pregnancy childbirthप्रसव-विज्ञानजन्म के खतरे
जन्म के बाद

बच्चे के जन्म के बाद गर्भाशय सिकुड़ कर नारियल के आकार का हो जाता है। आप गर्भाशय के सिकुड़ने के लिए कुल्हे पर या भुजा पर मैथेरजिन का इंजैक्शन दे सकते हैं। सिकुड़े हुए गर्भाशय में से खून नहीं बहता है। योनी और भग में किसी किसम की चोट की जांच करें। छोटी मोटी चोट तो अपने आप ठीक हो जाती है। परन्तु अगर कोई बड़ा कट है जो पेशियों तक जा रहा है तो इसके सिलना ज़रूरी होता है। अगर गुदा या मूत्राश्य तक फट गया हो तो इसके लिए आपरेशन की ज़रूरत होती है।

प्रसव नली को ठीक से साफ करने के बाद उसपर गीला पैड या कपड़ा लगाएं। कम से कम दो घंटों तक प्रसव नली में रक्त स्त्राव की जांच करें। अगर खून का बहना सामान्य से ज्यादा है तो इसके लिए अस्पताल ले जाने की ज़रूरत है। प्रसव करवाने में पूरा समय दस्ताने ज़रूर पहनें – अंदरूनी जांच से लेकर बच्चे के जन्म के बाद सफाई आदि करते समय तक। एचआईवी और हैपेटाईटिस के खतरे के कारण यह ज़रूरी है कि हम अपने को भी बचा कर रखें। दस्ताने पहनना और भी ज़रूरी हो जाता है अगर आपके हाथ में किसी तरह का कट, खंरोच या ज़ख्म हो।

शिशु के जन्म के लिए तैयारियाँ

दूर दराज इलाकों में अस्पताल की सुविधा ना हो तब घर में प्रसव करना जरुरी है| अगर आप को यह पक्का यकीन है कि घर में प्रसव करवाना सुरक्षित है तो आपको इसके लिए नीचे दी गई तैयारियाँ करनी होंगी। इसके लिये सफाई और अच्छी रोशनी ज़रूरी है। ध्यान रहे कि प्रसव ज्यादातर रात को होता है। ये चीज़ें तैयार करके रखें :

  • खूब सारे सुती साफ कपड़े (धो कर सुखाए हुए), जैसे कि साड़ी या धोतियों से बने हुए।
  • साबुन, हाथ और नाखून साफ करने के लिए बुरुश।
  • अगर संभव हो तो रूई का एक बंडल।
  • पैकेट में बंद नए ब्लेड। अगर ये न मिले तो साफ कैंची जिसे 20 मिनट तक पानी में उबाला गया हो।
  • नाड़ को बांधने के लिए करीब 2 फुट लंबा धागा जिसे 20 मिनट तक उबाला गया हो। या इसकी जगह नाड़ को बांधने के लिए प्लास्टिक की चिमटी।
  • दूसरे चरण के लिए दो बाल्टी गुनगुना पानी।
  • रोगाणुमुक्त पिचकारी और सूई (इस्तेमाल करके फेंकने वाली) और मैथारजिन (मिथाइल – एरगोमेट्रिन) का इंजेक्शन। मिथाइल – एरगोमेट्रिन को लंबे समय तक के संरक्षण के लिए हमेशा अंधेरे और ठंडे स्थान पर रखना चाहिए। इंजेक्शन लगाने के लिए स्पिरिट से भीगा हुआ रूई का फाहा भी ज़रूरी है।
  • अगर आपको जनन द्वार के घावों की मरम्मत करना आता है तो आप अलग से आपरेशन के उपकरण भी तैयार रखें। जिन प्रसवों में भगछेदन की ज़रूरत पड़ सकती है उनको करवाते हुए इन सब को रोगाणुमुक्त करके रखें। रोगाणुमुक्त करने के लिए कुकर का इस्तेमाल किया जा सकता है। नहीं तो आप इन चीज़ों को रोगाणुमुक्त करने के लिए 3 घंटे सोलर कुकर में रखने के बाद तुरंत सील कर के रख सकते हैं|
  • बच्चे के जन्म के लिए बिस्तर पर बिछाने के लिए प्लास्टिक की एक चादर।
  • बच्चे को रखने के लिए एक कम गहरी सी ट्रे या टोकरी।
  • दो जोड़ी दस्ताने।
  • पड़ौसियों को पहले से बता दें और ज़रूरत पड़ने पर मदद लें।

प्रसव के बाद खतरे के लक्षण

नीचे दिए गए लक्षणों पर ध्यान दें और इनमें से किसी के भी दिखने पर रोगी को तुरंत अस्पताल पहुँचाएं।

