बहुतसे बच्चोंको अतिसार की बीमारी हो जाती है| अतिसार याने पतले दस्त होते रहना, रक्तमिश्रित श्लेष्मा (आंव) गिरना एक अलग बीमारी है| बाल-अतिसारसे बच्चोका शरीर शुष्क हो जाता है| इससे बच्चेकी मृत्यू हो सकती है| अतिसार के जिवाणू या विषाणू दूषित हाथों या भोजन-पानी के साथ बच्चोंके पेट में पहुँचते है| इकोलाय जिवाणू तथा रोटाव्हायरस दोनो विषाणू दोनो विषाणू के जरिये अतिसार होता है| अतिसार में घरेलू इलाज से भी हम खतरा और मृत्यू टाल सकते है| कभी कभी अस्पतालमें इलाज करवाना पडता है|
दिनभरमें तीन से अधिक बार पतले दस्त होना अतिसार कहलाता है| लेकिन शुष्कताकी जॉंच आवश्यक है| इसके लिये प्यास, सतर्कता, त्वचा, आँखे और जबानका सूखापन तथा पेशाबकी मात्रा आदि बाते जॉंचे| इससे शुष्कता के प्रकार हम तय कर सकते है|
अगर बच्चा प्यासा नहीं है, होश में है, जीभ और आँखोंमें हमेशाकी तरह गीलापन है, रोनेपर बच्चे की आँखोमें आँसू आते है और पेशाब हमेशा की इतनी हो तब बच्चेमें शुष्कता नहीं है|
शुष्कतामें बच्चे को प्यास, आँखे छॉंसी हुई, जीभ सूख जाना, आदि लक्षण होते है| ऐसे में बच्चा रोतला और चिडचिडा हो जाता है| पेटकी त्वचा चुटकीमें पकडकर छोडने पर सिलवटे धीरे धीरे समाप्त होती है| बच्चा रोये तो आँखों में पानी नहीं आता|
तीव्र शुष्कता मे बच्चा सुस्त लगता है| शीघ्रतासे जबाब नहीं देता| आँखे अंदर धॅंसी दिखाई देती है| जबान बहुत रुखी लगती है| चुटकी छोडनेपर त्वचाकी सिलवटे बहुत धीरेसे समाप्त होती है| बच्चा रोनेपर आँखोंमें पानी नही आता है| पेशाब नही आती यह खतरनाक अवस्था है|
शुष्कता हो या नहीं, बच्चे को अतिसार होनेपर उसे मुँहसे द्रवपदार्थ देना चाहिये| यह आप स्वयं कर सकते है| द्रव पदार्थोंसे बच्चेमें रोग-प्रतिकारक शक्ती आती है| अपने डॉक्टर या स्वास्थ्यसेवक को इसकी जानकारी अवश्य दे|
अतिसार हो किन्तु शुष्कता ना या कम हो तब घरेलू इलाज कर सकते है| परंतु अतिशुष्कता हो तब घर में रुके बिना तुरंत अस्पताल पहुँचे|
घरेलु इलाजोंमें नारियल पानी, नमक-शक्कर का घोल, चावल का पानी, पकतीदाल का पानी, छांस, सब्जियोंका सूप, गन्ने का रस, फलों का रस, चाय या कॉफी आदि उपयुक्त द्रव पदार्थ है| इन द्रव्योंसे शरीर में पानी व क्षार की मात्रा सही होती है| बच्चा अगर स्तनपान करता हो तो इसे चालू रखे|
और एक विकल्प है शक्कर और नमक का घोल पिलाना | एक लिटर साफ पानीमें मुठ्ठीभर शक्कर और तीन अंगुलियों की चिमटी से नमक मिलाएँ| खाने का सोडा हो तो दो अंगुलियों की चिमटी से सोडा मिलाएँ|
अंदाजन पदार्थ ना लेना चाहे तो ६ सपाट चम्मच शक्कर और आधा चम्मच नमक मिलाऍ| इस हेतु छोटा चम्मच प्रयोग ना करे| बडा अर्थात ५ मि.ली. के बडे चम्मच का प्रयोग करे|
जलसंजीवनीका पॅकेट होनेपर एक लिटर पानीमें घोल बनाना आसान होगा|
द्रवपदार्थ एकदमसे ना देकर एक-एक चम्मच पिलाएँ| सलाईन की धीमी गति जैसे इसे भी घुँट-घुँट पिलाऍ| इससे उल्टी को टाल सकते है| बच्चा जितना पी सके पिने दे| शुष्कता निदर्शक लक्षणों का ध्यान रखे| तीन दिनों बाद भी तबीयत ठीक ना होने पर अस्पताल ले जाएँ| या इससे पहले ही तीव्र शुष्कता होने पर अस्पताल ले जाएँ|
डॉक्टर के सलाहसे जीवाणुरोधक दवाइयॉं लग सकती है|
अतिसार से बच्चे की भूख और भोजन कम हो सकता है| इसलिये इस बीमारी में भरण-पोषण चालू रखना जरुरी है| बालक कुपोषित ना होने पाये| अत: वैद्यकीय सलाह ले|
आयुर्वेदानुसार अतिसार में हल्का आहार देना चाहिये| अत: मूँग, चावल, राजगीरा खिलाना अच्छा है| गाय के घी का प्रयोग करे| इससे बालकको शक्ती आती है| खीर आसानी से हजम हो जाती है| इसमे खुबसारा गुड डालिये|
अतिसार में आहार की दृष्टी से सामान्य शक्कर की अपेक्षा ग्लुकोज-शक्कर अधिक अच्छी है|
घरेलू द्रवपदार्थ सलाईन से बिलकुल कम नहीं होते| साथ ही सस्ते भी होते है|
सलाईन याने सिर्फ पानी| तथा शक्कर व नमक होता है| नस द्वारा सलाईन की अपेक्षा मुँहसे द्रवपदार्थ शीघ्र दे सकते है| अतिशुष्कता होनेपर ही सलाईन की आवश्यकता होती है|
त्वचा का सूखापन जॉंचने हेतू बच्चे के पेट की त्वचा अँगुली की चिमटीमें पकडकर छोडिये| निरोगी अवस्था में त्वचाकी सिलवट पहले जैसी सपाट हो जाएगी| शुष्कता होनेपर त्वचा की सिलवटे धीरे धीरे ठीक होती है|
उल्टियॉं होने पर भी १० मिनिट रुककर द्रवपदार्थ देते रहिये|
रक्तश्लेष्मा (आंव) हो तो जिवाणुरोधक अर्थात प्रतिजैविक दवाइयॉं देनी पडती है|
दस्त बडे हो या हर तीन घंटेमें एक से अधिक दस्त हो तो बिमारी की गंभीरता को समझे| ऐसे में अस्पताल जाना ठीक रहेगा|