आधुनिक दवाईयाँ और आयुष
एक परिपूर्ण प्रिस्क्रीप्शन
एक अच्छे डॉक्टर का प्रिस्क्रीप्शन अपने आप में परीपूर्ण होता है। इसमें निम्नलिखित बिंदू होते है –
- डॉक्टर का पुरा नाम, डिग्री, रेजिस्ट्री अनुक्रमांक, पता और फोन नं.
- इसके बाद मरीज का नाम, उम्र, वजन, पता, फोन नं, लिंग, अविवाहित या विवाहित आदि जानकारी
- इसके साथ दवा का नाम, पोटेन्सी (भार), खुराक और मात्रा कब लेना है और आवश्यक सावधानियॉं लिखी होती है। इसके साथ दिनांक और डॉक्टर की हस्ताक्षेप होती है।
- आम तौर पर एक अच्छे प्रिस्क्रिप्शन में तीन से अधिक दवाइयों का होना उचित नहीं। लेकिन अस्पताल में भरती या गंभीर मरीज के लिये ये नियम लागू नहीं। इसीके साथ दवाई लिखते समय सस्ती और अच्छी दवाई लिखना डॉक्टर का कर्तव्य होता है। महेंगी या कम असर दवा लिखना मरीज के हितोमें नही। दवाएँ लिखते समय एक एक दवा अलग से लिखना जरुरी है। हमारे देश में कई कॉंबिनेशन या जुडी दवाएँ मिक्स्चर मिलते है। कुछ गिनेचुने अपवाद छोडकर जुडी दवा लिखना उचित नहीं। दवाईयॉं लिखते समय सबसे महत्त्वपूर्ण दवा उपर और सबसे कम जरुरी दवा नीचे लिखनी चाहिये। इस तरीके से मरीज के पास उपलब्ध पैसों का सही इस्तेमाल होता है। हर एक प्रिस्क्रिप्शन पर मेडिकल स्टोर का मोहर लगना जरुरी है, जिससे ये जान पडेगा की प्रिस्क्रिप्शन के अनुसार दवाइयॉं दी गयी है या नहीं। इसके साथ इसका बिल भी लेना जरुरी है। बिल में दवाइयॉं और उसकी किमत लिखी होती है। कभी कभी गलती से या गलत व्यवहार से किमत की टोटल जादा लिखी जाती है। इसिलिये इसको परखना जरुरी है।
- आमतौर पर भारत में दवाइयॉं व्यापारी या बाजारु नाम से मिलती है जैसे पॅरासिटामोल की दवा, क्रोसीन या कालपॉल नाम से बिकी जाती है। ये सही है की दवा की गुणवत्ता और मात्रा का विश्वास दिलाने के लिये ब्रँड नेम याने बाजारु नाम का कोई महत्त्व है। लेकिन ग्राहक के मन में दवाओं की असली कीमत या कम दाम वाले ब्रँड चुनना इसके कारण असंभव सा बन जाता है।
- प्रिस्क्रीप्शन और दवा देना एक कानुनी प्रक्रिया भी है जिसमें डॉक्टर और फार्मासिस्ट जिम्मेदार है।
- डॉक्टरोंकी हस्तलिखित प्रिस्क्रिप्शन ज्यादातर और किसी को समझना मुश्किल होता है। एक तो दवा का नाम मुश्किल होता है और उपर से हस्ताक्षर भी। इसिलिये भी दवा लेने-देने में गलती हो सकती है।
दवाई लेते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखे
- क्या यह दवा अच्छी स्थिती में है, या कुछ गडबडी या खराबी नजर आती है।
- क्या दवा का रंग या रूप खराब सा लगता है।
- क्या यह दवा प्रिस्क्रिप्शन के अनुसार सही लगती है या अन्य?
- इसकी अंतिम अवधी अभी तक जायज है या नही।
- क्या इसमें उत्पादक का नाम, पता लिखा है या नही।
- क्या इसमें इसकी जो किमत छपी है वह ली है या नहीं।
लेबल पर छपी हुई दवा की अवधी जानना भी उचित होगा। एक्सपायरी डेट का अंतिम महिना और साल ध्यान में लेना जरुरी है। कभी कभी ये लिखा होता है की किस महिने के पूर्व इस्तेमाल करना है। कुछ दवाएँ जल्दी खराब होती है। खास करके सिरप जैसी तरल दवाएँ जल्दी खराब होती है और गोलियॉं जादा टिकती है। धूप या गर्मी से दवाईयॉं खराब हो सकती है वैसे ही हवा की कमी से भी होती है।
हमारे देश में नकली दवाएँ या बदली दवाएँ भी बाजार में मौजूद है। कुछ दवाएँ अपनी क्षमता से कम होती है और इसिलिये सब स्टँडर्ड होती है। नकली, बदली या सब स्टँडर्ड दवा देना कानूनी अपराध है। गलत लेबल लगाना भी कानूनी अपराध है।
अपने प्रिस्क्रिप्शन पर डॉक्टर अलग अलग सूचनाओं में समय लिखते है। जैसे की दिन में एक बार, दिन में दो बार, दिन में तीन या चार बार। इसके लिये शब्दों में या चिन्हों में लिखा जाता है। कोई दवा जब जरुरी है तभी लेनी है लेकिन बार बार नहीं। कुछ दवाएँ रात को सोते समय लेनी होती है। एक टी.एस.पी. याने चाय की चम्मच भरी दवा। ये दवा लगभग पाँच मिली होती है। लेकिन अगर टी.बी.एस. पी लिखा है तो यह बडी चम्मच से भरी दवा है जिसमें १५ मिली. दवा होती है| एक औंस लिखा है तो इसमें ३० मि.ली. (६ टी.एस.पी. या २ टी.बी.एस.पी.) दवा होगी|
x – 0 –x |
सुबह 1, दोपहर को नही, शाम को 1 |
x – x -1 |
रातको 1 |
0 – x – 0 |
दोपहर को 1 |
0 – 0 – x |
रातको 1 |
0 – 1 – 0 |
दोपहर को 1 |
1 – 0 -1 |
सुबह 1, दोपहर को नही, रातको 1 |
½ – ½ -1 |
सुबह ½, दोपहर को ½, रातको 1 |