इन किताबों में ऐसी दवाओं की सूची होती है जिनसे एक खास तरह के लक्षण उभरते हैं। दवाएँ नाम के शुरू के अक्षरों के अनुसार क्रमबद्ध होती हैं और बताए गए लक्षणों के अनुसार उन्हें चुना जा सकता है। उदाहरण के लिए, सिर में दर्द, जिसमें सिर फटता है, होम्योपैथिक उपचारों के समूह में सूचीबद्ध होती हैं। इन में से एक दवा का चुनाव अन्य लक्षणें के आधार पर किया जाता है। उदाहरण के लिए अगर उसी रोगी को अम्लता भी है तो उसे अलग दवा दी जाएगी। इसलिए हमें एक लक्षण के तहत सूचीबद्ध दवाओं का अध्ययन करना पड़ेगा। सबसे अच्छी दवा वो होती है जो मरीज के रोग के सारे या अधिकॉंश लक्षणों से मिलती है। होम्योपैथी में हमें सारे लक्षणों के लिए एक दवा का चुनाव करना होता है न कि सारे लक्षणों के लिए अलग अलग दवाओं का।
होम्योपैथी में लक्षणों को चार समूहों में डाला गया है|
जब हमें बहुत सारे लक्षण दिखाई दें तो हम कहॉं से और कैसे शुरुआत करें? इसका जवाब यह है कि क्षेत्रीय/आंत्रिक लक्षणों की जगह सामान्य और मानसिक लक्षणों की शुरुआत की जानी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि सामान्य और आंत्रिक लक्षणों से हमें व्यक्ति के बारे में काफी पता चल जाता है। क्षेत्रीय/लक्षणों से केवल एक तंत्र या अंग के बारे में ही पता चल पता है। एक बार दवाई की मोटा मोटा चयन होने के बाद क्षेत्रीय लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए (जैसे कि पीलिया, काली खॉंसी आदि)। मानसिक लक्षण दवा के चुनाव में ज़्यादा महत्वपूर्ण होते हैं। खीज, सनक, लेटने की इच्छा बहुत अधिक संवेदनशीलता और ऐसे सभी लक्षण दवा के चुनाव में मदद करते हैं। सपने और संवेदनाएँ तक इसके लिए महत्वपूर्ण होती हैं।
सार्वजनिक और विशिष्ट लक्षणों को इस्तेमाल करने के बाद, अंगों और तंत्रों के यानि कि क्षेत्रीय लक्षणों की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। क्षेत्रीय लक्षणों की मदद से दवा के बारे में चुनाव पक्का हो जाता है। मेटीरिआ मेडिका इस स्तर पर दवा का सही चुनाव करने के लिए काफी उपयोगी होती हे। परन्तु ज़्यादातर मरीज बहुत कम ही वो सारे लक्षण बताता है जो कि दवा के चुनाव के लिए ज़रूरी होते हैं। इसके लिए इन नियमों पर ध्यान दें।