किसी भी दवा को इस्तेमाल करने से पहले ये ज़रूर देख लें कि उस पर अंतिम तारीख लिखी है। दुर्भाग्य से ये सारी जानकारी केवल अँग्रेज़ी में होती है। यह जानकारी अंग्रेजी न जानने वालों के लिये अनुपयोगी रहती है। उपभोक्ता समूहों को सरकार पर दबाव डालना चाहिए कि ये सारी वैज्ञानिक जानकारी स्थानीय भाषा में दी जाए। दवा को ठंडी जगह में और छॉव में रखना जरुरी है। गर्मी या धूप से उसका प्रभाव कम होता है। हमेशा दवा को ठीक से ढककर रखना जरुरी है।
बारीश के दिनों में कुछ दवाओं में नमी आ जाती है। इससे दवा जल्दी बेअसर हो सकती है। ऐसी गोलियों के बोतल में रसायन की छोटी थैली पायी जाती है, जिससे नमी का डर नही होता। जिनका रंगरुप बदला हो ऐसी दवाका प्रयोग न करे। घरघर में बचीखुची दवाओ का संग्रह होता है। अक्सर परिवार में इसका प्रसंगवश प्रयोग होता है। इस में सावधानी बरतना जरुरी होता है। गलत प्रयोग से जोखम उठाना ठीक नही। इसिलिये अलग बोतल में अलग किस्मकी दवा, गोली का नाम और उपयोग लेबल लगाकर इस्तेमाल करे।
हमारे देश में मेडिकल स्टोअर में कई लोग खुद जाकर बिना डॉक्टर के पर्ची के दवाइयॉं ले लेते है। फार्मासिस्ट भी लोगों को दवाइयॉं डॉक्टरी चिठ्ठी के बिना दे देते है इससे मरीजों का कुछ पैसा बचता है। कभी नाम से, कभी उसके रंग से या पुराने नमूने या लेबल दिखाकर, कभी हाथ पर या कागज के टुकडे पर दवा का नाम लिखकर या कभी बहुत पुराने प्रिस्क्रिप्शन दिखाकर या कभी टेलिफोन पर या बच्चे को भेजकर दवाइयॉं बुलवाई जाती है। इसमें गलत दवा मिलने की संभावना होती है। दवाओंके नाम काफी मिलते जुलते या अलग अलग हो सकते है। क्यों की ज्यादातर जेनेरिक या मूल नाम से दवाई मिलती नहीं। वैसे हमारे देश में कई डॉक्टर ठीक ढंग से प्रशिक्षित ना होने कारण इससे और भी जादा नुकसान होगा। फिर भी शास्त्र और विधी के अनुसार यह बात गलत और नुकसानदेह भी हो सकती है। एक तो फार्मासिस्ट को मरीज के बिमारी का उतना ज्ञान नही होता जितना एक डॉक्टर को होता है। दूसरी बात फार्मसिस्ट महेंगी दवा मरीज के माथे मार सकता है। इसिलिये कुल यह तरीका काबू में रखने की जरुरत है। लेकिन कुछ साधारण दवाएँ बिना डॉक्टर के चिठ्ठी का (कौंटरपर) मिलना बिलकुल जायज है। ऐसी कुछ दवाओंको जो शेड्यूल में नहीं होती उसे ‘ओटीसी’ (O.T.C.) दवा कहॉं जाता है।
हर एक दवा पर अपना लेबल होता है। अगर गोली का पॅक हो तब उसी पर सारी जानकारी छपी हुई होती है। सिरप की बोतल और कार्टन पॅक पर काफी जानकारी छपी हुई होती है। इस लेबल के तीन हिस्से होते है। मुख्यतया एक हिस्से में दवा का नाम, व्यापारी नाम और उत्पादक कंपनी का नाम होता है। दूसरे हिस्से में दवा की आवश्यक जानकारी होती है जिसमें दवा का सक्रिय रुप का अंश, रंगीले द्रव्य, दवा की खुराक की मात्रा, रखरखाव, दवा का शेड्यूल याने प्रकार आदि। कार्टन पॅक के तीसरे हिस्से में दवा की उत्पादन तिथी बॅच नम्बर, उत्पादक का सायसेन्स अनुक्रमांक, उपयोग की अंतिम तिथी और किमत तथा उत्पादक का नाम और पता होता है। दवा के कार्टन पर लाल खडी लाईन होने का मतलब है शेड्यूल एच ड्रग। शेड्यूल एच दवा डॉक्टरी चिठ्ठी के बिना देना लेना है मना । दवाओं के कुछ पॅक में यह सारी जानकारी छपा हुआ कागज भी होता है। इसमें और भी कई जानकारी होती है जैसे दवा का प्रयोग कब निषिद्ध है, कौन से असर होते हुए डॉक्टर की फिर सलाह लेना है। तथा, दवा के प्रयोग के लिये जरुरी सावधानियॉं, गर्भवती या दूध पिलाने वाली माता को यह दवा सुरक्षित है या नहीं, और प्रक्रियाशील द्रव्योंकी जानकारी और संपर्क के लिये टोल फ्री नं. वस्तुत: ये सब जानकारी उस प्रांतीय भाषा में उपलब्ध जरुरी है लेकिन ऐसा अभि तक हुआ नही है। दवा के लेबलपर कही NRX सिक्का हो तब ये दवा नॉरकॉटीक याने लत लगनेवाली होती है। या मस्तिष्क पर विशेष प्रभाव रखनेवाली होती है। जिस दवा पर लाल रेषा या NRX नही होता यह दवा ओटीसी में मानी जाती है। लेकिन ओटीसी दवाएँ भी बिना सावधानी के लेना असुरक्षित हो सकता है। जैसे की ऍस्पिरीन की एक भी गोली कभी कभी पेट में अल्सर पैदा कर सकती है या रक्तस्राव करा सकती है।