स्वरयंत्र, श्वसन नली, श्वसनी वृक्ष और फेफड़े सभी में कैंसर हो सकता है। कैंसर आम तौर पर अधेड़ उम्र या उससे भी बड़ी उम्र में होता है। धूम्रपान इसका एक महत्वपूर्ण कारण है पर यह उन लोगों को भी हो सकता है जो धूम्रपान नहीं करते। जो लोग ऐस्बेस्टस की धूल (ऐस्बेस्टस की फैक्टरी के अन्दर और बाहर के लोग) और जो लोग रेडियोधर्मी परमाणु धूल का सामना करते हैं उन्हें फेफड़ों का कैंसर हो सकता है।
कैंसर के आम लक्षण हैं वज़न घटना और भूख घटना। विशेष लक्षण हैं चिरकारी खॉंसी जिसमें बलगम के साथ कभी कभी खून भी आ सकता है। ये सभी लक्षण फेफड़ों के तपेदिक के समान लक्षण हैं। दोनों ही मामलों में तुरन्त डॉक्टर की मदद की ज़रूरत होती है।
अगर किसी अधेड़ व्यक्ति में स्वरयंत्र शोथ के कोई और लक्षण न दिखें परन्तु उसकी आवाज़ में बदलाव आने लगे (आवाज़ ज़्यादा भारी सी हो जाए) तो यह सोचे कि कहीं उसे स्वरयंत्र का कैंसर तो नहीं है। वैसे गॉव के स्तर पर आप सिर्फ इतनी ही मदद कर सकते हैं कि उसे तुरन्त डॉक्टर के पास जाने की सलाह दें।
इसको रोकने का एकमात्र तरीका यह है कि लोगों को धूम्रपान के नुकसानों के बारे में बताया जाए। अगर खॉंसी, बलगम में खून और वजन कम होना तीनों साथ साथ हों तो तपेदिक के साथ फेफड़े के कैंसर की सम्भावना होती है। यह कैंसर भी उन लोगों में ज़्यादा होता है जो धूम्रपान करते हैं।
धूम्रपान हर तरह से खतरनाक है, खुद को और दुसरों को भी |
उच्च रक्तचाप और दिल की बीमारियों के अलावा बीड़ी या सिगरेट पीना सॉंस की बीमारियों की सबसे महत्वपूर्ण वजह है। धूम्रपान से गर्भ के शिशु पर भी असर पड़ता है। धूम्रपान से चिरकारी श्वासनली शोथ, चिरकारी दिल की बीमारी, कैंसर होने का खतरा होता है ओर इससे फेफड़ों का तपेदिक होने की सम्भावना भी बढ़ती है। इससे दमे की तकलीफ भी बढ़ जाती है। चिरकारी श्वासनली शोथ होने के कारण सॉंस में बदबू भी आने लगती है। धूम्रपान का व्यसन हो जाता है। यह आदत छुडवाने के लिए काफी ज्यादा इच्छाशक्ती की ज़रूरत होती हैं। गर्भवती महिलाओं के धूम्रपान करने से गर्भ के शिशु कम वजन वाला पैदा होता है। दूसरे के धूम्रपान करने पर धूँआ सॉंस के अन्दर लेने या फिर तम्बाकू खाने से भी शिशु वजन में कमी आ जाती है।
अप्रत्यक्ष धूम्रपान – धूम्रपान से न केवल उन लोगों को असर होता है जो धूम्रपान कर रहे हों, पर उन पर भी जो कि उनके आस पास होते हैं। इसलिए धूम्रपान के खिलाफ काफी कानून बने हैं। सार्वजनिक स्थानों व ऑफिसों में धूम्रपान पर पाबन्दी है।
जिन घरों में चूल्हे में लकड़ी जलती है वहॉं भी यही समस्या होती है। यह एक और तरह के अप्रत्यक्ष धूम्रपान का जरिया है। यह शायद उतना ही नुकसानदेह है जितना कि तम्बाकू का धूम्रपान, धुँआ रहित चूल्हों से लोगों को इस खतरे से बचाया जा सकता है।
एक व्यक्ति धूम्रपान जितना अधिक करता है उसके लिए खतरा उतना ही बढ़ जाता है। धूम्रपान का असर सीधे-सीधे उसकी मात्रा पर निर्भर करता है। यानि वह कितनी बिड़ी, सिगरेट या तम्बाकू पी रहे हैं और कितने सालों से धूम्रपान कर रहे हैं इससे खतरा बढता है।