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अप्रशिक्षित डॉक्टर

अप्रशिक्षित डॉक्टर

गॉंवों व शहरों में बहुत से अप्रशिक्षित डॉक्टर है, जिनको झोलाछाप कहा जाता है। दवाओं के बारे में और उनसे जुड़ी चिकित्सीय सावधानियों ज़्यादा कुछ भी समझे बिना ही ये लोग दवाएँ दे देते हैं। इसके अलावा बहुत से प्रशिक्षित डॉक्टर भी अँग्रेज़ी अच्छी तरह से नहीं समझते हैं। और क्यों कि दवाओं के साथ लिखी सारी जानकारी अँग्रज़ी में होती है, ये डॉक्टर भी दवाओं के बारे में कम समझते हैं। और दवाओं के अनगिनत व्यापार की नामों से भ्रम और भी बढ़ता है।
दवाओं के स्तर पर नीचे दी गई समस्याएं आती हैं –

  • दवाओं का गलत और ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल।
  • प्रतिबन्धित दवाओं का इस्तेमाल होते रहना।
  • अत्यधिक कीमत द्वारा मरीजों का शोषण।
  • ज़रूरी दवाओं की कमी और दवाओं की भरमार।

ज़रूरत ये है कि सही दवाएँ दूर दूर तक उपलब्ध हों। कीमतों ऐसी हो की उनसे दवा उत्पादक और उपभोक्ता दोनों का फायदा हो। खासकर हमें ध्यान रखना है कि –

  • दवाएँ ठीक और सुरक्षित ढंग से इस्तेमाल हों।
  • दवाओं के प्रतिकूल असरों की ठीक से निगरानी हो।
  • लोगों को दवाओं के बारे में सही जानकारी दी जाए।
  • खासकर इन्जैक्शनों और अन्तशिरा: द्रवों के ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल के प्रति सजगता हो।
  • महॅंगी और नुकसानदेह दवाओं के स्थान पर संभवत: जहा तक हो सके घरेलू नुक्सों और अन्य तरीकों का इस्तेमाल किया जाए।
  • दवा की गुणवत्ता पर नियंत्रण रखा जाए।

हमें दवाओं के तर्कसंगत और सुरक्षित इस्तेमाल के अभियान को और मजबूत बनाना चाहिए। हमें इस बात की माँग करनी चाहिए कि दवाएँ वर्गीय नामों से बिकें। इस तरह के अभियान बंगलादेश और कई देशों में काफी उपयोगी रहे हैं। कोई कारण नहीं कि भारत में ये सफल नहीं होंगे।

लोग झोलाछाप के पास क्यो जाते है?

यह जानते हुए भी कि झोलाछाप डॉक्टर सही प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया है, बहुत से लोग इनके पास जाते है या इन्हे घर बुलवाते है| ऐसा क्यो होता है?
इसलिये की झोलाछाप हर दूर-दहाड गॉंव में पहुँच जाते है, चाहे दिन हो या रात, जिससे मरीज को अस्पताल तक पहुँचने के लिए वाहन का खर्च उठाना नही पडता| लोगों को जिस प्रकार की इलाज में विश्वास है (खास कर सेलाइन चढाना) वे उसी प्रकार का इलाज करते है, चाहे वह सही हो या गलत| झोला छाप डॉक्टर उधारी में भी इलाज करने को तैयार रहते है, जो अन्य डॉक्टर नहीं करते, अक्सर वे पैसों की जगह अनाज, मुर्गी इत्यादी भी लेने को तैयार रहते है| तो क्यो न ग्रामीण या जंगल में रहने वाले लोग इसे बुलाना पसंद करे? अक्सर झोलाछाप के अलावा उनके पास और कोई चारा भी तो नहीं|

