गर्भ निरोधन के कृत्रिम अस्थाई तरीके – निरोध और कॉपर टी

अच्छे जन्म नियंत्रण से राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या नियंत्रण अपने आप हो जाता है। प्रभावी जन्म नियंत्रण के लिए काफी सारे तरीके उपलब्ध हैं। अवरोधक गर्भ निरोधन उनमें से एक है और सम्भोग न करना दूसरा तरीका है। महात्मा गाँधी ने लोगों को यौन सम्बन्ध से दूर रहने की सलाह दी थी। यह सलाह इस विश्वास पर आधारित थी कि सदाचार और शारीरिक रूप से सम्भोग, एक बुरी चीज़ है और यह केवल बच्चों को जन्म देने के लिए ही किया जाना चाहिए। यानि प्रकृतिचक्रका पालन केवल उन्हीं दिनों में सम्भोग करना जो उपजाऊ दिन नहीं हैं यह उनका मानना था। यह रिदम वाला तरीका है । परन्तु इसे बहुत ही कम लोग अपनाते थे। खासकर जवान उम्र के लोगों ने यह बिल्कुल संभव नहीं। १९५० और १९६० के दशक में परिवार नियोजन पर गाँधीजी के प्रभाव से रिदम वाले तरीके को बहुत बढ़ावा मिला। एक गणक पर मासिक चक्र के हिसाब से मोती गिनना उपयोगी था पर यह प्रचलित नहीं हो पाया। आधुनिक भारत में परिवार नियोजन कार्यक्रम की जड़ें उन सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रयासों में हैं जो औरतों को अन्तहीन बार बार माँ बनने से बचाना चाहते थे। गर्भ निरोधन यह एक महान सामाजिक उपलब्धि है।

पुरुष निरोध (कण्डोम)
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निरोध अब गर्भरोधक और यौन संक्रमण के
रोकथाम के लिए अहम् तरीका बन गया है

यह तरीका १८वीं सदी में शुरू हो गया था। तब यह भेड़ की ऑंत की त्वचा में से चादर निकालकर बनाया जाता था। आजकल इस्तेमाल होने वाला निरोध पतली रबर की एक थैली-सा होता है। यह खड़े हुए लिंग पर फिट हो जाती है। इसके सिरे पर छोटी-सी चुची होती है जिसमें वीर्य इकट्ठा हो जाता है। निरोध छोटे-छोटे पैकेटों में थोड़े से पाउडर या चिकना करने वाले द्रव के साथ आते हैं। परिवार कल्याण कार्यक्रम के तहत ये सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के पास मुफ्त मिल जाते हैं।
यह पान की दुकानों और दवाइयों की दुकानों पर भी मिलते हैं। निरोध में कोई सूक्ष्म छेद तक न हो इसकी इलेक्ट्रानिक मशीनों से जाँच की जाती है। परन्तु बाद में इनमें छेद हो सकते हैं जिनमें से शुक्राणु निकल सकते हैं। इस्तेमाल करने से पहले देख लें कि इनकी अवधी तो नहीं निकल गयी है। निरोध पुरुषों का एकमात्र अस्थाई निरोधक है। निरोधों में शुक्राणु नाशक पदार्थ भी होता है। अगर निरोध का इस्तेमाल सावधानी से किया जाए तो ये सौ प्रतिशत असरदार हैं।

निरोध का इस्तेमाल
  • कण्डोम का इस्तेमाल ठीक से और सावधानी से किया जाए। इसके लिए नीचे दी गई बातों पर ध्यान दें।
  • लिपटा हुआ निरोध पैकेट में से बाहर निकालें (अगर सम्भव हो तो जाँच लें कि यह पूरी तरह से साबुत है या नहीं)। इसे तब तक के लिए एक तरफ रख दें जब तक कि लिंग खड़ा नहीं होता है।
  • इसकी चूची को कसकर निचोड़ें ताकि उसके अन्दर की हवा बाहर निकल जाए।
  • निरोध को खड़े हुए लिंग पर चढ़ा दें।
  • लिंग को योनि में से बाहर निकालते हुए लिंग के सिरे पर ऊपरी घेरे को हाथ से पकड़ें। इससे यह फिसलने से बचकर शुक्राणु बिखरनेसे बचते है।
  • इस्तेमाल के बाद निरोध में गाँठ लगा दें और इसे ठीक से फेंक दें। कण्डोम को कभी भी दोबारा इस्तेमाल न करें।
  • निरोध यौन क्रिया का मज़ा और सम्पर्क थोड़ा-सा कम कर देता है। कुछ-एक निरोध में सतह दानेदार होती है ताकि यौनक्रियाकी संवेदना और आनंद कायम रहे।
  • निरोध यौन रोगों से बचाव के लिए भी बहुत असरकारी होता है।
  • निरोध केवल उपजाऊ दिनों में ही ज़रूरी होता है। मासिक चक्र के अन्य दिनोमें इसकी जरुरी नही होती।
  • पुरुष निरोध से पुरुषों को यौन रोगों से पूरी तरह सुरक्षा मिल जाती है। परन्तु महिलाओं के लिए यह पूरी तरह असरकारी नहीं होता है क्योंकि वीर्य कंडोम के किनारों से बहकर योनि में जा सकता है। अगर निरोध टूट जाए तो भी महिला के लिए यौन रोग पकड़ लेने का खतरा अधिक होता है।
महिला निरोध
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निरोध अब गर्भरोधक और यौन संक्रमण के
रोकथाम के लिए अहम् तरीका बन गया है

