गर्भावस्था में एक तरल आनंद की अनुभुती होती है |
गर्भावस्था और बच्चे का जन्म प्राकृतिक क्रियाएँ हैं पर इनमें भी खतरे होते हैं। ज्यादातर विकासशील देशों में मातृ मृत्यु दर बहुत ज्यादा होती है। भारत में गर्भावस्था और बच्चे के जन्म की हर एक हज़ार घटनाओं में करीब ४ माँओं की मौत हो जाती है। इसके सबसे प्रमुख कारण है, प्रसव के दौरान या बाद रक्तस्त्राव, प्रसव के बाद संक्रमण, गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप,बच्चा अहकना, खून की कमी और असुरक्षित गर्भपात। अन्य देशों की तुलना में यह बहुत ज्यादा है। भारत के अधिकांश गाँवों में स्वास्थ्य सेवाएँ बहुत ही खराब हैं। यहाँ न तो पर्याप्त अस्पताल हैं और न ही उपयुक्त यातायात के साधन। वैसे निजी अस्पताल भी कम हैं, और तो और लोगों के पास निजी अस्पतालों में इलाज के लिए पैसा नहीं होता।
जानवरों में प्रसव की तुलना में इन्सानों में प्रसव थोड़ा ज्यादा खतरे वाला होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इन्सान के बच्चे का सिर काफी बड़ा होता है। और यह मुश्किल से प्रसव नली में से बाहर आ पाता है। इसके लिए किसी दूसरे व्यक्ति की सहायता की ज़रूरत होती है। इसलिए जो लोग बच्चे के जन्म के लिए महिला को अस्पताल नहीं ले जाते (पैसों की कमी या किसी और कारण से), वो दाइयों की मदद लेते हैं। स्वास्थ्य कार्यकर्ता को बच्चा जनमाने में दाई को शामिल करना चाहिए और साथ में उसकी सहायता भी करनी चाहिए। अच्छे कौशल से मृत्यु दर और अस्वस्थता दर हम कम कर सकते हैं।
अस्वच्छ परिस्थितियों में अप्रशिक्षित लोगों द्वारा करवाए गए गर्भपात, प्रसव से भी ज्यादा खतरनाक होते हैं। इनसे श्रोणी शोथ रोग (पीआईडी) हो सकता है। गाँवों में सुरक्षित प्रसव आज भी एक सपना ही है। स्वास्थ्य कार्यकर्ता माँ और नवजात शिशु की सुरक्षा के लिए अच्छे हालात बनाने की कोशिश ज़रूर करनी चाहिए। गर्भावस्था और प्रसव के दौरान महिला की मदद करने के लिए साथ प्रशिक्षण किताब की ज़रूरत है। इस अध्याय में गर्भावस्था और प्रसव के बारे में बुनियादी जानकारी दी गई है। परन्तु यह जानकारी सीधे प्रशिक्षण की जगह नहीं ले सकती।
गर्भाशय की अंदरुनी जॉंच |
किसी महीने माहवारी न होना गर्भवती होने का सबसे पहले चिन्ह है। परन्तु जिन महिलाओं में माहवारी अनियमित होती है, उनमें महीना बन्द होना गर्भावस्था का भरोसेमन्द लक्षण नहीं होता। किसी महीने माहवारी न होने पर दो तीन हफ्ते तक इन्तज़ार करें। इस समय तक अन्य लक्षण भी दिखाई देने लगते हैं। इसके बाद पेशाब की जाँच करवाएँ। पेशाब की जाँच के लिए दवाओं की दुकान में अलग-अलग किट मिलती हैं। गॉंव की आशा या नर्स के पास भी यह किट उपलब्ध है। गर्भावस्था के पहले ३ से ४ महीनों में सुबह की तकलीफ काफी आम है। इनमें मितली आना, उल्टी चक्कर आना और सिर में दर्द शामिल हैं। यह सब हॉर्मोन के स्तर में बढ़ोत्तरी के कारण होता है। परन्तु सब महिलाओं को यह तकलीफ नहीं होती।
बच्चेदानी (गर्भाशय) की महिने के अनुसार स्थिती |
