यह एक फफूँद का संक्रमण है जिसमें त्वचा और उसके नीचे के ऊतकों पर असर होता है। इसमें आमतौर पर पैर पर असर होता है। यह भारत के कुछ हिस्से और अन्य उष्ण देशों में होता है। नंगे पैर चलना इस बीमारी का सबसे आम कारण है। फफूँद से त्वचा और उसके नीचे के ऊतकों में लगातार शोथ होता रहता है। यह एक दर्दरहित गॉंठ के रूप में शुरू होता है। धीरे-धीरे और गॉंठे बन जाती हैं और उसमें से स्राव निकलने लगता है इससे छोटे-छोटे छेंद (साइनस) हो जाते हैं। इन साइनसों में से फफूँद के कण निकलने लगते हैं। पैर फूलने लगता है और यह चक्र कई सालों तक चलता रहता है। पुराने छेंद ठीक हो जाते हैं और नए बन जाते हैं। पैर भारी हो जाता है और व्यक्ति बड़ी मुश्किल से चल पाता है। इलाज मुश्किल है। किसी त्वचारोग विशेषज्ञ को दिखाया जाना चाहिए।
पायोडरमा त्वचा में बैक्टीरिया से होने वाला संक्रमण है। स्कैबीज़ और एलर्जी की तरह पहले से हुए घावों में पीप बन सकती है। यह पूरी तरह से अपने आप भी बन सकती है। पामा याने स्कैबीज़, एलर्जी से होने वाला एक्ज़ीमा, जख्म आदि सभी में बैक्टीरिया से सम्पर्क होने से हो सकता है। पायोडरमा बच्चों में काफी आम है।
संक्रमण हो जाने पर त्वचा सूज जाती है, लाल हो जाती है और उसमें खुजली होती है। त्वचा के घावों में से पीप निकलने लगती है। उस क्षेत्र की गिल्टियॉं सूज जाती हैं और उनमें दर्द होता है।
घावों पर संक्रमणरोधी दवा लगाएँ। जेंशन वायोलेट काफी सस्ता होता है। लेकिन फ्रेमासेटीन या नाईट्रोफ्यूरेंनटोएन मलहम ज्यादा असरकारी होता हैं। नीम का तेल भी फायदेमन्द होता है। यह एक असरकारी इलाज है खासकर उस समय जब पीप निकल रही हो। आमतौर पर इलाज एक सप्ताह चलता रहना चाहिए।
अगर गिल्टियों में सूजन हो या ऐसा लगे है कि संक्रमण फैल रहा है तो रोगाणु नाशक दवाइयॉं (जैसे ऍमॉक्सिसिलिन या कोट्रीमोक्साजोल) पॉंच से सात दिनो तक प्रयोग करे। इसके साथ एस्परीन और आईब्रूफेन दर्द और सूजन को कम करते हैं।
मनुष्य का शरीर रोज़ ही कई चीज़ों से सम्पर्क में आता है। इनमें से कुछ चीज़ें एलर्जी करने वाली हो सकती है। एलर्जी असल में शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र का इन चीज़ों के लिए प्रतिक्रिया है। इन तत्वों को ऐलजेंस या एन्टीजेन कहते है। धूल, कण, परागकण, खाने की कोई चीज़ या कभी-कभी सूरज की रोशनी भी एलर्जी पैदा कर सकती है। लगभग कोई भी चीज़ एलर्जी कर सकती है और इससे शरीर का कोई भी भाग प्रभावित हो सकता है। त्वचा उनमें से एक है।
एलर्जिक डर्मेटाईटिस (एक्ज़ीमा) एक बहुत ही आम बीमारी है। यह दो तरह की हो सकती है। सम्पर्क एक्ज़ीमा और एक्ज़ीमा (यानि किसी भी तरह के एलर्जी करने वाले तत्वों जैसे खाने की चीज़ों या धूल आदि के लिए शरीर की प्रतिक्रिया।)
हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग चीज़ें एलर्जी करने वाली साबित हो सकती है। कुछ लोगों को किसी पदार्थ जैसे कॉंग्रेस घास या पार्थीनियम से जबरर्दस्त एलर्जी हो सकती है। लेकिन कई और लोग इसे आसानी से सह सकते हैं। हर मामले में एलर्जी करने वाले कारक की जॉंच करना मुश्किल होता है। कुछ चीज़ें अक्सर ही एलर्जी का कारण बनती रहती है चांदनी घास एक बहुत ही आम एलर्जी करने वाली चीज़ है, ऐसा इसलिए भी है क्योंकि यह इस देश के लिए नई है। चांदनी घास साठ और सत्तर के दशक में विदेशों से गेहूँ के आयात के साथ भारत में आई थी।
