आधुनिक दवाईयाँ और आयुष
दवाओं का वर्गीकरण
दवाओं के वर्गीकरण का एक आधार है कि वो किन अंगों या ऊतकों पर असर करती हैं।
- प्रति सूक्ष्मजीवाणु और प्रति परजीवी दवाएँ: ये दवाएँ बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया और अन्य रोगाणुओं को मारने या नियंत्रित करने के लिए उपयोगी होती हैं।
- कमी भी पूर्ति करने वाली दवाएँ: ये आहार में किन्हीं तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए दी जाती हैं। जैसे अनीमिया में आयरन की कमी को पूरा करने के लिए आयरन की गोलियॉं या फिर रतौंधी के इलाज के लिए विटामिन ए दिया जाना।
- दवाएँ जो शरीर में चयापचय क्रियाओं और बदलावों को नियंत्रित करती हैं। बदलावों से शरीर की सामान्य प्रक्रियाएँ धीमी पड़ जाती हैं। दवाएँ अम्ल का स्त्राव, हलचल और गतिशीलता, तापमान, तंत्रिकाओं का संवाहन, मस्तिष्क की गतिविधी, रासानिक प्रक्रियाओं आदि को प्रभावित कर सकती हैं। जैसे कि सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होने वाली दवाएँ हैं – दर्द निवारक दवाएँ, प्रतिएंठन दवाएँ और उपशमकारी (शान्तिप्रद) दवाएँ।
- वैक्सीन से प्रतिरक्षा पैदा होती है। ये दवाओं का एक मोटा मोटा वर्गीकरण है। दवाओं का उनके औषधप्रभाव पर आधारित एक और विस्तृत वर्गीकरण अध्याय के एक बाद के भाग में दिया जाएगा।
दवाएँ ऊतकों तक कैसे पहुँचती हैं
चिकित्सा का एक मुख्य सिद्धान्त है कि दवा को अपेक्षित ऊतकों तक सही मात्रा में, और पर्याप्त समय के लिए कैसे पहुँचाया जाए।
स्थानीय या बाह्य प्रयोग
त्वचा, आँख, नाक, कान, मुँह में लगाई जाने वाली कई ‘स्थानीय’ दवाओं का असर ज़ाहिर है उस क्षेत्र तक ही सीमित रहता है। इनमें से कुछ थोड़ी मात्रा में रक्त संचरण में पहुँच सकती हैं।
उदाहरण के लिए फटी त्वचा को जोड़ने के लिए दिया जाने वाला इन्जैक्शन ज़ाइलोकैन स्थानीय प्रयोग के लिए होता है। पर ये उसी क्षेत्र तक सीमित नहीं रहता और सूक्ष्म मात्रामें शरीर के अन्य भागों तक भी पहुँच जाता हैं।
ज्यादातर स्थानीय दवाएँ चमही, आँख, कान आदि अंगोके लिये ही होती है| लेकिन दमा की कुछ दवाएँ फेफडों के लिए होती है, जो स्थानीय ही है|