उपचार का बड़ा हिस्सा होता है उचित दवा देना। दवाएँ आज स्वास्थ्य सेवा का अभिन्न हिस्सा हैं। दवाओं और स्वास्थ्य सेवा पर खर्च खाने और कपड़े के बाद दूसरे नम्बर पर है। दवाओं पर इतने अधिक खर्च के कई कारण हैं।
भारतीय बाज़ारों में आज ६०,००० से भी ज़्यादा अलग अलग तरह की दवाएँ हैं। इनमें से ज़्यादातर दो या दो से ज़्यादा दवाओं के जोड़ हैं। हमें सभी स्तरों के उपचार के लिए असल में केवल ३०० से ४०० दवाओं की ही ज़रूरत होती है।
ओटीसी दवाओं के लिये विज्ञापन देना अनुचित नहीं क्यों की ग्राहक इस दवा को खुद खरीदता है। लेकिन उत्पादक या वितरक इसके गलत विज्ञापन करते है। एक तो इसके अतिरंजित फायदे बताना या न होनेवाली अद्भुत फायदे दिखलाना या जादुई असर जैसे गंजापन जाकर सिर में बाल आना या लैंगिक शक्ती का उन्नयन आदि। कुछ विज्ञापनोंमें असंभव फायदे भी लिखे होते है जैसे की डायबेटीस या दिल की बिमारी बिलकुल दुरुस्त होना या कद बढना या वजन, मोटापा घटना आदि। ऐसे विज्ञापनोंसे ना केवल दूर रहना है किंतू इनके खिलाफ शिकायत भी करनी होगी। इसके बारे में शिकॉंयत करना हो तो निम्नलिखित पते पर आप फोन कर सकते है।
National Consumer Helpline No. 1800 11 4000 Toll free (From BSNL MTNL Nos.)
विश्व स्वास्थ्य संगठन इस पर ज़ोर देता है कि दवाओं के उत्पादन और इस्तेमाल में अनुशासन के लिए ज़रूरी दवाओं की सूची बनाई जाए। ज़रूरी दवाओं की सूची में दवाओं के असर, कीमत, सुरक्षा और उपयोग की आसानी यह मूलभूत आधार है। इनके अनुसार चुनाव किया जाता है। हम विश्व स्वास्थ्य संगठन के सुझावों के आधार पर प्राथमिक स्तर के लिये पर ज़रूरी दवाओं की सूची बना सकते हैं। ऐसी सूचियॉं अब उपलब्ध है।
दवा का ट्रेड (व्यापारी) नाम और दवा के मूल नामों में फर्क होता है। वर्ग के आधार पर दिए गए नाम दवा विज्ञान के नाम होते हैं। व्यापारी नाम दवा बनाने वाली कम्पनी के अनुसार अलग अलग होते हैं। जैसे कि एैस्परीन (या एसिटाहल सैलिसिलिक ऐसिड), दवा का मूल नाम है। परन्तु डिस्प्रिन, एस्प्रो, डिनास्प्रिन ये सब ट्रेड या व्यापारिक नाम हैं। कम्पनियॉं अपनी दवाएँ इन्हीं ट्रेड नामों के तहत बेचती हैं। आमतौर पर व्यापारिक नाम से बिकने वाली दवाएँ, मूल वर्गीय नामों से बिकने वाली दवाओंसे ज़्यादा महॅंगी होती हैं। अगर सभी कम्पनियॉं हर दवा मूल या वर्गीय नामों के तहत बेचें तो उपभोक्ता अलग अलग कम्पनियों की एक ही दवाओं में से गुण और कीमत के अनुसार चुनाव कर सकता है। परन्तु कई बार डॉक्टर भी इन बातों पर ध्यान दिए बिना ही दवा लिख देते हैं। कई बार डॉक्टर द्वारा लिखी गई दवा की कीमत उसी दवा की सबसे कम कीमत से तीन गुना तक अधिक होती है। दवाओं की सूची और उनकी अन्दाज़न कीमतों के लिए अलग से तालिका दी है।
बहुत सी प्रतिबन्धित दवाएँ या ऐसी प्रतिबन्धियोग्य दवाएँ विकासशील देशों में पहुँच जाती हैं। बेईमान कम्पनियॉं ऐसी दवाएँ गरीब देशों पर थोप देती हैं। सतर्क उपभोक्ता संरक्षक समूहों और विवेकी डॉक्टरों को साथ लेकर इस तरह की नुकसानदेह दवाओं को रोकना चाहिए। एनालजीन, एक दवा है जिससे अस्थि मज्जा की हानी हो जाती है, हाल ही में प्रतिबन्धित की गई है। और भी कई दवाओं को प्रतिबन्धित किया जाना ज़रूरी है। प्रतिबंधित दवाओं की एक सूची यही दी है।
दवाओं में पैसा खर्च होता है। दवा उद्योग एक बेहद मुनाफे वाला उद्योग है। दवा कम्पनियों का मुनाफा १०० से ३०० प्रतिशत तक होता है। बहुत सी बॅंधी लागत (विज्ञापन आदि की) भी उपभोक्ता पर डाल दी जाती है। एक सही दवा नीति में ये लागत उपभोक्ता पर नहीं आनी चाहिए। कुछ नवाचार कर रही कम्पनियों ने ये साबित कर दिया है कि अच्छी गुणवत्ता की ज़रूरी दवाएँ भी आधी कीमत पर उपभोक्ता तक पहुँचायी जा सकती हैं। तामिळनाडू राजस्थान : भारतमें मुफ्त दवाओंका एक नया प्रयोग
यह देखा गया है कि कई डॉक्टर्स तर्कहीन ढंग से दवा लिखते हैं। यहॉं तक की पढ़े लिखे डॉक्टर भी अक्सर ज़रूरत से ज़्यादा और फालतू दवाएँ भी लिख देते हैं। (जैसा कि टॉनिक या खॉंसी के सिरप) ज़रूरत से ज़्यादा दवाएँ दिया जाना एक बड़ी समस्या है। साधारण बीमारियों के उपचार के लिए भी एक साथ ६ से ७ दवाएँ दी जाती हैं। स्टिरॉएड, जीवाणु नाशक दवाएँ, दर्द निवारक दवाएँ, टॉनिक व विटामिन, खॉंसी के सिरप, पाचक एन्ज़ाइम और पोषक तत्व लिखा जाना काफी आम है। अक्सर ये सारी चीज़ें चिकित्सीय दृष्टि से बेकार और कभी-कभी तो नुकसानदेह हैं। आमतौर पर किसी भी साधारण बीमारी के लिए २-३ दवाएँ पर्याप्त है। इस तरह से उपचार के खर्च को काफी कम किया जा सकता है।