एलर्जी समय के चलते कम या ज़्यादा हो सकती है। यह भी ज़रूरी नहीं है कि एक व्यक्ति हमेशा ही किसी पदार्थ के प्रति एलर्जिक रहे। आज जो पदार्थ किसी के लिए एलर्जीक न भी हो तो कल वो एलर्जीक हो सकता हे। इसी तरह आज शरीर को जिस चीज से एलर्जी होती है कल उससे ऐलर्जी होना बन्द भी हो सकती है। क्योंकि कुछ अवधी में शरीर उसे सहना सीख सकता है। एलर्जी की समस्या कई अन्य कारकों के कारण तीव्र भी हो सकती है और बार-बार होने वाली भी। एलर्जी की गम्भीरता भी अलग-अलग होती है और यह कभी-कभी जानलेवा भी हो सकती है जेसे कि पैंसलीन दिए जाने पर बहुत तीव्र प्रतिकिया होना। कई दवाइयों से गम्भीर एलर्जिक प्रतिकिया हो सकती है। कई एक सब्जियों से चिरकारी एलर्जिक डरमेटाइटिस हो सकती है। विभिन्न फूलों के परागकण, भूॅसी धूल, सूरज की रोशनी, कीड़े मारने की दवाइयॉं, खाने की चीज़ें और कपड़े एलर्जी करने वाली आम चीज़ें हैं।
एलर्जिक त्वचा शोथ डर्मेटाईटिस त्वचा का शोथ है और इससे आमतौर पर बेहद खुजली होती है। कई बार यह संक्रमण वाले डर्मेटाईटिस जैसा लग सकता है। संक्रमण वाले एलर्जिक डर्मेटाईटिस में गिलटियॉं हो सकती है। चिरकारी डरमेटाइटिस से त्वचा मोटी हो सकती है व काली पड़ सकती है। एलर्जी होकर खतम भी हो सकती है और इसकी गम्भीरता भी कई कारकों पर निर्भर करती है। ऍलर्जिक त्वचा शोथ के कुछ प्रकार यहॉं दिये है।
पूरे शरीर पर लाल दाने होने और उनमें खुजली होने की हालत को अर्टीकेरिया या पित्ती कहते है। यह किसी दवा के लिए प्रतिक्रिया या कोई और ऐलर्जी हो सकती है।
यह वो बीमारी है जिसमें शरीर के कुछ भाग बहुत से तेलीय पदार्थ स्रवित करने लगते है। यह केवल खोपड़ी, चेहरे, कानो के ऊपर, स्तनों के नीचे, कन्धों के बीच में, बगलों या जॉंघों में होता है।
यह चेहरे और धड़ पर चकत्तो के रूप में देखा जा सकता है। नैपकीन से होने वाले चकत्ते भी इसके उदाहरण है।
बहुत से बच्चों को एक्ज़ीमा हो सकता है। पैरों और कोहनियों में चकत्ते हो सकते है। यह आमतौर पर बच्चे के पॉंच साल का होने तक ठीक हो जाते हैं।
गम्भीर और गहन एलर्जी में तुरन्त और किसी कुशल व्यक्ति द्वारा एन्टीएलर्जिक दवाइयों (जैसे सीपीएम और स्टीरॉएड) के इन्जैक्शन ज़रूरी होता है। कम गम्भीर (हल्की) एलर्जी के लिए ज़रूरी होता है कि एलर्जी को दबाया जाएँ। एलर्जी वाली जगह पर स्टीरॉएड युक्त मलहम और साथ में अँटी हिस्टेमिन (जैसे सीपीएम) की गोलियॉं देना इलाज में शामिल है। परन्तु इस इलाज से केवल अस्थाई आराम हो सकता है। स्टीरॉएड अगर दो तीन दिनों से ज़्यादा लम्बे समय तक दिए जाएँ तो इनसे नुकसान हो सकता है। खुजली को सीपीएम की गोलियों से ठीक करें। हल्की फुलकी एलर्जी का इलाज ज़रूरी नहीं है।
कीड़े के काटने पर उस स्थान पर खेत की मिट्टी का लेप करें।