जूँएँ |
जूँएँ ऐसे कीड़े हैं जो शरीर के बालों वाले भाग में रहना पसन्द करते हैं। इसिलिये ये सिर के बालों, पलकों के बालों या जघन के बालों में पाये जाते है। ये बालों में अण्डे देते हैं और इन अण्डों से फिर और जूँएँ निकल आते हैं। जूँएँ खून पर पलते हैं और त्वचा से इसे चूसते हैं। इससे खुजली और बेआरामी होती है। आमतौर पर रात के समय खुजली ज़्यादा होती है और जिस व्यक्ति के जूँएँ हो रहे हो उसका कॅंगा और कपड़े इस्तेमाल करने से अन्य व्यक्ति को फैलते हैं। एक जूँआ भी काफी खुजली कर सकता है। आमतौर पर शरीर पर होने वाले जूँएँ जघन में होने वाले जूँओं से अलग होते हैं।
पर्मेथ्रीन १% लोशन लगाना जूँओं का सबसे अच्छा इलाज है। इसे रात को लगाएँ। सुबह मरे हुए जूँओं को निकालने के लिए एक महीन कॅंघे का इस्तेमाल करें। उसेक बाद सिर धो लेने से बची हुए दवाई निकल जाती है। हर सप्ताह दवाई लगाएँ जब तक कि सारे जूँएँ न निकल जाएँ। जूँओं से ग्रसित कपड़ो को बीएचसी पाउडर लगाकर झाड़ कर बाद में धो लें या कपडे उबाल लें व धूप में सुखा लें। पर्मेथ्रिन उपलब्ध न हो तो लिंडेन लोशन लगाया जा सकता है।
शरीफा के बीज़ों का पाउडर बालों के तेल में मिलाकर लगाने से जूओं से मुक्ति मिल सकती है। आमतौर पर एक बार लगाने पर ही फायदा हो जाता है। परन्तु एक हफ्ते बाद यह इलाज दोहराया जा सकता है। शरीफा की पत्तियों का लेप भी रात भर के लिए बालों में लगाने से फायदा हो सकता है। एक और घरेलू इलाज है तेल में मिलाकर कपूर लगाना। दूसरे दिन बाल धोकर काढ़ने से मरे हुए जूँएँ और लीखें निकल जाती हैं।
अगर पलकों के बालों में जूँएँ हो जाएँ तो इसके लिए खास ध्यान देने की ज़रूरत होती है। इस हालत में हम बीएचसी (लिंडेन) नहीं लगा सकते हैं। बारीक चिमटी की मदद से जूँएँ निकाले। पिलोकार्पिन मलहम लगाने से जूँओं की पकड़ कमजोर पड़ जाती है और उन्हें निकालना आसान हो जाता है।
दाद-पेट और हाथ पर |
दाद एक फफूँद का संक्रमण है जिसमें गोल-गोल दाग हो जाते हैं। दाद शरीर के किसी भी हिस्से पर यहॉं तक कि खोपड़ी पर भी हो सकते है। इसमें बहुत खुजली होती है।
बडी खुजली की तरह यह संक्रमण भी अस्वच्छ हालातों में सम्पर्क होने से होता है।
दाद में भी भयंकर खुजली होती है। दाद के दाग गोलाकार होते हैं और उनके बीच में एक साफ दिखने वाला हिस्सा होता है। बाहर का घेरा शोथग्रस्त (खुरदुरा, लाल) दिखता है और उसमें लगातार खुजली होती है।
दाद के लिए सबसे असरकारी फफूँद रोधी दवा मिकानाजोल मलहम है। इसके अलावा निस्टेटिन, हेमाइसिन और सेलीसिलिक एसिड का भी इस्तेमाल होता है। विटफील्ड मलहम में सैलीसिलिक अम्ल और बैन्जाइक अम्ल होते हैं। यह एक सस्ती और असरकारी दवा है। दाद के निशान न रहने के कम से कम दो हफ्ते बाद तक दवा का इस्तेमाल करना हैं। अगर दाद उपरी दवा से ठीक नहीं होते हैं तो फफूँद रोधी गोली (जैसे ग्रिसियोफल्विन) खानी पड़ती है। आयुर्वेद में लताकरन्ज के तेल का इस्तेमाल फायदेमन्द बताया गया है। आँतों की सफाई भी मददगार हो सकती है। मेदक का इस्तेमाल किया जा सकता है जैसे कि त्रिफला चूरण या अरण्ड का तेल। अमलतास की पत्तियों का लेप दिन में दो बार करना भी एक इलाज है। खाने में नमक कम हो।
त्वचा के एक और फफूँद वाले संक्रमण में खुजली नहीं होती, इसे टीनिया वर्सीकोलर कहते हैं। इसमें पीठ के ऊपरी हिस्से व छाती में हल्के धब्बे पड़ जाते हैं। यह फफूँद एक ऐसा संक्रमण है जो बहुत चिरकारी होता है और जिस पर किसी भी दवा का आसानी से असर नहीं पड़ता। इसके चार हफ्तों के लिए क्लोट्रिमझोल मलहम लगाएँ। दिन में दो बार मल्हम को अच्छी तरह चमडीपर घिस कर लगाएँ।
एक तरह की फफूँद नाखूनों पर असर डालती है। इस बीमारी में भी दवाई आसानी से असर नहीं करती खुजली और नाखूनों के आस पास का रंग उड़ जाना इस बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं छ: माह तक ग्रिसियोफल्विन की गोलियॉं लेने से बीमारी में फायदा होता हैं। लेकिन यह डॉक्टरी सलाह के अनुसार ही करे।