स्वास्थ्य रक्षक न्युमोनिया ग्रस्त बच्चे की सॉंस की गती नापना |
भारत में बाल न्यूमोनिया एक गंभीर बीमारी है| पॉंच साल से कम उम्र किसी भी बालक को यह बीमारी कभी भी हो सकती है| बुखार, खॉंसी और सॉंस तेजीसे चलना ये लक्षण होनेपर इसे न्यूमोनिया समझना चाहिये| बाल-न्यूमोनिया अक्सर जिवाणु या कभी कभी विषाणु से होता है| यह बिमारी गंभीर होते हुए भी पहचानने और इलाज के लिये सरल है| अधिक जटिल बिमारियों में अस्पतालमें ही इलाज करवाना पडता है| अब हम इस बीमारी के बारेमें थोडी जानकारी लेंगे| बीमारी की शुरुवात बुखार, सर्दी खॉंसी से होती है| बच्चे का दम फुलता है| बीमारी फेफडों में होती है|
बुखार, खॉंसी और सांस फूलना ये तीन प्रमुख लक्षण है| इसमें खॉंसी सीनेकी गहराई से आती है| गले से नहीं| खॉंसने की आवाजसेही यह पता चलता है| इसी को भारी खॉंसी भी कहते है| शुरु में १-२ दिन हल्का-मध्यम बुखार रहता है| बुखार निरंतर रहता है|
बच्चेकी सॉंस की गती गिनकर हम सही निर्णय ले सकते है| इसके लिये घडी या मोबाईल फोन के टायमर का प्रयोग करे| एक मिनिट तक सॉंसे गिने|
इसके लिये बच्चे के कमर तक कपडे उतारकर देखना पडता है| बच्चे को मॉं की गोद में या खटिया पर लेटाये| सॉंसे गिनने के लिये स्टेथास्कोप की आवश्यकता नहीं होती| छ: महिने से कम उम्र शिशु के लिये ६० से अधिक श्वसन को जल्द श्वसन कहा जा सकता है| छ: महिने से २ वर्ष उम्रके बच्चों के लिये ५० से अधिक श्वसन की गति याने दम भरना है| वैसेही २ वर्ष से उपर के बालकों के लिये ४० से अधिक श्वसनदर हो तो जल्द श्वसन कहते है| जल्द श्वसन से बच्चे के नथुनें फूल जाते है| इस बीमारी मे बच्चे का पेट उडता है| लेकिन असलमे यह बीमारी फेंफडों में होती है|
न्यूमोनिया है लेकिन गंभीरता के लक्षण नहीं, ऐसे में बच्चे को प्राथमिक उपचार काफी है| इसके लिये तीन सामान्य तथा सस्ती दवाईयॉं है| ऍमॉक्सिसिलीन यह जिवाणुओं के लिये, पॅरासिटामॉल बुखार हेतू तथा श्वास नलिका खुलने हेतू एकाध दवा| छोटे शिशुओंके लिये ये दवाइयॉं द्रव स्वरूप में मिलती है| बडे बच्चों के लिये पानीमे घुलनेवाली गोलियॉं चल सकती है| ये उपचार कोई स्वास्थ्य कर्मचारी भी कर सकता है| किन्तु उपचार के १-२ दिन बाद डॉक्टर से मिलना ठीक होगा| बुखार उतरने के लिये गुनगुने पानीमें कपडा भिगोकर शरीर पोंछ ले| पूरा शरीर पोंछ ले| सिर्फ माथा नहीं| बच्चे का खान-पान चालू रखने की कोशिश करे| यह बीमारी गंभीर जरुर है लेकिन इसमें इंजेक्शन या सलाईन की आवश्यकता नही होती| दो दिनों के इलाज से जादातर बच्चे पूर्णत: ठीक हो जाते है|