इन्जैक्शन का गलत इस्तेमाल

wrong-injection ज़्यादातर बीमारियों में प्रथम सम्पर्क के स्तर पर सिर्फ मुँह से दी जाने वाली दवाओं की ज़रूरत होती है। ज़्यादातर इन्जैक्शनों के लिए मुँह से दी जाने वाली दवाएँ उपलब्ध हैं। इन्जैक्शनों और अन्त:शिरा द्रवों की ज़रूरत कभी कभार ही होती है। वैसे भी इन्जैक्शन के मुकाबले मुँह से दवा दिया जाना कहीं अधिक सुरक्षित होता है। मुँह से दी जाने वाली दवाओं के प्रतिकूल असर इन्जैक्शनों की तुलना में कहीं कम और कहीं कम गम्भीर होते हैं। मुँह से ली जाने वाली दवाएँ सस्ती भी होती हैं। गॉंवों में जिन बीमारियों का इलाज होता है उनमें से करीब 95 प्रतिशत के लिए मुँह से दी जाने वाली दवाएँ काफी होती हैं।
इन सब फायदों के बावजूद, मरीज इन्जैक्शन और अन्त:शिरा द्रव लेने को प्राथमिकता देते हैं। उन्हें लगता है कि इन्जैक्शन और सेलाइन उपचार का ज़रूरी हिस्सा है। डॉक्टरों ने भी ये मान्यता बनाने और इसका दुरुपयोग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। समाज में चिकित्साशास्त्र की सीमित जानकारी और कुछ बेईमान डॉक्टरों ने इन सब को बढ़ावा दिया है। हमें इन सब बुराइयों के खिलाफ लगातार स्वास्थ्य शिक्षा के अभियान चलाने की ज़रूरत है।

इन्जैक्शनों की ज़रूरत कब होती है?
  • कुछ दवाइयॉं केवल इन्जैक्शनों के रूप में ही मिलती हैं। उदाहरण के लिए सर्पविष के प्रति (एंटिवेनम) दवा, एड्रनलिन और कई बीमारियों के टीके।
  • कुछ दवाएँ इन्जैक्शनों के रूप में ज़्यादा असरकारी होती हैं। जैसे कि निमोनिया, मस्तिष्क बुखार और सिफलिस के लिए पैन्सेलीन।
  • प्राणघातक बीमारियों में तीव्रग्राही प्रतिक्रिया, सदमा याने शॉक आपातकालीन स्थितियों में या बेहोश होने की स्थिति में इन्जैक्शन देना ज़रूरी होता है। प्रथम सम्पर्क सेवा की स्थिति में ऐसी घटनाएँ कम ही होती हैं। और इनके लिए वैसे भी विशेषज्ञों की सलाह की ज़रूरत होती है।
  • इन्जैक्शन तभी देना चाहिए जबकि मुँह से दवा दिया जाना सम्भव नहीं होता। पेट के आपरेशन या पेट की आपातकालीन स्थितियों में ऐसा होता है।
इन्जैक्शनों का खतरा
  • पर्याप्त हद तक कीटाणु रहित ना हो ऐसे इन्जैक्शनसे हैपेटाटिस बी और एड्स का वाहक बन सकता है।
  • दूषित इन्जैक्शन या सिरिंज से मौत तक हो सकती है।
  • बॉंह के पीछे दिए गए इन्जैक्शन से तंत्रिका में क्षति हो सकती है। इससे लकवा भी हो सकता है।
  • कुछ बच्चों को पोलियो का खुराक न मिला हो संभव है उनमें मांस पेशी में दिए गए इन्जैक्शन से पोलियों जनित दस्त के चलते लकवा भी हो सकता है।
  • इन्जैक्शन से गम्भीर तीव्र प्रतिक्रिया हो सकती है जिससे अचानक मौत हो सकती है।
  • इसलिए जहॉं तक हो सके इन्जैक्शनों से बचना चाहिए।
सलाईन कब ज़रूरी होता हैं?
  • सलाईन तब ज़रूरी होता हैं जब आंत्रशोथ या किन्हीं अन्य कारणों से निर्जलीकरण (शरीर में पानी की कमी) हो रहा हो और शरीर में पानी तुरंत पहुँचाने की ज़रूरत हो।
  • सलाईन तब ज़रूरी होता हैं जब मुँह से खिलाना सम्भव नहीं होता। उदाहरण से अगर मरीज बेहोश है।
  • जब दवा ही सलाईन के माध्यम से धीरे धीरे दी जानी होती है। जैसे कि अमीनाफिलाइन।
  • गम्भीर बीमारी में बार बार अन्त:शिरा इन्जैक्शन दिए जाने के लिए सलाईन से सस्ता होता है।

saline परन्तु उपचार में सलाईन का इतना ज़्यादा चढ़ाया जाना न्यायसंगत नहीं है। साधारण सी बीमारियों के लिए भी सलाईन चढ़ाए जाते हैं। अक्सर ये मरीज की मॉंग के कारण या डॉक्टर के ज़ोर देने के कारण दिए जाते हैं। अन्त:शिरा मार्ग से लवण विलयन या ग्लूकोस चढ़ाए जाने में तीन गुना ज़्यादा लागत लगती है। यही कारण है कि बहुत से डॉक्टर सलाईन या ग्लूकोज़ चढ़ाने के लिए उत्सुक होते हैं।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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