अब महिला के लिये भी निरोध उपलब्ध है। महिलाओं को यौन रोगों से बचाने के लिए पुरुष निरोध के मुकाबले यह ज्यादा असरकारी हैं। इससे थोड़ी -सी असुविधा तो होती है फिर भी महिलाओं ने काफी पसन्द किया है। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे उन्हें अपने प्रजनन पर नियंत्रण रखने का तरीका मिला है। महिला निरोध की बनावट पुरुष निरोध और एक झिल्ली (डायाफ्राम), दोनों का जोड़ है। यह एक पतली रबर का बना होता है। इसमें एक बाहरी घेरा होता है और एक अन्दरूनी हिल-डुल सकने वाला लचीला छल्ला होता है। बाहरी घेरा भग पर टिका रहता है और निरोध को अन्दर फिसलने से रोकता है। और अन्दरूनी छल्ला गर्भाशयग्रीवा पर फिट हो जाता है और योनि में रहता है। यह भी शुक्राणुका रास्ता रोकने वाला तरीका है, इनसे शुक्राणुओं को प्रजनन तंत्र में जाने से रोका जाता है। महिला निरोध अभी तक भारत में उपलब्ध नही है|

कॉपर टी
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गर्भ निरोध के लिए कॉपर टी
एक अस्थाई तरीका है

यह ऍंग्रेज़ी के अक्षर टी के आकार की अन्तर्गर्भाशयी साधन है। प्लास्टिक के दो धागे स्तम्भ में से गुज़रते हुए निकलते हैं। एक बार कोख में लगा दिए जाने के बाद कॉपर टी ५-१० साल तक वहीं टिकी रहती है और असरकारी रहती है। किसी भी अन्तर्गर्भाशयी साधन से गर्भाशय में शोथ होता है। गर्भाशय सिकुड़कर उसे निकालकर फेंकने की कोशिश करता है।
कॉपर टी रासायनिक रूप से भी कार्य करती है। यह गर्भाशय की अन्त: त्वचा पर ऐसे असर डाल देती है कि निषेचित अण्डे का वहाँ टिक पाना और भी मुश्किल हो जाता है। तीसरा ताँबा (कॉपर) गर्भाशय के श्लेष्मा की प्रकृति बदल देता है इससे शुक्राणुओं के गर्भाशय में पहुँचने पर रोक लग जाती है। गर्भ निरोध के लिए उपलब्ध शायद यह सबसे अच्छा तरीका है।
कॉपर टी क्योंकि ५-१० सालों के लिए सुरक्षा प्रदान कर देता है, यह काफी सुविधाजनक है। इसे महिला खुद ही निकाल भी सकती है। निकालने के बाद अगले ही मासिक चक्र से गर्भ धारण करना संभव होता है। इससे अंडोत्सर्ग पर या शरीर के किसी भी और भाग पर कोई भी असर नहीं होता। कभीकभार किसी किसी मामले में छूत हो जाती है। कॉपर टी आम तौर पर एक सुरक्षित साधन है। पर जिन महिलाओं को अनीमिया, गर्भाशयग्रीवा की छूत, रक्त स्त्राव की गड़बड़ियॉं, डायबटीज़, या श्रोणी प्रदाहक रोग हो उन्हें इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। जिस महिला ने एक भी बच्चा को जन्म नहीं दिया हो, उनमें कॉपर टी लगाना थोडा मुश्किल होता है| गर्भावस्था में भी यह नहीं लगा होना चाहिए। इसलिए इसे लगाने से पहले पूरी तरह ठीक से शारीरिक व अंदरूनी जांच ज़रूरी है।
एक प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ता, नर्स या डॉक्टर आसानी से कॉपर टी लगा सकती हैं। परन्तु इसके लिए महिला के लिए पीठ के बल पैरे पूरी तरह फैला कर लेटने की सुविधा और कीटाणुरहित तरीका उपलब्ध होना चाहिए। कॉपर टी लगने के तुरंत बाद ही महिला घर जा सकती है। प्रसव के दो महीने तक आमतौर पर गर्भ धारण करने की संभावना नहीं होती। परन्तु स्तनपान कराते समय बिना माहवारी के भी गर्भ घारण करने की संभावना होती है। पारंपरिक रूप से प्रसव के बाद ४० दिनों तक मॉं को घर में ही रखा जाता है। यह समय कॉपर टी लगाने के लिए सबसे अच्छा समय है। इस समय में मॉं और बच्चे को जांच के लिए भी ले जाया जाना होता है।
पक्का कर लें कि महिला पहले से ही गर्भवती नहीं है। कॉपर टी लगाने के लिए सबसे अच्छे समय हैं :

  • मासिक स्त्राव रुकने के एकदम बाद।
  • प्रसव के बाद ४० दिन पूरे होने पर। इस समय तक गर्भाशय अपने सामान्य (गर्भावस्था हीन) आकार में आ चुका होता है।

कॉपर टी निकालने के लिए, योनि में लटक रहे प्लास्टिक के धागे को कस कर खींचें। धागे को उंगलियों से पकड़ कर खींच कर निकालने की तकनीक सीखना काफी आसान है। अगर महिला खुद कॉपर टी निकाले तो उसके बाद किसी स्वास्थ्य कार्यकर्ता या डॉक्टर से जांच करवाना ज़रूरी है। अपने आप निकालना आम तौर पर ठीक ही रहता है, फिर भी बेहतर है कि इसे डॉक्टर या स्वास्थ्य कार्यकर्ता से ही निकलवाया जाए।

अंतर्गर्भाशयी साधनों के नुकसान

किन्हीं भी अंतर्गर्भाश्यी साधनों इसमें छूत या श्रोणी प्रदाहक रोग की संभावना रहती है। करीब १५ प्रतिशत महिलाओं को कॉपर टी सहन नहीं होता। बहुत अधिक रक्तस्त्राव, श्रोणी में दर्द या पीठ में ज़ोर का दर्द होने के कारण इसे निकाल देना ज़रूरी हो जाता है।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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