गॉंवों व शहरों में बहुत से अप्रशिक्षित डॉक्टर है, जिनको झोलाछाप कहा जाता है। दवाओं के बारे में और उनसे जुड़ी चिकित्सीय सावधानियों ज़्यादा कुछ भी समझे बिना ही ये लोग दवाएँ दे देते हैं। इसके अलावा बहुत से प्रशिक्षित डॉक्टर भी अँग्रेज़ी अच्छी तरह से नहीं समझते हैं। और क्यों कि दवाओं के साथ लिखी सारी जानकारी अँग्रज़ी में होती है, ये डॉक्टर भी दवाओं के बारे में कम समझते हैं। और दवाओं के अनगिनत व्यापार की नामों से भ्रम और भी बढ़ता है।
दवाओं के स्तर पर नीचे दी गई समस्याएं आती हैं –
ज़रूरत ये है कि सही दवाएँ दूर दूर तक उपलब्ध हों। कीमतों ऐसी हो की उनसे दवा उत्पादक और उपभोक्ता दोनों का फायदा हो। खासकर हमें ध्यान रखना है कि –
हमें दवाओं के तर्कसंगत और सुरक्षित इस्तेमाल के अभियान को और मजबूत बनाना चाहिए। हमें इस बात की माँग करनी चाहिए कि दवाएँ वर्गीय नामों से बिकें। इस तरह के अभियान बंगलादेश और कई देशों में काफी उपयोगी रहे हैं। कोई कारण नहीं कि भारत में ये सफल नहीं होंगे।
यह जानते हुए भी कि झोलाछाप डॉक्टर सही प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया है, बहुत से लोग इनके पास जाते है या इन्हे घर बुलवाते है| ऐसा क्यो होता है?
इसलिये की झोलाछाप हर दूर-दहाड गॉंव में पहुँच जाते है, चाहे दिन हो या रात, जिससे मरीज को अस्पताल तक पहुँचने के लिए वाहन का खर्च उठाना नही पडता| लोगों को जिस प्रकार की इलाज में विश्वास है (खास कर सेलाइन चढाना) वे उसी प्रकार का इलाज करते है, चाहे वह सही हो या गलत| झोला छाप डॉक्टर उधारी में भी इलाज करने को तैयार रहते है, जो अन्य डॉक्टर नहीं करते, अक्सर वे पैसों की जगह अनाज, मुर्गी इत्यादी भी लेने को तैयार रहते है| तो क्यो न ग्रामीण या जंगल में रहने वाले लोग इसे बुलाना पसंद करे? अक्सर झोलाछाप के अलावा उनके पास और कोई चारा भी तो नहीं|
ज़्यादातर बीमारियों में प्रथम सम्पर्क के स्तर पर सिर्फ मुँह से दी जाने वाली दवाओं की ज़रूरत होती है। ज़्यादातर इन्जैक्शनों के लिए मुँह से दी जाने वाली दवाएँ उपलब्ध हैं। इन्जैक्शनों और अन्त:शिरा द्रवों की ज़रूरत कभी कभार ही होती है। वैसे भी इन्जैक्शन के मुकाबले मुँह से दवा दिया जाना कहीं अधिक सुरक्षित होता है। मुँह से दी जाने वाली दवाओं के प्रतिकूल असर इन्जैक्शनों की तुलना में कहीं कम और कहीं कम गम्भीर होते हैं। मुँह से ली जाने वाली दवाएँ सस्ती भी होती हैं। गॉंवों में जिन बीमारियों का इलाज होता है उनमें से करीब 95 प्रतिशत के लिए मुँह से दी जाने वाली दवाएँ काफी होती हैं।
इन सब फायदों के बावजूद, मरीज इन्जैक्शन और अन्त:शिरा द्रव लेने को प्राथमिकता देते हैं। उन्हें लगता है कि इन्जैक्शन और सेलाइन उपचार का ज़रूरी हिस्सा है। डॉक्टरों ने भी ये मान्यता बनाने और इसका दुरुपयोग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। समाज में चिकित्साशास्त्र की सीमित जानकारी और कुछ बेईमान डॉक्टरों ने इन सब को बढ़ावा दिया है। हमें इन सब बुराइयों के खिलाफ लगातार स्वास्थ्य शिक्षा के अभियान चलाने की ज़रूरत है।
परन्तु उपचार में सलाईन का इतना ज़्यादा चढ़ाया जाना न्यायसंगत नहीं है। साधारण सी बीमारियों के लिए भी सलाईन चढ़ाए जाते हैं। अक्सर ये मरीज की मॉंग के कारण या डॉक्टर के ज़ोर देने के कारण दिए जाते हैं। अन्त:शिरा मार्ग से लवण विलयन या ग्लूकोस चढ़ाए जाने में तीन गुना ज़्यादा लागत लगती है। यही कारण है कि बहुत से डॉक्टर सलाईन या ग्लूकोज़ चढ़ाने के लिए उत्सुक होते हैं।