स्तनोंका कॅन्सर महिलाओं के लिये महत्त्वपूर्ण तथा संवेदनशील विषय है| भारत में यह अधिक पाया जाता है| लेकिन अच्छी बात यह है कि हम उसे शीघ्र पहचानकर निकाल सकते है|
यह कॅन्सर महिलाओंको ३५-५५की उम्रमें होनेकी संभावना अधिक होती है| इसके कुछ कारण इस प्रकार है — स्थूलता अर्थात मोटापा, स्तनभार अधिक होना, खानेमें तेल या वसा का प्रमाण अधिक होना, गर्भनिरोधक गोलियोंका दीर्घ उपयोग, संतान न होना आदि। कुछ अनुवंशिक कारण भी प्रभावशाली है|
जो महिलाएँ स्तनपान कम करवाती है उन्हे यह रोग होने की संभावना जादा होती है|
दर्दहीन छोटी गांठ या गोलेसे कॅन्सर की शुरुवात होती है| बादमें स्तन दर्द और चिचुकपर थोडा रक्तमिश्रित स्त्राव हो सकता है| वह चिचुक थोडा खींचासा या संकुचित हो सकता है| बगलमें गांठोका होना कॅन्सर बढनेकी निशानी है|
अपने स्तनोंकी हर माह में एकबार अपने हाथोंसे जॉंच करना अच्छा होता है| इसके लिये घडी के कांटेनुसार क्रमश; स्तन टटोले | इसमें एकाध गांठ या गोला होने पर विशेष ध्यान दे| लेकिन हर गाठ या गोला कॅन्सर नहीं होता इसका भी ध्यान रखे| आप अपनी स्तन परीक्षा माहवारी के चार-पॉंच दिनों बाद करे, या फिर महिने की निश्चित तारीख को परीक्षा करे| आशंका हो तब डॉक्टरसे से मिले|
रोग निश्चिती के लिये गांठ के नमूने का सूक्ष्मदर्शक द्वारा परखना पडता है| सुई से यह नमुना लेते है|
मेमोग्राफी नामक एक्स रे चित्र से स्तन की छोटी गांठे भी देख सकते है| यह परीक्षण उम्र के चालीसवे साल के बाद अधिक विश्वसनीय होता है| एम.आर.आय. परिक्षण अधिक अच्छा किन्तु महंगा है|
निस्तेज होना या वजन घटना कॅन्सर के बढने की निशानी हो सकते है|
स्तन कॅन्सरका प्रकार तथा फैलाव पर उपचार निर्भर होते है| आपके डॉक्टर इस बारे में योग्य सलाह देंगे| अब इसके बारे में हम थोडी जानकारी लेंगे| कॅन्सर की छोटी गांठे निकाली जा सकती है| ऐसे में उर्वरित स्तन निकालने की आवश्यकता नही है| स्तन कॅन्सर उचित समय निकाला जाए तो जिंदगी में दुबारा होने का खतरा कम हो जाता है|
लेकिन गांठ बडी होनेपर स्तन और बगल की गांठे निकालनी पडती है| इस शस्त्रक्रिया के बाद कॅन्सरविरोधी इलाज किये जाते है| सामान्यत: इसे छ: किस्तों में करते है| इसके अलावा संप्रेरक और अँटिबॉडी उपचार भी करने पडते है| इससे दुबारा कॅन्सर होने का खतरा कम हो जाता है| कॅन्सरके शरीर में फैलाव ना हो इसलिये रसायनोपचार जरूरी है|
जल्दी निदान यही रोकथामका मुख्य तरीका है।
रजोनिवृत्ती के बाद हर साल मेमोग्राफी परिक्षण करना अच्छा है| मेमोग्राफी परिक्षण में भी १०-१५% मामलों में निदान गलत हो सकता है| स्तनभार अधिक होनेपर गलती की संभावना बढ जाती है| इसिलिये ३५ साल की उम्रतक मेमोग्राफी परिक्षण अधिक विश्वसनीय नही| इसके अलावा क्ष-किरण स्वयं ही कुछ मायनेमें कॅन्सरजनक हो सकते है| अत: मेमोग्राफी परिक्षण आवश्यकता होनेपर ही किया जाए|