शिशु का स्वास्थ्य जॉंच करने के लिये और भी कुछ जॉंच की जाती है, जिसका विवरण यहॉ दिया है|
यह “चौंकाने वाला” रिफलैक्स है। असल में यह बचाव की क्रिया है। बच्चे की गर्दन को अपने हाथ से सहारा देकर उसको समतल सतह पर लेटाएं। सिर को कुछ इंच ऊपर करें। फिर अचानक हाथ को थोड़ा नीचा करें (हटाएं नहीं)। बच्चा तुरंत अपने हाथ पैर ऐसे फैला लेगा जैसे कि अपने को बचाने की कोशिश कर रहा हो।
अगर आप बच्चे के मुँह के एक कोने को हाथ से छूएं तो वो बच्चा अपने मुँह को उस ओर मोड़ लेगा। इसे रूटिंग रिफलैक्स कहते हैं। यह दूध पीने से जुड़ा है।
अपने हाथ धो लें और एक उंगली बच्चे के मुँह में डालें। बच्चा उंगली चूसना शुरु कर देगा। सामान्य नवजात शिशु चूस सकता है और थोड़ी थोड़ी मात्रा में दूध और पानी निगल सकता है। इन प्रतिवर्तो का होना सामान्य स्वास्थ्य का सूचक है|
नवजात शिशु अकसर जन्म के समय उल्व द्रव निगल लेते हैं। इससे पहले दिन उल्टियॉं हो सकती हैं। ये उल्टियॉं स्तनपान से रुक जाती हैं। गलत ढंग से दूध पिलाया जाना उल्टियों का एक और कारण होता है। बच्चा दूध पीते समय हवा भी अंदर ले लेता है। इस हवा से पाचन में गड़बड़ी होती है और इससे भी उल्टियॉं होने लगती हैं। इसे रोकने का एक आसान रास्ता है बच्चे को हर बार दूध पिलाने के बाद छाती अपने कंधोंपर रखकर और उसकी पीठ पर धीरे धीरे थपकी देना। इसे डकार दिलाना कहते हैं। आमतौर पर इससे अंदर ली गई हवा बाहर निकल जाती है।
अगर उल्टियाँ लगातार आएं, कम न हों, हरे से रंग ही हों या उनके साथ पेट फूल जाए, तो ऐसे में अस्पताल में दिखाना ज़रूरी होता है। ऐसे बच्चों में आहार नली में कोई रुकावट होने की संभावना होती है।
सामान्य बच्चे के मुँह में फंफूद की छूत हो सकती है। ऐसे में जीभ और मुँह के अंदर सफेद सी परत जमी हो सकती है। ऐसा होने पर बच्चा दूध पीना छोड़ सकता है। इसके लिए सबसे आसाना तरीका है एक बूंद जैंशन वायलेट एक या दो बार लगाना। अगर बच्चा थोड़ी सी दवा निगल भी ले तो इससे कोई नुकसान नहीं होता। मॉं के स्तनों पर भी यह दवा लगा दें।
बच्चे आमतौर पर पहले 24 घंटों में ही टट्टी कर देते हैं। कभी कभी बच्चे 3 – 4 दिनों में केवल एक या दो बार टट्टी करते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वो सारा का सारा दूध अवशोषित कर लेते हैं। इसकी चिंता करने की ज़रूरत नहीं होती। ऐसे कई बच्चे चार पॉंच महीने के होने के बाद ही रोज़ टट्टी करना शुरु करते हैं।
हर नवजात शिशु की आँखों में तीसरे से पॉंचवे दिन हल्का पीला रंग आ जाता है। यह पीलापन एक हफ्ते के अंदर अंदर गायब भी हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मॉ के रक्त कोशिकाअें शिशु के जन्म के बाद नष्ट होती है और (जन्म से पहले की), दूसरी शिशु की हडडी में बनी लाल रक्त कोशिकाएं उसका स्थान ले लेती हैं। यह ज़रूरी होता है क्योंकि बच्चा अब बाहरी दुनिया में आया होता है। जब पुरानी रक्त कोशिकाएं नष्ट होती हैं तो उनकी टूट फूट के उत्पाद शरीर में इकट्ठे हो जाते हैं। इसी से हल्का पीलापन आ जाता है। अगर बच्चा समय से पहले हुआ है, तो शरीर क्रिया वाला पीलिया देर से होता है (5 – 7) और 12 से 15 दिनों में अपने आप ठीक भी हो जाता है।
जन्म के 24 घंटों के अंदर अंदर होने वाला पीलिया या एक समय के बाद तक पीलिया ठीक न होने पर डॉक्टर को दिखाया जाना ज़रूरी होता है। हथेलियों या तलवों पर भी पीलिया दिखाई देते रहने पर भी डॉक्टर को दिखाया जाना चाहिए।