  • अचानक खून बहने लगे जो रुक भी सकता है और नहीं भी।
  • नाड़ के बाहर आने में 20 मिनट से ज्यादा समय लगना।
  • बच्चे के जन्म के बाद गर्भाशय का अपने स्थान से खिसक जाना।
  • प्रसव नली में कोई बड़ी या गहरी चोट।
  • प्रसव के बाद दौरे या बेहोशी।
  • माँ का ऊटपटांग बोलने लगना, यह मानसिक रोग (मनोविक्षप्ति) या प्रमस्तिष्क परेशानी के कारण हो सकता है।
  • अचानक सांस फूलना या छाती में दर्द होना। यह शिरा में बनी खून की गुत्थी (घनास्त्र) के स्वतंत्र हो जाने और फेफड़ों की नलियों में टिक जाने के कारण होता है। यह एक खतरनाक स्थिति है। महिला को तुरंत अस्पताल पहुँचाएं।

प्रसव बाद बच्चे की देखभाल
    put medicine
    काटे हुए नाड पर दवाई लगाना जरुरी नही,
    फिर भी कुछ अस्पतालों में
    जेंशन व्हायोलेट लगाया जाता है|
  • बच्चे को जन्म के तुरंत बाद रोना चाहिए। उसकी पीठ पर 2-3 बार धौल जमाएं।
  • इसे साफ कपड़े में लपेट दें जिससे उसकी शक्ति का नुकसान न हो। सर्दियों में यह बेहद ज़रूरी होता है और यह उन बच्चों में और भी ज्यादा ज़रूरी होता है जो समय से पहले पैदा हो जाते हैं और बहुत कमज़ोर होते हैं।
  • हवा का मार्ग साफ कर दें। इसके लिए प्लास्टिक के आईवी सेट (रोगाणुमुक्त) से गले के अंदर का पदार्थ चूस (खींच) कर निकाल दें।
  • नाड़ को काट कर बांध दें। हर बार एक नया ब्लेड इस्तेमाल करें। नाड़ की मरहम पट्टी करने की ज़रूरत नहीं होती।
  • साफ मुलायम कपड़े से बच्चे की ऑंखें पोछ दें। ऑंखों की संक्रमण बिमारीयो से बचाने के लिए ऑंखों को साफ रखे ।
  • breast feeding
    प्रसव के बाद तुरन्त स्तनपान जरुरी है
  • जितनी जल्दी हो सके माँ से बच्चे को अपना दूध पिलाने को कहें। जन्म के पहले कुछ घंटों में ही। इससे और दूध बनने में मदद मिलती है। पहले 2-3 दिनों में निकलने वाला दूध गाढ़ा और काफी प्रोटीन वाला होता है। इसमें संक्रमण से लड़ने के लिए प्रतिपिण्ड भी होते हैं।
  • पहले दो दिनों में बच्चा हरी काली गाढ़ी टट्टी करता है। इसे बच्चे पर से तुरंत साफ कर दें। अगर यह टट्टी शरीर पर ही कहीं सूख जाए तो इससे बच्चे की कोमल त्वचा को नुकसान पहुँचता है।
  • ध्यान से देखें कि कहीं बच्चे में कोई जन्म जात दोष तो नहीं है। जैसे कि पैरों में खराबी, खंड होंठ या तालू, पीठ या सिर में सूजन। अगर बच्चे के मुँह से झाग निकल रहा हो तो यह खाने की नली और सांस लेने वाली नली के बीच गलत जोड़ के कारण होता है। ऐसे में बच्चे को तुरंत अस्पताल पहुँचाएं।

नवजात शिशु में खतरे के चिन्ह

अगर आप को नीचे दी गई समस्याओं व लक्षणो में से कोई भी दिखाई दे तो तुरंत डॉक्टरी सलाह लें।

  • बार बार उल्टी करना।
  • श्यावता – (श्यामलता) त्वचा, होंठों या नाखूनों पर नीलापन।
  • 24 घंटों तक पेशाब न आना।
  • 24 घंटों में टट्टी न होना या ‘बंद’ मलद्वार जिसमें से आपकी उंगली अंदर न जा रही हो।
  • स्तनो में से दूध न चूस रहा हो।
  • पहले दो दिनों में पीलिया।
  • दौरे या क्षटके या मिरगी।
  • बहुत कम हरकत।
  • बुखार।
  • जन्म के समय का शिशु का वजन 2 किलो से कम होना।
  • समय से पूर्व पैदा होना।
  • मुँह से झाग निकलना।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

message-icon shyamashtekar@yahoo.com     ashtekar.shyam@gmail.com     bharatswasthya@gmail.com

© 2009 Bharat Swasthya | All Rights Reserved.