पहले तीन महीनों में गर्भाशय की वृध्दि केवल श्रोणी (पेडू) तक ही सीमित होती है। सिर्फ आन्तरिक जाँच से ही इसका पता चल सकता है। छठे से आठवें हफ्ते में गर्भस्थ गर्भाशय साफ पहचाना जाने लगता है। यह मुलायम और बड़ा हो जाता है। गर्भावस्था वाले गर्भाशय में गर्भाशय ग्रीवा मुलायम होता है। पहले तीन महीनों (बारह हफ्तों) के बाद गर्भाशय श्रोणी के (जघन हड्डी) के ऊपर की ओर बढ़ने लगता है। चौथे महीने में पेट में मुलायम बच्चादानी महसूस की जा सकती है। गर्भाशय की वृध्दि लगातार होती रहती है। गर्भाशय के आकार के हिसाब से हम गर्भकाल का पता लगा सकते हैं। छठे महीने तक गर्भाशय नाभि तक पहुँच जाता है। नौवें महीने तक यह छाती के तल तक पहुँचता है।
गर्भावस्था की आरम्भिक अवस्था से ही स्तन बढ़ने लगते हैं। सबसे पहले भारीपन लगता है। फिर निपल/ के पास की गुलाबी त्वचा काली पड़ने लगती है। ये सारे बदलाव ऐस्ट्रोजन के कारण होते हैं। महिला खुद स्तनों के बदलावों को महसूस कर सकती है।
बाद की गर्भ की तुलना में स्तनों में बदलाव पहली गर्भ में ज्यादा स्पष्ट होते हैं। पहली गर्भावस्था के दौरान इनके आकार में जो वृध्दि हुई होती है उसमें से थोड़ी वैसी ही बनी रहती है। यहाँ तक की निपल का रंग भी वैसा ही बना रहता है।
प्रेगनन्सी टेस्ट किट |
माहवारी रुकने के १० दिनों के अन्दर-अन्दर एक स्त्री हारमोन एचसीजी (ह्यूमन कोरिओनिक गोनाडोट्रोपिन) पेशाब में आने लगता है। इसलिए पेशाब की जाँच से पता चल जाता है कि महिला गर्भवती है या नहीं। अगर गर्भपात करवाना हो तो यह जितना जल्दी हो सके करवाना चाहिए। जल्दी गर्भपात करवाने से अधिक खून बहने और अन्य जटिलताओं से बचा जा सकता है।
एक यूपीटी (याने युरीन, प्रेगनन्सी टेस्ट) के अलग किट मिलते है । इसके साथ खुद इसे करने के लिए निर्देश भी दिए होते हैं। इसके परिणाम ५ मिनट में ही मिल जाते हैं।
गर्भावस्था का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण माहवारी बन्द होना है। पिछली माहवारी की तारीख के अनुसार प्रसव जन्म की तारीख का अन्दाज़ा लगाया जा सकता है। गर्भावस्था पिछली माहवारी की तारीख से २८० दिनों (४० हप्तें) की होती है। (नौ महीने और ७ दिनों की)। सामान्य गर्भावस्था में यह प्रसव की अपेक्षित तारीख होती है।
बच्चे के जन्म की अपेक्षित तारीख का अन्दाज़ा लगाने के लिए तालिका साथ में दी गई है। अक्सर महिलाओं को पिछली माहवारी की तारीख किसी सामाजिक या धार्मिक घटना के सन्दर्भ में याद रहती है। इस तारीख के बारे में एक-दो हफ्तों की गड़बड़ी होना बहुत आम है क्योंकि महिला को अक्सर सही तारीख ठीक से याद नहीं होती। इस तालिका में आखिरी माहवारी की तारीख के नीचे प्रसव की अपेक्षित तारीख दी गई है। प्रसव की अपेक्षित तारीख का पता होना स्वयं माँ के लिए तथा, सगे सम्बन्धियों और प्रसव में मदद करने वालों के लिए उपयोगी होता है। अक्सर बेटियाँ अपने पहले प्रसव के लिए मायके आती हैं। उन्हें प्रसव की तारीख से पहले ही वहाँ पहुँच जाना चाहिए। इसी तरह से कामकाजी महिलाओं को अगर प्रसव की अपेक्षित तारीख पता हो तो वो मातृत्व छुटि्ट के बारे में योजना बना सकती हैं। सोनोग्राफी जॉंच से भी प्रसव की तारीख पता चलती है।