं।
  • ज़्यादातर जुकाम की दवाओं में दर्द के लिए ऐस्परीन, बुखार उतारने की दवा सीपीएम या इसकी तरह एलर्जी के लिये दवा और द्रवाधिक्य (कंजेशन) कम करने के लिए स्यूडोएफेरिन होती है। यह अब नुकसान देह साबित हुआ है।
  • कुछ भी इलाज कर लें जुकाम ठीक होने में कम से कम एक सप्ताह तो लगता ही है।
  • एलर्जी से हुआ जुकाम जल्दी ठीक हो जाता है। कभी-कभी तो एक दो घण्टों में ही।
आयुर्वेद

आयुर्वेद में आप जुकाम से निपटने के लिए खाना बन्द करने की सलाह दी जाती है। कुछ मामलों में उन चीज़ों से बचना जिनसे जुकाम होता है, भी उपयोगी हो सकता है। मौसम में बदलाव से भी जुकाम हो सकता है। इसका एक प्राकृतिक मकसद होता है, वो है शरीर के अन्दर के अतिरिक्त द्रव को बाहर निकालना। इसलिए चलते रहने देना चाहिए। इसे रोकने या कम करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। आर्युवेद में माना जाता है कि इसे रोकने से निचले श्वसन तंत्र की संक्रमण हो जाने का खतरा होता है।

आयुर्वेद में त्रिभुवनकीर्ति की गोलियॉं खाने की सलाह दी जाती है (या फिर नागगुटी)। तीन दिन दो गोलियॉं दिन में तीन बार। खाने में मिर्ची या अन्य तीखी चीज़ों से नाक ज़्यादा बहती है। इससे नाक के अन्दर का द्रवाधिक्य (कंजेशन) कम करने में मदद मिलती है।

नेती – नाक की सफाई

यह नाक की गुफा की सफाई के लिए उपयोगी होती है। आप इसके बारे में योग में पढ़ेंगे। इसे बचाव के लिए करें, तब नहीं जब जुकाम हो जाए। नाक को कुनकुने नमकीन पानी से साफ करने को नेती कहते हैं। सिर्फ उतना ही गर्म और उतना ही नमकीन जितने कि आँसू होते हैं। दायें और बायें तरफ को बारी बारी से साफ करें।

लम्बे समय तक और बार-बार होने वाले जुकाम में नेती बचाव का एक अच्छा साधन है। यह तकनीक मुश्किल दिखती है पर असल में सरल है।

रोकथाम

आपको जुकाम हो तो औरोंको उसका संक्रमण ना हो इसलिये सावधानी बरखना चाहिये। ऐसे समय दूसरोंसे थोडा दूर रहिये। छिंक या खॉंसी के समय रुमाल का प्रयोग करे।

विशेष सुझाव

मुहॉंवरा है की जुकाम दवा के बिना सात दिन में और दवा से एक हफ्तेमें ठीक होता है। इसका मतलब है दवा का जादा असर नही होता। जुकाम ठीक होने को कुछ समय लगता है। इसिलिये इसपर जादा इलाज या खर्चा करना आवश्यक नहीं।

जुकाम में तिखा या मसालेदार सांबर या सूप लेनेसे उपरी श्वसनमार्ग जल्दी खुलता है। मिर्ची या सौंठसे भी यही उपयोग होता है। बंद नाक के लिये नाक में एक-दो बूँद गुनगुना नमक-पानी का प्रयोग करे १ जुकाम के फैलाव के दिनोंमें हो सके तो थोडे दिन घरमेंही रहकर औरोंको न फैलाये।

आपको या किसीको अक्सर जुकाम होता हो तब एक संभावना है नाक के अंदर पॉलीप हो। इस विकार में अंदर अनेक अंगुरनुमा गुच्छे बनते है। इसके कारण जुकाम बार बार होता है। इसके लिये कान, नाक गलेके डॉक्टरसे मिलना चाहिये।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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