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अप्रशिक्षित डॉक्टर

दवाएँ कैसे चुने?

उपलब्ध दवाएँ से सही दवा चुनने के लिए चार मुख्य बातों को ध्यान में रखना चाहिए –

  • असरकारिता (बीमारी ठीक करने की दवा की क्षमता)
  • सुरक्षा (जिसके कम से कम साथ में होने वाले अवांछित असर हों)
  • कीमत (दवा कितनी सस्ती है)
  • यह दवा कितनी आसानी से दी जा सकती है (मुँह से देने वाली दवाएँ, इन्जैक्शन से बेहतर होती हैं)
जीवाणु नाशक दवाएँ (एंटिबायॉटिक)

select-medicines जीवाणु नाशक दवाएँ याने अँटीबायोटिक आज इन्सान की जिन्दगी का अभिन्न हिस्सा हैं। आपने भी इनमें से कई एक दवाएँ देखी सुनी होंगी। सूक्ष्मजीवाणु से होने वाली बीमारियों के इलाज के लिए बहुत सी दवाएँ इस्तेमाल होती हैं, पर वो सभी जीवाणु नाशक दवाएँ नहीं होतीं। वो बीमारी के लक्षणों के इलाज के लिए और कुछ राहत और आराम देने के लिए दी जाती हैं। ऐस्परीन और पैरासिटेमॉल बुखार में बहुत इस्तेमाल होती हैं परन्तु ये दवाएँ जीवाणु नाशक दवाएँ नहीं हैं। इनसे केवल बुखार या दर्द कम होता है। जीवाणु नाशक दवाएँ दो रूपों में मिलती हैं। बाहरी और अन्दरुनी इस्तेमाल के लिए। कई एक मल्हम, द्रव और पाउडर बाहरी इस्तेमाल के लिए मिलते हैं। पैन्सिलिन, टैट्रासाइक्लीन या ऐम्पिसिलीन अन्दरुनी इस्तेमाल के लिए मिलती हैं।
जीवाणु नाशक दवाओं का वर्गीकरण इस तरह किया जा सकता है।
जीवाणु नाशक और अन्य जीवाणु-विरोधी दवाएँ। प्रति जीवाणु दवाएँ वो होती हैं जो बैक्टीरिया को मारती हैं परन्तु किन्हीं और जीवों जैसे फफूँद से बनती हैं। पैन्सिलिन पहली जीवाणु नाशक दवा थी। बाद में इस सूची में बहुत सी दवाएँ जुड़ गई। अन्य दवाएँ रासायनिक तरीकों से बनती हैं। जैसे कि कोट्रीमोक्साज़ोल, सल्फा,नालिडिक्सिक एसिड आदि। जीवाणु नाशक दवाओं का वर्ग सबसे महत्वपूर्ण वर्गो में से एक है। इन्होंने पिछले पॉंच दशकों में संसार भर में अनगिनत लोगों की जान बचाई है। इस तरह से इन्होंने जनसंख्या भी बढ़ाई है। दुर्भाग्य से हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था की कमज़ोरियों के कारण इनका काफी दुरुपयोग हुआ है।
ये हमारा कर्त्तव्य है कि हम जीवाणु नाशक दवाओं के दुपर्योग को रोकें। जिससे फालतू के खर्चे और दवाइयों के प्रति प्रतिरोध क्षमता बढ़ने से रोकी जा सके। खासकर गरीब देशों में संक्रमण से होने वाली बीमारियॉं सबसे आम होती है। इसलिए ये प्रवृत्ति रहती है कि जीवाणु नाशक दवाएँ बारी-बारी से इस्तेमाल किया जाता रहे। यानि ये दवा काम न करे तो दूसरी और दूसरी न करे तो तीसरी दे दी जाती है।

जीवाणु नाशक दवाओं के इस्तेमाल में कुछ नियम अपनाए जाने चाहिए –
  • बिना सही निदान या लक्षणों के किसी भी जीवाणु नाशक दवा का इस्तेमाल न करें।
  • ये सुनिश्चित कर लें कि आप जीवाणु नाशक दवाओं का इस्तेमाल वायरस से होने वाले संक्रमणों के इलाज के लिए नहीं कर रहे (हर्पीज़ एक अपवाद है;) ये न केवल पैसे की बर्बादी है परन्तु शरीर के लिए नुकसानदेह भी है।
  • बहुत से संक्रामक रोगों में जीवाणु नाशक दवाओं की कोई भूमिका नहीं होती है, परन्तु इनके लिए खास जीवाणु रोधक दवाएँ चाहिए होती हैं। जैसे कि फाइलेरिया, मलेरिया और कीड़े आदि।
  • जुकाम और साधारण रोग के लिए जीवाणु नाशक दवाओं का इस्तेमाल न करें। हल्के संक्रमण आमतौर पर शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र द्वारा ही ठीक हो जाते हैं। और इसी तरह शरीर अपनी रक्षा करना सीखता है खासकर बचपन में।
  • जीवाणु नाशक दवाओं का इस्तेमाल केवल तब करे जब ऐसा लगे कि शरीर को प्रतिरक्षा तंत्र अब हार रहा है।
  • जीवाणु नाशक दवाओं का इस्तेमाल सही खुराक और सही समयावधि के लिए करना चाहिए। अपर्याप्त खुराक और समयावधि से रोगाणुओं में प्रतिरोधक शक्ती बढ़ जाती हैं। इसलिए आज जो दवाएँ असरकारी होती हैं कल असर करना बन्द भी कर देती हैं। ऐसा तपेदिक, टॉयफाइड और अब मलेरिया के मामलों में हो चुका है।
  • शरीर में बहुत से सूक्ष्म जीवाणु रहते हैं। इनमें से कुछ हमारे लिए उपयोगी भी होते हैं। जीवाणु नाशक दवाएँ इन उपयोगी सूक्ष्म जीवाणुओं को भी मार देती हैं।
  • जीवाणु नाशक दवाएँ देने से पहले बीमारी का ठीक से निदान किया जाना ज़रूरी है।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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