पेप्सिनी (पेप्टिक) अल्सर
पेप्टिक अल्सर चिरकारी एसिड पेप्टिक बीमारी का ही आगे का रूप है। इसमें पेट या कभी-कभी ग्रहणी छोटी आँत का शुरू का भाग के अन्दर घाव सा हो जाता है। अगर यह अल्सर पैट में होता है तो इसे आमाशयी अल्सर कहते हैं। अगर यह ग्रहणी में होता है तो इसे ग्रहणी का अल्सर कहते हैं।
आमाशय में होने वाला अल्सर काफी आम है। कई समुदायों में इसके इलाज के लिए पेट के ऊपरी हिस्से को दागा जाता है। पुरूषों को महिलाओं की तुलना में ये बीमारी ज़्यादा होती है। ज़्यादातर यह बीमारी अधेड़ उम्र में यानी 40 साल के बाद ज़्यादा होती है। अब ये साबित हुआ है की आमाशयी अल्सर भी जठर अत्यम्लता की तरह बैक्टीरिया की संक्रमण से होता है।
लक्षण
- पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द्र होना एक महत्वपूर्ण लक्षण है। यह दर्द खासकर खाने के समय होता है।
- आमाश्यी अल्सर में खाना खाने के बाद एकदम से दर्द होता है क्योकि खाना ही यह दर्द शुरू करता है। और एसिडिटी से यह बढ़ जाता है।
- ग्रहणी के अल्सर में दर्द खाना खाने के एक दो घण्टे बाद शुरू होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि खाना आँत के इस हिस्से में देर से पहुँचता है।
- देर रात को सुबह सुबह दर्द होना, जिससे रोगी की नींद खुल जाती है, भी अक्सर ग्रहणी के अल्सर के कारण होता है।
- खाने की कुछ चीज़ों से अल्सर में आराम पड़ता है पर कुछ और चीज़ों से इसमें प्रकोप होता है। इसलिए कुछ चीज़ें खाने से दर्द कम हो जाता है और कुछ से बढ़ जाता है।
- दर्द महीनों सालों तक रहता है।
- बार-बार दर्द होना से बीमारी का निदान हो तो सकता है पर पक्की तौर पर बीमारी के होने का निदान गुहान्त दर्शन (एन्डोस्कोपी) नामक जॉंच से होता है। इस जॉंच में एक ट्यूब के द्वारा पेट के अन्दर देखा जाता है।
- अल्सर की जगह पर हो जाने के कारण अन्दर खून भी निकल सकता है। खाने के साथ मिलकर इस खून का ऑक्सीकरण हो जाता है और इससे टट्टी में काला सा रंग आ जाता है। इस स्थिति को मेलेना कहते हैं।
- एसिड पेप्टिक बीमारियों की एक समस्या बनना है अल्सर का फूटना। इससे बहुत बुरा सहन न हो पाने वाला दर्द होता है। शुरू-शुरू में यह दर्द केवल कुछ ही क्षेत्र में होता है पर धीरे-धीरे सारे पेट में फैल जाता है। इससे पर्युदर्या शोथ (पेरीटोनिटिस) की शुरुआत हो जाती है। कभी-कभी उल्टी में खून भी आने लगता है। अगर इस हालत में कछ ही घण्टों में ऑपरेशन न कर दिया जाए तो व्यक्ति की मत्यु भी हो सकती है। रोगी को इस सम्भावना के बारे में भी बताएँ।
अल्सर का इलाज
साधारण कम मिर्च मसाले वाली और आसानी से पचने वाली चीज़ें अल्सर को नहीं छेड़ती और इसलिए इससे दर्द भी नहीं होता। प्रत्यम्ल की गोलियॉं या द्रव आमाशय के अम्ल को सौम्य कर देता है। इससे दर्द कम हो जाता है। रैनिटिडीन या फामोटीडीन दवाईयॉं एसिड का बनना कम कर देती है। इन दवाइयों के साथ दो हफ्तों तक एमोक्सीसिलीन दे कर देखना चाहिए। इससे जीवाणुओं का इलाज होता है। बरसो पहिले इसके लिये ऑपरेशन किये जाते थे और जठर का हिस्सा निकाला जाता था| अब इसकी कतई जरुरत नही, दवा से ही सारा इलाज होता है।
आयुर्वेद
- आयुर्वेद में एसिड पेप्टिक रोगियों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, इस बारे में काफी कुछ कहा गया है। इस सम्बन्ध में कुछ नियम नीचे दिए गए हैं। बासी खाना खाने से अधिक अम्ल बनता है और इससे बीमारी बढ़ जाती है। यह जरूरी है कि बासी खाना खाने से बचा जाए। आयुर्वेद में फल या सब्जियों के अलावा फ्रिज में रखी सभी चीज़ें खाने की भी मनाही की गई है। जहॉं तक सम्भव हो ताजा बना खाना ही खाएँ।
- अरहर या चना भी बीमारी को बढाते हैं। क्योकि इनसे भी अधिक अम्ल बनता है। इनकी तुलना में साबित या टूटी हुई मूँग बेहतर होती है।
- नमक या ज़्यादा नमक वाली चीज़ें अचार या नमक में सूखी हुए सब्ज़ियॉं या मछली न लें।
- खट्टी चीज़ें या खमीर वाली चीज़ों ,बहुत अधिक मीठी चीज़ों, शराब या बीड़ी सिगरेट से भी बीमारी बढ़ जाती है।
- मसालों से बचें क्योंकि इनसे भी अम्ल बनना बढ़ जाता है।
- नींबू या अनार फायदेमन्द होते हैं। इसी तरह मूँग की दाल, गेंहूँ या ज्वार की रोटी से भी आराम पड़ता है।
- वमना या विरेचना से एसिड पेप्टिक रोगों में फायदा होता है। इससे अल्सर होने से भी बचाव हो जाता है।
- वामना के लिए एक तरह का पानी फायदेमन्द होता है। एक बर्तन में 100 ग्राम मुलैठी लें। इसमें करीब आधा लीटर उबलता हुआ पानी डालें। इसी आधे घण्टे के लिए ऐसे ही छोड़ दें। रोगी इसे पी लें,उसके बाद उसके गले में खुजली करें इससे उल्टी हो जाती है।
- चार हफ्तों तक रोज़ दिन में दो से तीन बात 30 से 10 ग्राम सूतशेखर और 1.5 ग्राम आविपत्तिकार चूरण दें। अगर इससे टट्टी मुलायम हो जाती है तो इनकी मात्रा घटा दें। इलाज 6 हफ्तों तक जारी रखें।